बढ़ती मंहगाई को लेकर बंद का असर और इसका नुकसान तो सामने आ ही गया। इसका फायदा किसे मिलेगा। अभी कहना मुश्किल है। सुषमा स्वराज ने तो बंद के औचित्य पर पूछे गए सवाल पर साफ कह दिया कि वे तो विपक्षी धर्म की भूमिका अदा कर रहे हैं। आज देश में मंहगाई की मार से आम आदमी त्रस्त है। मंहगाई बढ़ने की मूल वजह पर न तो सरकार को मतलब है और न ही विपक्ष को ही इससे कोई सरोकार है। सब राजनीति कर रहे हैं और जनता तमाशाबीन बनी हुई है। क्योंकि जनता को विपक्ष भी इतना ही समझा रही है कि मनमोहन सिंह की नीतियों की वजह से मंहगाई बढ़ रही है क्योंकि विपक्ष भी इससे राजनैतिक फायदे लेना चाहती है इसलिए वह आम लोगों को कमी नहीं बताएगी कि महंगाई बढ़ने की असली वजह क्या है? क्योंकि विपक्ष भी जानती है कि जिस दिन जनता असली वजह समझ जाएगी उस दिन उसकी भी राजनीति खत्म हो जाएगी।
क्या वास्तव में मंहगाई बढ़ने की वजह पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में ईजाफा करना और सरकार की उदारीकरण व्यवस्था है। नहीं। कतई ये कारण नहीं है मंहगाई बढ़ने के। मंहगाई बढ़ने की असली वजह है अधिकारियों और नेताओं का गठजोड़। क्योंकि दूसरों से यादा इन्हें अपनी चिंता है। इसलिए सुषमा स्वराज ने बड़ी बेशर्मी से कह दिया कि अब सांसदों का वेतन भत्ता बढ़ना चाहिए? आखिर सांसदों का वेतन भत्ता क्यों बढ़ना चाहिए? ये लोग कौन सा आम लोगों के हितों पर काम कर रहे हैं। आजादी के 60 सालों से इस देश में विकास हुआ है तो किसके लिए? जरा सुषमा स्वराज और उनकी पूरी पार्टी बताएगी कि उन्हें वेतन क्यों चाहिए? जब वे स्वयं को समाजसेवी, जेन सेवी और न जाने क्या क्या कहते हैं तब वेतन भत्ता क्यों?
आजादी के 60 सालों में इस देश की आधी आबादी आज भी पेयजल, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूल अधिकारों से वंचित है तब इन्हें वेतन-पेंशन लेने का हक किस तरह से जाता है। क्या बेशर्मी की सारी हदें ये पार कर चुके हैं क्या इनमें नैतिकता नहीं है या मुफ्तखोरी की आदत ने इन्हें सिर्फ अपनी तकलीफें दिखती हैं। क्या किसी सरकार के पास इस बात का जवाब है कि वे जनता से टैक्स के रूप में मिले पैसों में से आधी राशि अपनी सुविधाओं पर खर्च क्यों करते हैं जबकि जनता को वे साफ पानी तक नहीं पिला पा रहे हैं।
दरअसल मंहगाई की असली वजह नेताओं और अधिकारियों को दी जा रही है सुविधाओं में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी ही बढ़ती मंहगाई की असली वजह है। कोई राजनैतिक दल क्यों घोषणा नहीं करता कि जब तक सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा और पानी का इंतजाम नहीं हो जाता तब तक उनके दल के लोग सरकार से वेतन-भत्ता पेंशन नहीं लेंगे। स्वास्थ्य, पानी, शिक्षा की बात तो छोड़ दो, विधायकों-सांसदों में इतना साहस नहीं है कि वे शराब दुकानों को नियमानुसार खुलवा सके। अपने-अपने क्षेत्र में बिक रहे अवैध दारू बंद करवा सके।
इसलिए ये सांसद और विधायक तथा राजनैतिक दल मंहगाई की असली वजह जनता को नहीं बतलाते। लेकिन जनता अब जागने लगी है। अब तक तो सिर्फ जूते चप्पल फेंके जाते रहे हैं। यदि राजनैतिक दलों ने अब भी जनता के पैसों से अपनी सुविधा बढ़ाने की होड़ से पीछे नहीं हटे तो... कदम आगे भी बढ़ेगा।
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