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मंगलवार, 14 सितंबर 2010
घर तो छोड़िये, भगवान को भी नहीं छोड़ा...
अपनी करनी छुपाने सरकारी विज्ञापन के मार्फत खजाना लुटाने की कोशिश में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राय में अखबार की बाढ़ आ गई है। बड़े प्रतिष्ठित माने जाने वाले अखबार बिरादरी की आमद ने पत्रकारों का भाव तो बढ़ाया ही है आम लोगों को परेशान कर दिया है। सुबह से शाम तक घूम रह सर्वे टीम ने घरों का चैन छिन लिया है। कभी अखबार की स्कीम समझाई जाती है तो कभी दरवाजों पर विज्ञापन बोर्ड लगाने पहुंच जाते हैं। अब अखबार वालों से पंगा कौन लें सो अखबार वाले मनमानी पर उतर आए है। धर नहीं हुआ अखबार का प्रचार तंत्र हो गया है। घरों में घर मालिक का बोर्ड लगा हो या न लगा हो अखबारों का विज्ञापन बोर्ड जरूर लग गया है। इसके एवज में मुफ्त में अखबार भी नहीं दिया जा रहा है। हालांकि कुछ कालोनी में विज्ञापन के एवज में अखबार मांगने की सुगबुगाहट हैं।
घरों को तो छोड़िए दैनिक भास्कर ने तो अपने प्रचार के लिए मंदिरों को भी नहीं बख्शा है। राजधानी रायपुर के तो प्राय: सभी मंदिरों में उनके विज्ञापन बोर्ड लगे है। दो-पांच सौ रुपए खर्च करने में ऐसा प्रचार कहां मिलेगा। वहीं कोई कंपनी बोर्ड लगा देती तो हिन्दुओं के कथित रक्षक पिल पड़ते लेकिन अखबार वालों के इस कारनामे पर किसी का मुंह नहीं खुलता। मंदिर वाले भी क्या करें। समझ सब रहे हैं लेकिन अखबारी दादागिरी के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसमे हैं।
पत्रिका का भास्कर पर प्रहार
अभी नेशनल लुक के वार से दैनिक भास्कर संभल भी नहीं पाया था कि पत्रिका ने हमला बोल दिया नेशनल लुक ने संपादकीय विभाग पर हमला किया था तो पत्रिका ने मैनेजमेंट की बजा दी। भास्कर में सरकारी विज्ञापन की देखरेख करने वाले प्रकाश सौरे पत्रिका में स्टेट हेड हो गए है जबकि सरकुलेशन संभालने वाले सुरेन्द्र मिश्रा और गोविन्द ठाकरे को भी पत्रिका ने तोड़ लिया है।
चंदू का इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रेम
स्मार्ट कहलाने वाले चंद्रप्रकाश जैन ने किन परिस्थितियों में नवभारत छोड़ नईदुनिया की राह पकड़ी थी यह तो वही जाने लेकिन लगता है उन्हें भी अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ग्लैमर भाने लगा है तभी तो वे जी-24 वाईन कर गए। अब चर्चा तो कई तरह की है चर्चा का क्या कहें।
अजय सक्सेना पत्रिका में
कार्टून बनाते-बनाते कार्टून की हालत में पहुंच चुके अजय सक्सेना का अपने फिल्ड में कोई जवाब नहीं है। लेकिन वेतन जहां यादा होगा वहीं काम करेंगे के तर्ज पर अब वे पत्रिका पहुंच गए हैं।
राजेश सोनकर हरिभूमि में
फोटोग्राफी अच्छी है पर स्थापित होने की चाह में लगे राजेश सोनकर हरिभूमि पहुंच गए हैं। देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर
शशांक देशबंधु पहुंचे
युगबोध प्रकाशन की पत्रकारिता से हाइवे में संपादक बनने वाले शशांक शर्मा अब देशबंधु पहुंच गए हैं। यह अलग बात है कि उनके देशबंधु पहुंचने से कई लोगों को दिक्कतें शुरु हो गई है।
और अंत में...
नवभारत को ठेके पर लेने का दावा करने वाले रंगा-बिल्ला अब उस एडवरटाईजर्स को ढूंढ रहे हैं जिन्होंने ठेके पर लेने की खबर को लीक कर प्रचारित किया है। बेचारा स्वयं को बचाने सफाई देते घूम रहा है।
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पत्रकारिता पेट भरने का जरिया भर रह गया है ,ऐसा पेट भरने से अच्छा है ही ऐसे पेट को ही सदा के लिए ख़त्म कर दिया जाय ...
जवाब देंहटाएंअच्छी खबर ली है आपने ! धन्यवाद !
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