भारतीय मीडिया और जोहरान ममदानी…
भारतीय मीडिया ख़ुद अपना तमाशा बना रही है चाहे ममदानी का मामला हो या शेफाली का… संवेदनहीनता की पराकाष्ठा और सत्ता की जी हुजूरी का ऐसा उदाहरण आपको पूरी दुनिया में नहीं मिलेगा…
भारतीय मीडिया का चेहरा आज अपनी विश्वसनीयता खो चुका है मीडिया का काम सूचना देना है, न कि सनसनी फैलाना। लेकिन टीआरपी की अंधी दौड़ में, चैनल और डिजिटल प्लेटफॉर्म तथ्यों को दरकिनार कर अफवाहों को हवा देते हैं। शेफाली जरीवाला, जो महज अपने एक नृत्य गीत के लिए जानी जाती हैं, को इस बार उनकी कथित मृत्यु की खबरों ने सुर्खियों में ला दिया। बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के, उनके निजी जीवन, करियर और यहां तक कि मृत्यु के काल्पनिक कारणों पर बहस छेड़ दी गई। क्या यह पत्रकारिता है या संवेदनहीनता की पराकाष्ठा?
यह प्रवृत्ति केवल शेफाली तक सीमित नहीं है। कोई भी सेलिब्रिटी, चाहे वह कितना ही सम्मानित क्यों न हो, इस मीडिया की भूख का शिकार बन सकता है। मृत्यु जैसे गंभीर विषय को भी मजाक बना देना, परिजनों के दुख को तमाशा बनाना, क्या यही है हमारी चौथी दीवार का कर्तव्य? कथावाचक बन चूका मीडिया सुधरने वाला नहीं है , अब यह तय हो गया है !
रील देखकर समय गुजारती पीढ़ी से भी संजीदगी की उम्मीद नहीं है। उनके भी सोंच और संवेदना में उथलापन पसर गया है। फिर भी आग्रह है कि सनसनी के प्रसार का तमाशा बंद होना चहिये।
भारतीय (गुजराती) मूल के डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से न्यूयॉर्क के मेयर प्रत्याशी जोहरान ममदानी की भारत में मुख्यधारा की मीडिया द्वारा खूब आलोचना हो रही।
हालांकि ममदानी एक प्रगतिशील राजनेता हैं, जो मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखर रहे हैं। उनके 2002 के गुजरात दंगों और भारत में मुस्लिम उत्पीड़न संबंधी बयान उनके वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रति समर्थन को दर्शाते हैं, जो उनकी राजनीतिक विचारधारा का हिस्सा है। कंगना राणावत और अभिषेक मनु सिंघवी को मीडिया में बने रहने के लिए मुद्दा चाहिए जो वो बखूबी निभा रहे हैं।
उनकी इजरायल-नेतन्याहू तुलना फिलिस्तीन समर्थन के संदर्भ में थी, जिसे उनके समर्थक उत्पीड़न के खिलाफ साहसी रुख मानते हैं। न्यूयॉर्क में 15 लाख से अधिक यहूदी हैं जिसमें आधे से अधिक ममदानी के समर्थन में हैं। ममदानी के बयान उनके न्यूयॉर्क के मतदाताओं के लिए हो सकते हैं, न कि भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप। यह विवाद उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारत की संवेदनशीलता के बीच तनाव को उजागर करता है।
अब तक आपको पता चल ही गया होगा। प्रख्यात फ़िल्मकार मीरा नायर के पुत्र 33 वर्षीय इस अप्रवासी मुस्लिम अमेरिकन युवा ने दुनिया भर के मीडिया को अपने बारे में बात करने के लिए काफी मसाला दे दिया है। सब कुछ ठीक रहा तो यह शख्स नवंबर में न्यूयॉर्क का मेयर बन जाएगा। महज पिछले दो दिनों में ममदानी भारतीय मीडिया में विलेन बनकर उभर रहे है , वजह बस इतनी सी है कि उन्होंने गुजरात के 2002 के जख्मों के लिए मोदी का नाम लिया है साथ ही नेतन्याहू का नाम भी लेते हुए इन दोनों को ' युद्ध अपराधी ' करार दिया है।
अब भारतीय पालतू मीडिया इस बात को कैसे बर्दाश्त कर सकता है! जो मोदी के खिलाफ बोलेगा उसे भारत के दुश्मन के रूप में प्रोजेक्ट करना उसका परम धर्म होगा ही। लिहाजा ममदानी इस समय भारत के ' एनीमी नंबर वन ' घोषित हो चुके है।
न्यूयॉर्क का मेयर कोई भी बने , उससे हमारी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन इनके वीडियो ढूढ़ कर देखने का प्रयास करे , अंग्रेजी के अलावा आठ भारतीय भाषाओ को धारा प्रवाह बोलने वाला यह युवक आपको प्रभावित जरूर करेगा , इसकी गारंटी है।
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