गर्मी शुरू होते ही छत्तीसगढ़ में पानी की समस्या शुरू हो जाती हैं हर साल का यह रोना हैं। सरकार किसी की भी रही हो इन समस्याओं का हल नहीं हुआ और जिस तरह से सरकार काम कर रही है आने वाले दस -बीस सालों में यह समस्या सुुलझने वालीं नहीं हैं।
सरकार का मतलब अब भष्टाचार हो गया हैं और सत्ता जन सेवा की बजाय अपनी पीढिय़ों के लिए व्यवस्था करने का साधन बन चूका हैं। दो दशक से रायपुर में ही पानी और बिजली को लेकर गर्मी शुरू होते ही हंगामा देख रहा हँू। और इसके उपाय के लिए कोई दीर्घकालिन योजना बनाने में सरकार पूरी तरह असफल रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों का तो और भी बुरा हाल हैं। लेकिन सरकार है कि विकास के दावे करते नहीं थकती।
जब आम आदमी को पानी-बिजली जैसे जरूरी चीज ही उपलब्ध नहीं हो रहा है तब विकास के दावे किस मुंह से की जाती हैं। यह समझ से परे हैं।
कल ही राजधानी में पानी और बिजली को लेकर जोरदार हंगामा हुआ। नगर निगम में भाजपाईयों ने हंगामा किया तो खमतराई में लोगों ने पत्थर बाजी की। इन घटनाओं से सबक लेने की जरूरत इसलिए भी है क्योकि अभी गर्मी शुरू ही हुई है। पूरा दो माह गर्मी बचा है ऐसे में हालात को ठीक ढंग से नही समझा गया तो आने वाले दिनों में कोई अनहोनी से नहीं रोका जा सकेगा।
राजा और इसकी सेना अभी ग्राम सुुराज में लगी हैंं। गांवों में बिजली और पानी की सर्वाधिक समस्या हैं। यदि सुराज दल के पहुंचने के दौरान बिजली चली गई तो विषम स्थिति बन सकती हैं। पहले ही दिन जिस तरह से संसदीय सचिव के भाजपा गांव में सुराज दल को बंधक बनाया गया वह एक चेतावनी हैं।
हमें लगता है कि इस नौटंकी को यहीं समाप्त कर नये सिरे से विकास के लिए सोचना चाहिए। सरकार यह मान ले कि आजादी के सात दशक बाद भी गांवों में रहने वालों को उनका अधिकार नहीं मिला हैं और विकास की अब तक की बातें केवल कल्पना है या बकवास हैं। वक्त रहते इसे नहीं समझा गया तो आने वाले दिनो में जनता का रूख समझना मुस्किल होगा हालांकि पुलिसियां डंडे की जोर पर और सत्ता के दम पर अब तक जन आन्दोलन को सरकार कुचलते रहीं हैं। लेकिन यह स्थिति आगे भी रहेगी कहना कठिन हैं।
संतुलित विकास के लिए नये सिरे से इबादत लिखनी होगी। आखिर गांव वालों को उनके अधिकार से कब तक वंचित रखा जा सकता हैं।
क्या उच्च शिक्षा, सर्वोच्च चिकित्सा व फिटकरी से छने पानी पीने का अधिकार सिर्फ शहर वालों को हैं। यह सोच सरकार को बदलनी होगी और शहर को सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधा गांव वालों को भी दी जानी चाहिए। केवल मुफ्त में चावल-नमक या दूसरी चीजे देकर लंबे अरसे तक किसी को बहलाया नहीं जा सकता।
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