छत्तीसगढ में बैठी भाजपा सरकार जिस तरह से कार्य कर रही है वह आने वाले दिनों के लिए कहीं से शुभ संकेत नहीं है। अधिकारी और नेताओं के बीच तालमेल से विकास तो हो नहीं रहा है केवल छत्तीसगढ़ को लूटने की साजिश चल रही है। चौतरफा अंधेरगर्दी ने आने वाले दिनों में इस राय के सुनहरे भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
मेरे एक मित्र बाबूलाल शर्मा जो पेशे से पत्रकार भी हैं ने मुझे मेरे ब्लाक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भाई जी मेरा मानना है कि सिर्फ भ्रष्टाचार उजागर करना समाचार विचार नहीं है। कुछ हट कर हमें जनहित के लिए भी लिखना चाहिए। मैं भी श्री शर्मा जी के विचार से पूरी तरह इतेफाक रखता हूं लेकिन जब पूरी व्यवस्था भ्रष्ट हो और सरकार की आंखों में शर्म की बजाय बेशरमी झलकती हो तथा आम जनता केवल अपने लिए सोचती हो वहां से रास्ते निकालने की कोशिश में मैं भी लगा हूं।
इस कोशिश में मैं एक-एक ऐसे सच से दोचार हुआ हूं जिससे आज हर कोई दूर भागता है। क्या किसी के समझाने से कोई समझ पाया है। मेरा जवाब भी नहीं है। क्योंकि समझाने से गलत कार्य छोड़ दिए जाते तो फिर भगवान राम को न तो रावण का वध करना पड़ता और न ही श्रीकृष्ण को ही कंस को मारना पड़ता। यदि गलत कार्य कोई छोड़ता है तो किसी के जनजागरण से नहीं बल्कि वाल्मिकी की तरह स्वयं हृदय परिवर्तन होता है। पिछले सदियों से पर्यावरण को लेकर हो या शराब की बुराई की बात हो जनगारण चल रहा है और इसका परिणाम यह है कि पर्यावरण लगातार खराब होते जा रहा है और शराब पीने वालों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है।
इसलिए ऐसे जनजागरण की बात वे लोग करते हैं जो या तो महात्मा बनना चाहते हैं या लोगों से छल करते हैं। इसलिए यदि कोई चीज गलत है असमाजिक है तो उसे जड़ से नष्ट करना होगा। शराब बंदी जनजागरण से हो जाता तो कब का हो चुका होता क्योंकि इसके खिलाफ हजारों लोग जनजागरण चला रहे हैं। छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है सत्तारुढ़ दल के नेताओं से लेकर अधिकारी भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो इनका सामाजिक बहिष्कार जरूरी है क्योंकि बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण ने साबित कर दिया है कि सरकार में आंखों की शर्म भी नहीं बची है ऐसे में भ्रष्ट लोगों के बारे में लोग जाने और आज नहीं तो कल आखों की बेशरमी खत्म हो सके। राजस्व के मामले में पूरे देश में बेहतर छत्तीसगढ क़ी मांग इसलिए नहीं की गई थी कि नेता और अधिकारी इस राजस्व को लूट सके।
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