मंगलवार, 9 नवंबर 2010

और उसकी शक्ति जाती रही

और उसकी शक्ति जाती रही  बचपन में दादी-नानी की गोद में रात को एक कहानी सुनी थी कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसके हाथ लगाते ही बीमारियां दूर हो जाती। उसने इस शक्ति का प्रयोग करना शुरु कर दिया। धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैलने लगी। जब ख्याति फैलने लगी तो उसकी जय-जयकार होने लगी। अपनी जय-जयकार सुन वह प्रसन्न होने लगा और इस प्रसन्नता के साथ उसके मन में लालच घर करने लगा अब वह इस वरदान के एवज में उपहार भी स्वीकार करने लगा और इसके बाद और लालच बढ़ी तो वह फीस तय कर दिया। फीस तय करने के बाद उसकी शक्ति ईश्वर ने छिन ली। क्योंकि उसे यह वरदान देते समय ही चेता दिया गया था कि वह लालच में न आए।
कहने का तात्पर्य है लालच एक ऐसा तृष्णा है जो बुझती नहीं है इन दिनों इसी तरह की विचित्रता पूरे देश में हैं। कोई भी सांधु-संत प्रसिध्द होता है वह अपराधियों के धन के आगे नतमस्तक हो जाता है। इनके आसपास काले धन वालों का जमावड़ा होने लगता है। पाप करने वाले तो इसलिए दान कर रहे है कि उनका पाप थोड़ा बहुत उतर जाए। पर यह पाप उतर कर इन्हीं साधु-संतों के ऊपर चढ़ने लगा है। वे ऐसे लोगों को समाजसेवी कहने लगे है और आम आदमी मूकदर्शक बना है। बाबा रामदेव हो या मुरारीबाबू या फिर और संतों को मदद करने वालों की लिस्ट में ऐसे अपराधिक लोगों के नाम देख सकते है। भले ही ये साधु संत घृणा पाप से करो पापियों से नहीं या सुधरने का मौका देना चाहिए जैसे चिंतन लोगों के सामने प्रस्तुत करे लेकिन वास्तविकता यह है कि इनसे मिलने वाली मोटी रकन का लोभ साधु-संत भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। देखते ही देखते संतों की संपत्ति कई गुणा बढ़ जा रही है। काले धन साधु-संतों के पास खपाये जा रहे हैं और आयकर विभाग भी इस दान के काले धन पर कुछ नहीं कर पा रहा है। क्या आए दिन साधु-संतों का विवाद में फंसना इन काले धन का परिणाम नहीं है?
बुलंद ने अपने अभियान में इसे भी हिस्सेदार बनाया है कि अब अपराधियों का बहिष्कार का समय आ गया है और इनका साथ देने या अपने साथ बिठाने वालों की भी सार्वजनिक भर्त्सना होनी चाहिए। हिरण माकर या दारु पीकर गाड़ी चढ़ाने वाले या लड़कियों से छेड़छाड़ करने वालों का बहिष्कार होना ही चाहिए। युवाओं और आम लोगों को भी सोचना होगा कि जिसे नायक बनाकर पेश किया जा रहा है क्या वह वास्तविक जीवन में भी नायक है। ऐसे लोगों की करतूतों पर चुप बैठने की वजह या ऐसे लोगों को नायक बनाने का दुष्चक्र की वजह से ही आम आदमी का जीना दूभर हुआ है। आईये इस अभियान में आप भी हिस्सा ले और खलनायक को नायक बनाने की चेष्टा का प्रतिकार करें।

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