आरएसएस का संस्कार या सुराना का प्रभाव...
यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्कार है या भारतीय जनता पार्टी का कारनामा है यह तो आम जनता तय करेगी लेकिन प्रदेश के महाधिवक्ता के पद पर जिस देवराज सुराना को बिठाया गया है उनके ही नहीं उनके परिवार जनों के खिलाफ लगभग दर्जनभर से अधिक मामले हैं। मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हथियाने के अलावा अपने जनसंघी प्रभाव का उपयोग कर काम करवाने वाले व्यक्ति को सरकार कैसे महाधिवक्ता बना दी यह तो वही जाने लेकिन ऐसे व्यक्ति के महाधिवक्ता बनने से क्या कुछ हो रहा होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाया में रहे देवराज सुराना राजधानीवासियों के लिए अपरिचित नाम नहीं है। राजधानी वासियों के बीच उनकी पहचान जनसंघी के अलावा एक वकील की भी है लेकिन अब हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि जनसंघ के सेवाभाव के पीछे देवराज सुराना और उनके परिजनों का कारनामा कितना भयावह है कि ऐसे व्यक्ति को महाधिवक्ता जैसे जिम्मेदार पद पर बिठाना कितना घातक हो सकता है। देवराज सुराना और उनके पुत्रद्वय आनंद सुराना, सुरेन्द्र सुराना, पुत्रवधु श्रीमती चेतना सुराना, दामाद विजयचंद सुराना यानी परिवार के अमूमन सभी लोगों पर मंदिर की जमीन, आदिवासियों की जमीन सहित अन्य आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने सरकार ने इस घपलेबाजी को नजरअंदाज तो किया ही है संवैधानिक नियमों की भी अनदेखी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 165(1) के अनुसार प्रत्येक राय का रायपाल उसी व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाता है जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित होता है। ऐसे में 82 साल के व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाना स्पष्ट करता है कि किस तरह से आरएसएस या भाजपा के प्रभाव में देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाया गया है। जबकि नियमानुसार 62 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने का पात्र नहीं है।
देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने में आरएसएस या भाजपा की भूमिका की चर्चा बाद में की जाएगी। यहां हम उनके व उनके परिजनों के कृत्यों पर प्रकाश डालेंगे तथा हम अपने पाठकों को यह भी बताएंगे कि किस तरह से देवराज सुराना के परिवार की नानेश बिल्डर्स से अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और कैसे कलेक्टर से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके प्रभाव में अनैतिक कार्य किया। दरअसल देवराज सुराना और उनके परिवार तब विवाद में आए जब इनकी कंपनी नानेश बिल्डर्स से प्राईवेट लिमिटेड ने गोपियापारा स्थित श्री हनुमान मंदिर की भाठागांव स्थित बेशकिमती जमीन को खरीदा। कहा जाता है कि इस जमीन की फर्जी तरीके से दो रजिस्ट्री कराई गई। इसमें भारतभूषण नामक फर्जी सर्वराकार से दस्तखत कराए गए। इस फर्जी रजिस्ट्री की जानकारी होने पर जब हिन्दू महासभा ने आपत्ति की तो जोगी शासन काल में सन् 2001 में इस पर रोक लगा दी गई। इसके बाद जैसे ही भाजपा की सरकार सत्ता में आई देवराज सुराना पर अपने प्रभाव में इस विक्रय पत्रों को 17-3-04 को पंजीयन करा लिया। इस भूमि को क्रय करने के लिए देवराज सुराना के खाते से दो लाख देवराज सिंह सुराना एचयूएफ के खाते से दो लाख 51 हजार से निकालकर 8 मार्च 2001 को नानेश बिल्डर्स के खाते में जमा किए गए।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि 2001 में तत्कालीन कलेक्टर ने हिन्दू महासभा की शिकायत पर की गई जांच रपट में यह लिखा है कि यह भूमि श्री हनुमान मंदिर प्रबंधक कलेक्टर रायपुर के नाम दर्ज होने के कारण विक्रय योग्य नहीं है। जांच प्रतिवेदन में मुख्यालय उपपंजीयक एवं तत्कालीन तहसीलदार रायपुर के विरुध्द कार्यवाही किया जाना बताया गया है एवं जिला पंजीयक रायपुर को लिखा है कि भविष्य में अग्रिम आदेश तक कोई रजिस्ट्री ना किया जाए।
बताया जाता है कि 2004 में अपने प्रभाव पर इस जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद जब विवाद बढ़ता दिखा तो नानेश बिल्डर्स ने यह जमीन रवि वासवानी और सुशील अग्रवाल रामसागरपारा को बेच दी। इस पर जब हिन्दू महासभा ने पुन: आपत्ति की तो तहसीलदार ने नामांतरण रोक दिया है और जब मामला उलझता दिखा तो विक्रय की गई जमीन का नानेश बिल्डर्स ने आश्चर्यजनक रुप से अपने नाम पर डायवर्सन करा लिया। यानी जमीन बेचने के बाद किस तरह से डायवर्सन की कार्रवाई की गई होगी समझा जा सकता है। जबकि अब भी भू-अभिलेखों में सुशील अग्रवाल एवं रवि वासवानी वगैरह का नाम भूमि स्वामी के रुप में दर्ज है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इन्हें महाधिवक्ता कैसे बनाया गया यह समझा जा सकता है।
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