मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

जिनसे उम्मीद खी बनाए मजार मेरा,वही मेरे कब्र के पत्थर चुराकर ले गए!

पता नहीं शायर ने यह किस परिपेक्ष्य में कही थी लेकिन छत्तीसगढ़ का वन अमला इन दिनों इसी तरह के दौर से गुजर रहा है। दर्जनों अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले लंबित पड़े हैं और सरकार भी इन्हें प्रमुख पदों पर बिठा रखी है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। सरकार किसी की भी रहे इन अफसरों ने अपनी निजी संपत्तियों में ईजाफा कर भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाया है।
प्रदेश के जिन दर्जनों वन अफसरों पर लोग आयोग की जांच चल रही है उनमें से बालमुकुंद मायरिया, पीएम तिवारी, एससी रहतगांवकर, जेएससीएस राव, एनएस डुंगरियाल, जे.के. उपाध्याय, हेमंत कुमार पाण्डेय, एमडी बडग़ैय्या, अमरनाथ प्रसाद, श्रीनिवास राव, सुधीर अग्रवाल, वी.रामाराव, एस.पी. रजक, सीएस अग्रवाल, तपेश कुमार झा और गोविन्द राव ऐसे अफसर है जो लोक आयोग की जांच के घेरे में होने के बावजूद ऐसे पदों पर बैठे हैं जो प्रमुख पद माने जाते हैं। सरकार कह तो रही है कि वे ईमानदारी से काम कर रही है लेकिन भ्रष्ट अफसरों के भरोसे किस तरह से काम हो रहा होगा आसानी से समझा जा सकता है।
प्रदेश में अफसरशाही किस कदर हावी है यह वन अमलों के कारनामों से समझा जा सकता है। निरकुंश और भ्रष्टाचार में डुबे अफसरों के चलते वन विभाग में माफिया राज चल रहा है। इनकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन अफसरों ने मुख्यमंत्री और वन मंत्री के क्षेत्र में भी घपलेबाजी की है वे तक न केवल नौकरी में बने हुए हैं बल्कि प्रमुख पदों पर आसीन है। क्या हम यह मान लें कि इस मामले में मुख्यमंत्री की नहीं चलती और इससे भी कोई ऊपर है जो ऐसे भ्रष्ट अफसरों को बिठाकर रखे हैं इससे सरकार की छवि बने या बिगड़े इन्हें कोई मतलब नहीं है या फिर मुख्यमंत्री व वन सचिव की इस भ्रष्टाचार में सहमति है।
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 10 साल हो चुके हैं और इन दस सालों में अफसरशाही इस कदर हावी है कि इन लोगों ने सरकार को अपनी मुट्ठी में कर रखा है क्या यह लोकतंत्र की अंधेरगर्दी नहीं है। वन विभाग छत्तीसगढ़ राज्य की रीड़ है आधा क्षेत्र इसी विभाग के पास है जहां वन माफिया सालों से वनों की बर्बादी में लगे हैं यहां रहने वाले लोगों का जीवन स्तर सुधारने अनेक सरकारी योजनाएं भी बनी लेकिन प्राय: सभी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए गए लेकिन इनमें से अधिकांश रुपए अफसरों के जेबों में चला गया। आम लोगों ने इस बीच कई सरकार बदली और विधायक भी बदले गए लेकिन जिसने भी कुर्सी पाई उन्हीं लोगों ने चंद सिक्कों के लालच में ऐसे भ्रष्ट अफसरों को पनाह देने का काम किया क्या यब सब किसी अंधेरगर्दी से कम है।

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