क्या हिट होगा-वोट चोरी…
राहुल गांधी ने फ़िल्म रिलीज़ कर दी है, पहले हफ़्ते में जिस तरह से यह फ़िल्म ने हलचल मचाई है उससे सत्ता की नींद उड़ चुकी है, चुनाव आयोग बेशर्मी पर उतर आया है ऐसे में अब दूसरे राज्यों से वोट चोरी की नई नई ख़बर क्या मोदी सत्ता को नई मुसीबत की तरफ़ नहीं ले जा रहा है, सोचिए और इसे ऐसे समझे…
जब विचारधाराओं में द्वंद हो तब बीच का कोई रास्ता नहीं होता, नहीं हो सकता.और होना भी नहीं चाहिए।लोकतंत्र का रास्ता लंबा और वृहद है. संघर्ष के बिना इसकी ज़मीन तैयार नहीं हो सकती. पिछले दशक में हमने जितने मानव अधिकारों की और एक व्यक्ति के निजी अधिकारों की हत्या हमने देखी हैं उससे हमारा वर्तमान और भविष्य ऐसे रास्ते पर आकर खड़ा हो गया है कि चकाचौंध भरी रोशनी में हाशिए की सड़क नज़र नहीं आती. नतीजतन इसे डेमोक्रेसी की कमजोरी के रूप में भी देखा जा सकता है.
जब आपका वोट ही सुरक्षित नहीं है तो आप किस अधिकार और भविष्य की बात करेंगे?
वोट चोरी विचार और भरोसे की चोरी है.
इसके ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद हो.
मामला तब शुरू हुआ जब ज़मीन में दिख रहा ग़ुस्सा और चुनाव परिणाम अलग अलग दिखने लगा, विपक्ष को जब ये महसूस हुआ कि चुनाव में कुछ झोल हो रहा है तो उन्होंने चुनाव आयोग से कुछ दस्तावेज मुहैया करवाने का अनुरोध किया।
उधर चुनाव आयोग जिसे कुछ लोग चूना आयोग तो कुछ लोग केंचुआ भी कहते हुए नजर आते हैं, ने विपक्ष को ट्रक भर के कागज सौंप दिए।
लगा कि ये 7 फिट ऊंचा कागजों का ढेर देखकर शायद विपक्ष इनका विश्लेषण करने का इरादा या तो छोड़ देगा या फिर इनका विश्लेषण करते करते शायद विपक्ष बुढा ही हो जाए।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।लेकिन हुआ वैसा जो चुनाव आयोग ने सोचा नहीं था। विपक्ष ने इस दौरान कुछ सूचनाएँ आरटीआई लगाकर हासिल की तो बाकी सूचनाएँ अपनी अलग अलग टीमों के जरिये हासिल की।इसे देख चुनाव आयोग सकते में आ गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि विपक्ष इतनी जल्दी ऐसा डेटा (तथ्य) ले आएगा।
जब विपक्ष ने उन्हीं कागजों को दिखाया जो चुनाव आयोग ने दिए थे। उन्हीं कागजों में खोज निकाला कि कोई आदित्य श्री वास्तव चार राज्यों में वोट डाल रहा है तो कहीं एक मकान में 80 लोग रह रहे हैं, तो कहीं 1 लाख से अधिक फर्जी वोट पाए गए, तो कहीं ऐसे मकान और एड्रेस थे जो वास्तव में कहीं थे ही नहीं।
विपक्ष ने मांग की कि उन्हें डिजिटल डेटा दिया जाए, मगर चुनाव आयोग जानता था कि ऐसा करने पर पोल खुल जाएगी। लिहाजा डिजिटल डेटा देने के बजाय जो उपलब्ध था वो भी वेबसाइट से हटा दिया गया। और राहुल गाँधी को ही कह दिया कि आप शपथ पत्र दीजिये।
शपथ पत्र उन कागजों की गड़बड़ी के लिए राहुल गाँधी से मांगा जा रहा था, जो कागज असल में तो चुनाव आयोग के ही थे। कमाल का खेल रचा जा रहा था।
और शपथ पत्र भी वो मांग रहा था जिसके कागजों में बिहार में कुत्ता सिंह ( डॉगी सिंह), कौआ सिंह और यहाँ तक की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक नाम लिस्ट में जोड़ दिए।
उधर बिहार में पुनरीक्षण के नाम पर 65 लाख लोगों के मत का अधिकार ही छीन लिया जो उनको संविधान से प्राप्त था।
जब विपक्ष ने इसका कारण पूछा तो साफ कह दिया कि हम कारण नहीं बताएंगे। नाम किस किस के काटे ये भी नहीं बताएंगे। यानि कि खुद को खुद ही के जाल में फसाये जा रहे थे माननीय शायरी वाले आयोग जी।
संविधान ने भारत में भारतीय नागरिकों को व्यस्क मताधिकार का अधिकार दिया है। जिसकी उम्र 18 वर्ष या अधिक है उसे बिना जाति, धर्म, लिंग का भेद किए, चुनाव का अधिकार होगा। लेकिन वही अधिकार अब चोरी होने लगे तो लोकतंत्र और संविधान के क्या मायने रह जाएंगे।
बात राहुल गाँधी ने उठाई है लेकिन चिंतन और मनन पूरे देश को करना चाहिए कि क्या आप अपने वोट के अधिकार को चोरी होते हुए देखना चाहोगे?
हालांकि इस गंभीर मुद्दे पर मीडिया को सरकार से सफाई मांगनी चाहिए थी, लेकिन मीडिया का कहना है कि वे सरकार से सवाल करने का कार्य 2014 में छोड़ चुके हैं अब एक बार छोड़ा गया कार्य वापस पकड़ना अच्छा नहीं लगता। फिर भी आप जिद्द करते हैं तो हम जब सरकार बदलेगी तब ये कार्य दुबारा शुरू कर देंगे। तो फिलहाल चौथे पाए से इससे अधिक उम्मीद करना उम्मीद की ही तौहीन करने जैसा होगा।
सोचना ये है कि-
लोकतंत्र में जनता सरकार को चुनती हैं अपने वोट के जरिये तो क्या वो वोट लुट जाने दोगे?
सवालों के जवाब जिनको देने चाहिए वो विपक्ष को हिरासत में ले रहा है बाकी सब ठीक....
(साभार)
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