क 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जिस तरह से मीडिया जगत पर कालिख पुती है वह मालिकों के लिए नया सबक हो लेकिन पत्रकारों के लिए किसी शर्मिन्दगी से कम नहीं है। विज्ञापन के नाम पर खबरें बेचे जाने की सोच ने इस चौथे स्तंभ पर बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को खतरनाक स्थिति पर लाने लगा है। खासकर अब तक अछूते रहे प्रिंट मीडिया पर जिस तरह से बाजारवाद हावी होने लगा है वह पत्रकारिता गरिमा को खंडित करने वाला है। कभी अखबार निकालना एक मिशन हुआ करता था लेकिन मालिकों के पैसे की भूख ने मीडिया को मंडी और रंडी तक कहने मजबूर कर दिया है। क्या मीडिया सिर्फ अपने ग्राहकों के लिए है जो मोटी रकम दी जाती है।
इस सवाल को यदि नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में उनकी गिनती भी नेता और अधिकारियों के साथ होने लगेगी। यह सच है कि इस अर्थ युग में हर संस्थानों का क्षरण हुआ है लेकिन आज भी लोगों का विश्वास अखबार जगत के प्रति बना हुआ है। आज भी लोग व्यवस्था बनाए रखने में अखबार की भूमिका पर विश्वास करते हैं लोग नेता अधिकारियों के निरंकुशता के खिलाफ अखबार को ही प्रमुख हथियार मान कर अपनी बात कहने में संकोच नहीं करते हैं। लेकिन जिस तरह से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भास्कर ग्रुप का नाम सामने आया है वह दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं शर्मनाक भी है। इसे यहीं रोक देना चाहिए अन्यथा पत्रकारों के पास कुछ भी नहीं बचेगा। सिर्फ नौकरी और जीवन चलाने की मंशा रखने वालों के लिए किसी को कुछ नहीं कहना है लेकिन जो लोग सामाजिक जिम्मेदारी के तहत इस मिशन से जुड़े हैं वे जरुर सोचे कि वे किस तरह से किनके लिए काम कर रहे हैं।
भटनागर की माया
वैसे तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आए दिन नए-नए अखबारों का प्रकाशन होने लगा है कभी अजीत जोगी के खास रहे अशोक भटनागर ने भी लोकमाया के नाम से दैनिक अखबार शुरु कर दिया है। कभी मीडियेटर के रुप में ख्याति प्राप्त अशोक भटनागर को पत्रकार नहीं मिल रहा है तो इसकी वजह उनकी अपनी ईमेज ही है।
रोजी रोटी जरूरी है...
इन दिनों राजधानी के ख्यातिनाम पत्रकार से लेकर फोटोग्राफर एक मंत्री की सेवा बजा रहे हैं। इस दौड़ में सबसे अच्छी बात यह है कि खबरों को लेकर मन मारना नहीं पड़ेगा और वेतन तो अच्छा खासा है ही साथ ही मंत्री जी के साथ रहने से खाने पीने की भी दिक्कत नहीं होगी।
रे की छुट्टी
अंग्रेजी पत्रिका सम-अप से पत्रकारिता करने की सोचने वाले आईएएस अधिकारी बी.के.एस. रे की छुट्टी हो गई है। कहा जाता है कि मंत्रालय में बैठे अफसरों के पंगे से त्रस्त कटारिया को यह फैसला करना पड़ा।
और अंत में...
आज की जनधारा के बिकने की खबर इतनी बार उड़ चुकी है कि अब इस खबर पर कोई ध्यान नहीं देता।
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