ये लोग आते कहाँ से हैं…
एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वैसे तो कुछ भी अलग नहीं कहा, नाम बदलनेवाला संस्कार आरएसएस से लिए लोगों से और कोई उम्मीद करनी भी नहीं चाहिये हालाँकि अभी तो और भी मुग़ल और अंग्रेज़ी नाम की फ़ेहरिस्त है जिसे बदले जाने का संस्कार बाक़ी है लेकिन मोहन यादव नाम बदलने के फेर में ये भूल गये कि प्रभु कृष्ण का यह नाम भारतीय जनमानस में भीतर तक बैठा है…
मध्यप्रप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को शायद यह बात मालूम नहीं है कि उनके इस अभियान से वो भजन झूठा पड़ जाएगा
"मैया मोरी मैं नहीं माखन खाओ"
इसकी पंक्तियां बदलेगी अगले चरण में मोहन सरकार। वो क्या होगी अभी राय शुमारी की जाएगी भक्त मंडल से फ़िर तय किया जाएगा।
एक फिल्मी गाना है "मच गया शोर सारी नगरी रे आया बिरज का बांका सम्हाल तेरी गगरी रे।" इस गाने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा, इंटरनेट से इसे हटाने का आदेश दिया जाएगा।
भक्ति कालीन कवियों जैसे सूरदास, रसखान, मीरा आदि के भजनों की समीक्षा की जाएगी जिसके लिए एक कमेटी बनाई जाएगी। वाट्सअप यूनिवर्सिटी से Phd योग्यता प्राप्त विशेषज्ञों की भर्ती की जाएगी इस कमेटी के लिए।
सबसे बड़ा सवाल यह आएगा कि माखन का आविष्कार ही श्री कृष्ण के कारण हुआ है। इसके पहले किसी ग्रन्थ या पुराण में उल्लेख नहीं मिलता माखन का। अब अगर कृष्ण जी माखन चोर नहीं हैं तो इसे खायेगा कौन? भगवान श्री कृष्ण ने जब भी माखन खाया चुराकर ही खाया, चाहे वह मां यशोदा से हो या गोपियों की मटकी से। यह अलग बात है कि मथुरा जाने के बाद उन्होंने बंसी और माखन दोनों का त्याग कर दिया था।
पता नहीं सरकारें किस प्रकार से ऐसे निर्णय लेती है जिससे इतिहास बदलने की आवश्यकता पड़ जाती है। अब कोई वामपंथी यह न कह दे कि कृष्ण ने माखन के माध्यम से, गरीब गुरबे को वो वस्तु जो साधारण तो हो लेकिन आसानी से उपलब्ध न हो, उसे चुराकर उपयोग करने की सीख दी है। इसलिए सरकार उन्हें माखन चोर कहने से बचना चाहती है ताकि जनता उनके बताए रस्ते पर न चले। एक जातिवादी भाई यह कह रहे थे कि भगवान कृष्ण यादव कुल दीपक हैं इसलिए उन्हें सरकार माखन चोर की पदवी से हटाना चाहती है। अगर वहीं भगवान ब्राह्मण या क्षत्रिय होते तो ऐसा कदम नहीं उठाती। इस खबर के सामने आने से जितने मुँह उतनी बातें सुनाई पड़ रही हैं।
इसी माखन की चोरी के बाद माता यशोदा ने भगवान के मुख में त्रिलोक दर्शन किए थे सरकार इसीलिए तो नहीं डर रही है कि वोट चोरी मामले में केचुआ का मुँह खोल कर विपक्ष सारा कुछ साफ़ साफ़ देख न ले।
बड़ी विकट विपदा है सरकारें धर्म में घुस रही हैं और धर्माचार्य सरकार में। वो अपनी गद्दी से राजनीतिक जुमले उछालते हैं तो सरकारें भी क्यों पीछे रहे। मंदिर मस्जिद के अलावा भक्तों की भावनाओं को हवा देने का काम इनके विधायक मंत्री भी बेहतर तरीके से अंजाम दे सकते हैं।
मोहन सरकार का यह कदम निश्चित ही स्वागतेय है। इस आंदोलन को पूरा करने के बाद इन्हें भगवान राम के लिए भी कोई योजना बनानी चाहिए। जैसे भगवान राम ने सीता की अग्नि परीक्षा नहीं ली थी। या फ़िर रावण ने सीता हरण नहीं किया था। या फ़िर हनुमान कनिष्क के नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में मिले थे। ऐसे कई विषय हो सकते हैं।
सरकारें चाहें तो बुद्ध, नानक, महावीर, आदि पर भी शोध कर इस तरह के प्रयास कर सकती है। हर अवतार हर भगवान के साथ कुछ न कुछ ऐसी बात या घटना जुड़ी है जिसे उठाकर सरकारें अपने आप को सुरक्षित रखने और जनता को उलझाए रखने का काम कर सकती हैं। फ़िर उनकी आईटी सेल को इससे रोज़गार भी मिल जाता है।
मोहन सरकार को इस अनोखे विषय पर चिंतन करने और संवेदन शीलता दिखने के लिए किसी श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए।(साभार)
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