हालांकि छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में चमचागिरी का महत्व तो शुरु से ही रहा है। इस चत्र में दारुखोर से लेकर दलाल तक पत्रकार बन बैठे थे। जिन्होंने कभी एक लाईन खबरें नहीं लिखी हो वे भी संपादक की चमचागिरी करते हुए शहर में रौब जमाने से परहेज नही किया। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के प्रभाव में चंद साल पहले रायपुर आने वाले एक पत्रकार को जब पिछली बार यह पुरस्कार मिला था तभी से पुरस्कारों को लेकर पत्रकार जगत मे तरह तरह की चर्चा शुरु हो गई थी। और इसका ज्यादा इस बार भी चमचागिरी करने वालों ने ही उठा लिया। विधानसभा में इस बार भी जिद करो दुनिया बदलो के उस पत्रकार को पुरस्कार मिल गया जिसकी ड्यूटी प्रेस की तरफ से नहीं लगाई गई थी । इस प्रेस से प्रथम पाली के राजेश व द्वितीय पाली के गोविंद ताकते ही रह गए। और पुरस्कार कोई और ले उड़ा। दूसरा पुरस्कार जिन्हें मिला वह भी उस संसथान को अलविदा कह दिया था। पुरस्कार किस मंत्री के चमचागिरी की वजह से मिला यह सभी जानते हैं।
प्रियंका के नौकरी छोड़ने का राज
इलेक्ट्रानिक मीडिया में अपने कार्यों से धूम मचाने वाली प्रियंका कौशल को छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा। सीधे लकीर देखने वाले तो यही समझ रहे हैं कि शादी ही प्रमुख वजह रही है। अपनी भाषा शैली और कार्यों से पत्रकारिता में स्थापित हुई इस युवती की चले जाने की वजह क्या सिर्फ शादी है या मैंनेजमैंट की नादिरशाही? सवाल सभी का है और जवाब सिर्फ प्रियंका दे सकती है। लेकिन वह भी चुपके से खिसक गई। आखिर छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में अपने तेज तर्रार शैली व काम से अपनी पहचान बनाने वाली प्रियंका को क्यों जाना पड़ा। चमचागिरी के बल पर काम नहीं करने वाले की जगह हमेशा सुरक्षित रहती है और काम करने वाले हमेशा ही प्रताड़ित रहते हैं।
मीडिया में बढ़ते इस खेल से लोग हतप्रभ भी है।
सोनी-पारे में भिडंत
इन दिनों राजधानी में दो पत्रकार प्रफुल्ल पारे और राजकुमार सोनी के बीच की लड़ाई पुलिस तक पहुंच गई है। दोनों की लड़ाई की वजह सिर्फ ब्लॉग में की गई टिपण्णी होगी कहना कठिन है। प्रफुल्ल पारे को भोपाल से आया बता देना या राजकुमार सोनी को भिलाई छाप कह देने से बात नहीं बढ़ सकती। वैसे भी इस शहर के पत्रकारों के लिए न तो प्रफुल्ल पारे ही अनजान है और न ही राजकुमार सोनी। दोनों ही पत्रकारों की अधिकारियों से मधूर संबंध है और वे जाने भी इसलिए जाते हैं।
राजकुमार सोनी ने अपने खिलाफ रिपोर्ट लिखे जाने को षडयंत्र बताया है। यह सच भी हो सकता है क्योंकि हाल ही में उन्होंने एडीजी रामनिवास के खिलाफ यादव ब्रिगेड वाली खबर छापा था। तभी से यह चर्चा रही है कि राजकुमार सोनी से रामनिवास जी नाराज हैं। यह भी कितना सच है या सिर्फ शिगूफा ?
इधर पुलिस के द्वारा जुर्म दर्ज किये जाने को लेकर बिरादरी में नाराजगी है। पहले डीएसपी स्तर के अधिकारी जांच करे तब ही जुर्म दर्जं किया जाना चाहिए। और यह पत्रकारों को भी सोचना होगा कि उनकी कमजोरी का फायदा उठाने में प्रशासन देर नहीं करती।
प्रेस क्लब अध्यक्ष की परेशानी
लगभग पांच से प्रेस क्लब का अध्यक्ष पद संभालने वाले अनिल पुसदकर इन दिनों वसूली बाज पत्रकारों से परेशान है। दामू काड के बाद से प्रेस क्लब मे ऐसे पत्रकारों की शिकायतें कुछ ज्यादा ही आने लगी है। ज्यादातर इलेक्ट्रानिक मीडिया से है। आईडी लेकर धौंस जमाने वाले वसूली के लिए घुम रहे हैं और परेशान लोग अध्यक्ष को फोन कर देते हैं। पांच साल में नाम तो होना ही है और नाम वाले को ही तो लोग फोन करेंगे।
धमकाने वाले अब भी फरार
पत्रकाररिता में अपनी कलम के लिए पहचाने जाने वाले आसिफ इकबाल को धमकाने वाले अब भी पुलिस पकड़ से बाहर है। अब तो पुलिस पर संदेह होने लगा है कि वह जानबुझकर अपराधीयों को नहीं पकड़ रही हैं आखिर पत्रकारों से दुखी भी सबसे ज्यादा पुलिस वाले ही होते हैं और पत्रकार संगठन भी इस मामले में कुछ नहीं बोल रहा है और पत्रकाररिता का दम भाने वाले पत्रकार भी फालो अप नहीं कर रहे हैं। अब क्या कहा जाये।
और अंत में...
पत्रकारिता में चमचागिरी अब संपादको तक ही नही रह गया है संपादक भी मंत्री के चमचे कहलाने लगे हैं। प्रतिष्ठित अखबार के रंगा-बिल्ला की चमचागिरी से नेताओं के चमचों को भी शर्म आने लगी है।
जय हो
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