छत्तीसगढ सरकार क्या आम लोगों की सरकार है? यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे हैं क्योंकि छत्तीसगढ में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। सब तरफ राम नाम की लूट मची है। सरकार में बैठे मंत्री से लेकर अधिकारी मनमानी पर उतारू है यहां तक कि विधानसभा में भी प्रश्नों के जवाब ठीक से नहीं दिए जा रहे हैं और सारा खेल एक सोची समझी रणनीति के तहत चल रहा है ताकि उद्योगपतियों को अधिकधिक लाभ मिले।
सरकार की स्थिति तो गृहमंत्री ननकीराम कंवर के अलग-अलग समय पर दिए दो बयानों से लगाया जा सकता है पहला बयान गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री के गृह जिले में जाकर पुलिस कप्तान को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहा। यह किस परिप्रेक्ष्य में कहा गया यह बताने की जरूरत नहीं है लेकिन विधानसभा में उनका यह कहना कि पुलिस वाले दस हजार रुपया महिना लेकर शराब वालों के लिए काम करते हैं यह सरकार के लिए डूब मरने वाली बात है। इतना ही नहीं है पूरा मामला। दरअसल राज्य बनने के बाद यहां की प्रचुर धन संपदा को लुटने में सरकार ने जिस तरह से उद्योगपतियों को सहयोग किया है वैसा आजादी के बाद किसी भी प्रदेश में नहीं हुआ होगा। जिंदल से लेकर बालको और अल्ट्राटेक से लेकर दूसरे उद्योगपतियों की मनमानी से आए दिन अखबार रंगे पड़े हैं। यहां तक कि बालको में हुई चिमनी कांड भी ऐसी जमीन पर हुई जो बालको ने कब्जा कर रखी है। शायद यहीं वजह है कि अजीत प्रमोद कुमार जोगी यह सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर सरकार अनिल अग्रवाल से डरती क्यों हैं।
दो चार सौ फुट जमीन पर कब्जा कर अपना आशियाना बनाने वालो पर बुलडोजर चलाने वाली सरकार उद्योगों द्वारा अवैध कब्जे की गई हजारों एकड़ जमीन को लेकर क्यों खामोश है। क्या इसके एवज में मुख्यमंत्री से लेकर अन्य मंत्री व सरकारी अधिकारी को लाखों रुपए दिए गए हैं। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार को देना ही होगा कि वह उद्योगपतियों की मनमानी पर क्या इसलिए चुप है क्योंकि वहां से उन्हें पैसे मिल रहे हैं? आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए बैठी सरकार को क्या यह नहीं पता है कि उद्योगपतियों की मनमानी से आम आदमी प्रदूषण की वजह से बीमार हो रहा है और उनके गुण्डे आम लोगों को पीट रहे हैं।
क्या सरकार को खबर है कि उसके दर्जनभर से अधिक आईएएस अधिकारियों ने मौली श्री विहार में अपने बंगलों को इन्हीं उद्योगपतियों को लाखों रुपए किराए पर दे रखा है। एक साधारण आदमी भी समझ सकता है कि कोई किसी के 15-20 हजार किराये वाली जगह को एक लाख रुपए किराये में क्यों ले रहा है फिर यह बात सरकार के समझ में क्यों नहीं आ रहा है। क्या ऐसा नहीं है कि इन उद्योगपतियों ने प्रदेश के इन आईएएस अधिकारियों को ओब्लाईज् कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। उद्योगों को जिस पैमाने पर जमीन दी जा रही है और उन्हें जमीन कब्जा करने की छूट दी जा रही है क्या यह किसी अंधेरगर्दी से कम है। गरीबों के नाम पर दिए जाने वाले चावल क्या राईस मिलरों व धन्ना सेठों के गोदाम में नहीं जा रहा है। चौतरफा भ्रष्टाचार ने छत्तीसगढ क़ी वित्तीय स्थिति को डगमगा दिया है और सरकार ने इस पर अंकुश नहीं लगाया तो इसके दुखद परिणाम आना तय है।
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