पता नहीं छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है? सब कुछ उल्टा-पुल्टा चल रहा हैं। कोयले की कालिख ने सरकार का हुलिया ही बिगाड़ दिया है। जिन नौकरशाहों से काम लेने यहां की जनता ने जिस सरकार को चुना है उन्हें ही नौकरशाहों की शिकायत करनी पड़ रही है। नौकरशाह इस कदर हावी है कि सरकार के मुखिया तमाशाबीन बने हुए है। गृहमंत्री को वैसे तो मुख्यमंत्री के बाद सबसे ताकतवर माना जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ में उनकी स्थिति इतनी कमजोर है कि उन्हें अपने ही जिले के कलेक्टर की मुख्य सचिव से शिकायत करनी पड़ रही है। ये वहीं गृहमंत्री है जो कभी तख्ता पलटने का दंभ भरते थे। लेकिन अब लाचार है। मुख्यमंत्री के जिले में जाकर कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कहते हैं तो कभी डीजीपी पर क्रोध करते हैं। विधानसभा में थानों के शराब ठेकेदारों के हाथों बिकने की बात करते हैं। तब आम लोगों का यह सोचना लाजिमी है कि आखिर छत्तीसगढ़ में हो क्या रहा है।
गृहमंत्री के बयानों के बाद एक बात तो तय है कि यहां सरकार नौकरशाह चला रहे हैं? जिनके आगे किसी की नहीं चलती। यह जांच का विषय हो सकता है कि गृहमंत्री व अन्य मंत्रियों की लगातार शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खामोश क्यों हैं। नौकरशाहों को टाईट क्यों नहीं करते लेकिन इसके पीछे ही जनचर्चा सरकार व भाजपा दोनों के लिए खतरनाक है। जनचर्चा के मुताबिक गले तक भ्रष्टाचार और एक-दूसरे की पोल पट्टी जानने की वजह से यहां नौकरशाह हावी है?
इस जनचर्चा को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने मंत्रियों पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए। ये ठीक है कि नौकरशाह के भरोसे के बगैर सुचारू ढंग से काम नहीं हो सकता लेकिन भरोसे का मतलब स्वेच्छा चरिता की छूट नहीं होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री को भी नौकरशाहों की तरह अपने मंत्रियों पर भी भरोसा करना चाहिए क्योंकि मंत्रियों की छवि से ही सरकार की छवि बनती है और यदि अधिकारी मंत्रियों की नहीं सुनेंगे तो यह अच्छा संदेश नहीं होगा। गृहमंत्री के बयान के पीछे तो वजह को मुख्यमंत्री को भी समझना होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें