देश प्रेम के मायने…
आज जब देशप्रेम के मायने बदल गये है तब 1937 की घटना को याद करते हुए मन भर जाता है कि इस दौर में मोदी सत्ता ने क्या कर दिया है तब इसे एक बार ज़रूर पढ़े…
डेढ़ घंटा,,, आज चंचल दादा( Chanchal Bhu )ने एक पोस्ट डाली है डेढ़ घंटे वाले पत्र की कांग्रेस पर,, इसी पर याद आया डेढ़ लाइन के एक पत्र का वह भी कांग्रेस से ही संबंधित है। 👉
यू पी मे एक जिला है गाजीपुर,,। जिसे शहीदों की धरती, वीरों का देश भी कहते हैं।यह जिला पहले से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है।
मंगल पांडे से लेकर अब्दुल हमीद तक के नाम को सभी जानते हैं।
उसी जिले की एक तहसील है, सैदपुर। सन् रहा होगा 1937का। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू ही हुआ था अभी।
दो भाईयों के परिवार में पांच लड़के वयस्क हो रहे थे। बड़ा बेटा जिला कांग्रेस का महा मंत्री बन कर देश के लिए जेल में था।
दूसरा घर की खेती देख रहा था, तीसरा हाई स्कूल पास कर निकला ही था। पिता से उपेच्छित था, किन्तु बड़े भाई का लाडला।
नई नई भर्ती हो रही थी दरोगा की, चुन लिया गया। किन्तु बिना भाई के परमिशन के जाए तो जाए कैसे,,,जाए !
अब परमिशन भी कैसे ले,,? पूछने की भी हिम्मत नहीं। भाई के प्यार के साथ उनके गुस्से से वाक़िफ़। इरादा हुआ पत्र लिखकर पूछने का।
अब पत्र में भी भला क्या लिखे,,? बहुत सोचने के बाद लिखा,,👉👇
"भ्राता जी प्रणाम,
दरोगा की नौकरी करने चंदोली जाए क्या? "
अब यह पत्र कैसे पहुँचे, खुद दे कर उत्तर प्राप्त करने का निर्णय लेकर पहुँच गए जिला जेल, गाजीपुर।
उस समय भी नमक सत्याग्रह के कारण जेल में बन्द थे बड़े भाई, नर सिंह जी। पहुँचने के बाद गाँव घर का हाल - चाल हुआ। घर से लाये कुछ सामान के साथ पत्र दे दिया धीरे से।
भाई ने सोचा कोई गुप्त खबर होगी,चुपके से पीछे जाकर पढ़ने लगे।
सिर्फ एक मिनट भी नहीं बिता होगा,,, गुस्से से एकदम लाल, क्रोध में फुफकारते हुए चिल्लाये,,, 👉👇
" अरे,,कमीना तूने यह सोच कैसे ली, कुत्तों की नौकरी करने की,,!?,
,,,मै कांग्रेस में रहु और मेरे घर का कोई इन कुत्तों का तलुवा चाटे,,, यह नहीं हो सकता। ,,,,, "
"तुझे नौकरी करनी है तो रुक तुझे मै अभी रानिवा आश्रम(फैजाबाद) भेजवा दे रहा हूँ। जा तु वहाँ गाँधी आश्रम के काम को कर। तुझे वहाँ तनख्वाह भी मिलेंगी और तु देश की सेवा भी करेगा। "
तुरंत एक कागज पर किसी के नाम पत्र लिख कर दे दिये।अगले एक महीने के अंदर छोटा भाई रनिवा आश्रम में हथकरघा का काम सिख रहा था।
दरसल उस समय कांग्रेस के नेताओं को तोड़ने के लिए अंग्रेज हर हथकंडे अपना रहे थे। जब जेल और मार के बाद भी नर सिंह नही टूटे और ना कांग्रेस छोड़ी तो जेलर ने छोटे भाई को मिलाने के लिए नई हो रही भर्ती में उनकी पोस्टिंग करवा दी।
किन्तु वह बबर शेर ही क्या जो सवा शेर पर भारी ना पड़े,,नर सिंह,!
डेढ़ लाइन के पत्र पर डेढ़ पन्ने का पत्र भारी पड़ गया।एक साल रनिवा आश्रम मे रह कर कपड़े की रंगाई , विनाई, धुलाई हुई।
किन्तु दुर्भाग्य,,, जेल में पुलिस की पिटाई और कुपोषण के कारण जल्द ही टी वी से बड़े भाई जी की मृत्यु के बाद उन्हें घर आना पड़ा।
फिर वापस नहीं जा पाए रनिवा,,,। बल्कि भाई के ना रहने पर फ़ौज मे चले गए। फिर वहाँ से नेताजी के साथ,,आजाद हिंद फ़ौज में।।🙏🏾
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