रविवार, 19 सितंबर 2010

सस्ती है जान...

पिछले दिनों बिलासपुर में 6 पुलिस वालों ने टाकिज के सुरक्षा कर्मी को इतनी बेदर्दी से पीटा कि मौके पर ही उसकी मौत हो गई। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह खबर भीतर तक झिझोंर देने वाली खबर है। क्या किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की सरेआम गुण्डागर्दी की अनुमति है? शायद सभी का जवाब कुछ नहीं है? यह इसलिए क्योंकि यह नक्सल प्रभावित राय है। नक्सली भी यही सब कर रहे हैं? और अब सरकार भी?
पूरा वाक्या बिलासपुर के पुलिस कप्तान जयंत थोरात को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है क्योंकि शुरुआत पुलिस कप्तान और सुरक्षा गार्ड महेन्द्र के बीच नोंक-झोंक से हुई। यदि सूत्रों पर भरोसा करे तो सुरक्षा गार्ड भीड़ को कंट्रोल करने के दौरान पुलिस कप्तान से उलझ गया, शायद उसने बदतमीजी भी की होगी? कप्तान ने उन्हें झिड़कते हुए मातहतों को इशारा किया और वहां से चले गए? अब क्या था। पुलिस कप्तान से बदतमीजी का दंड महेन्द्र को भुगतना ही था? लेकिन सिर्फ बदतमीजी की इतनी बड़ी सजा?
यदि इस तरह की घटना कोई और करता तो घर-परिवार सहित सभी थाने में बिठा दिए जाते लेकिन मामला पुलिस कप्तान और आधा दर्जन पुलिस कर्मियों का था इसलिए मौत पर जुर्म दर्ज करना जरूरी था इसलिए सिर्फ दो पुलिस वालों पर ही जुर्म दर्ज कर मामला ठंडा करने की साजिश रची गई। लेकिन जब आम लोग सड़क पर उतर आए तो गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने घटना की दंडाधिकारी जांच की घोषणा कर दी। सबसे दुखद पहलू तो इस मामले में मुख्यमंत्री की भूमिका की रही। आए दिन सड़क दुर्घटना या अन्य घटना में मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त करने वाले डा. रमन सिंह इस मामले में खामोश है?
वैसे भी इस मामले में बिलासपुर के लोगों की तारीफ करनी होगी कि उनसे महेन्द्र की मौत पर चुप नहीं रहा गया। वरना बस्तर से सरगुजा और राजधानी में मिल रहे लाशों ने आम लोगों को इतना संवेदनशील कर दिया है कि किसी को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता? छत्तीसगढ़ में सस्ती होती जान पर अब न कोई बोलता है न सरकार से सवाल ही करता है? सरकार तो बस भ्रष्ट अधिकारियों का पालनहार हो गया है। मानों सरकारी कर्मचारी अधिकारी नहीं हुए वे दामाद हो गए हैं? कुछ भी करो सेवा बरकरार रहेगी और सम्मान में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। तभी तो आईएएस नारायण सिंह सजा के बाद भी पदोन्नत किए जाते हैं? आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को तत्काल बहाल कर दिया जाता है?
राय बनने के बाद जिस तरह से सरकार ने आम लेगों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है कभी सरकारी विकास तो कभी औद्योगिक विकास के नाम पर खेती की जमीनों का बंदरबाट किया है वह आने वाले पीढ़ियों के लिए कतई शुभ संकेत नहीं हो सकते? राजनीति ने गलत-सही के फैसले पर ताला जड़ दिया है? अजीत जोगी पर पैर तुड़वाने के आरोप लगाने वाले आदिवासी नेता नंदकुमार साय को भी महेन्द्र की मौत पर कुछ नहीं कहना है और न ही हंगामा खड़ा करने वाले भाजपाई भी कुछ कहने से रहे। क्योंकि मंडल, कल्लुरी, मुकेश गुप्ता सहित दर्जनभर आईएएस, आईपीएस को पानी पी-पी कर कोसने वाले भाजपाईयों के राज में इन्हीं की चलती है जो अधिकारी कांग्रेसी राज में दुखी थे वे अब भी दुखी है? मलाई तो छत्तीसगढ़ में उन्हें ही मिलेगा जो चोर होगा, तिकड़मी होगा?

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