गुरुवार, 9 सितंबर 2010

क्यों ठंडा पड़ रहा युवाओं का खून...

इन दिनों पूरे देश में अजीब सा माहौल है। सांसद-विधायक अपना वेतन और सुविधा बढ़ाने में लगे हैं। भ्रष्ट होते नौकरशाह से आम आदमी त्रस्त है और सरकार उद्योगपतियों की जेब मे है उद्योगो के लिए जमीनें दी जा रही है अपनी सुविधा के लिए राजधानी बसाए जा रहे हैं और पर्यावरण की स्थिति चिंताजनक हो गई है। शासकीय कर्मचारी अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने में आमदा है और पूरी सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद संविदा पर रख रही है और देश का युवा पढ़ाई और कमाई में सब कुछ ऐसा होम कर देना चाहता है मानों पैसा ही सब कुछ है?
इस स्थिति के खिलाफ न कोई विवेकानंद है और न महात्मा गांधी, विनोबा भावे। जिन्हें जनता चुन रही है वे ही जब अपनी सुविधा में मर रहे हो तो युवा किसे आदर्श बनाएं। एक जमाना था जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ही नहीं देश के कई शहरों में छात्र नेताओं का बोलबाला था और उनके किसी भी बातों पर शासन-प्रशासन के होथ उड़ जाते थे। भ्रष्टाचारी अफसर हो या चरित्रहीन नेता सभी के मन में भय था कि गलत करने पर युवा छोड़ेंगे नहीं। लेकिन पिछले दो दशकों में शिक्षा पद्धति में जो बदलाव हुआ और युवाओं में एनएसयूआई, एबीवीपी या युवा ब्रिगेडरों ने पट्टा डालना शुरु किया तभी से इस देश में भ्रष्टाचार की एक नई ईबादत लिखी जा रही है। पहले पढ़ाई का बोझ और फिर पैसा कमाने की धुन ने समाज देश का सर्वाधिक अहित किया। शिक्षा के व्यवसायीकरण के चलते युवाओं की सोच भी व्यवसायिक हो गई।
छत्तीसगढ़ में एक जमाना था जब महंगाई को लेकर छात्र नेता पिल पड़ते थे। गंदगी पर निगम अधिकारियों के मुंह पर कालिख से लेकर सांसद-विधायकों की धोती तक खोल दी जाती थी। अब यह सब कुछ नहीं दिखता। यह अच्छी बात भी है लेकिन इसका दुष्परिणाम सबके सामने है। भूमाफिया से लेकर भ्रष्ट नेता-अफसरों से आम आदमी त्रस्त है। राशन दुकान से लेकर शिक्षा तक में माफिया हावी है। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई का स्तर बदत्तर होता जा रहा है और शिक्षा मंत्री चंद रुपयों के लालच में विवादास्पद लोगों को प्रमुख पदों पर बिठा रहे हैं। ऐसे में शिक्षा किस तरह की होगी समझा जा सकता है। जो लोग सरकारी नौकरी में है वे सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग कर रहे है। 58 से 60 हो चुका अब 62-65 की मांग है और यह मांग भी पूरी हुई तो लोगों को फिर नौकरी के लिए इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन वे लोग भी खुलकर विरोध नहीं कर रहे है जो लोग निर्धारित आयु सीमा के करीब है। सरकारी सेवानिवृत्त को संविदा पर संविदा दिए जा रही है तब भी लोग चुप है।
उद्योगों के कारण शहर का पर्यावरण बर्बाद हो रहा है। खेत बंजर हो रहे हैं पानी जहरीला हो रहा है और सरकार इसके खिलाफ कार्रवाई की बजाय उद्योग के लिए किसानी जमीन अधिग्रहित कर रही है। छत्तीसगढ़ में तो आम चर्चा है कि भ्रष्टाचार चरम पर है गरीबों का चावल तक खाया जा रहा है और नौकरशाह मनमर्जी कर रहे है आईएएस बाबूलाल अग्रवाल हो या मालिक मकबूजा कांड के दोषी आईएएस नारायण सिंह सभी को प्रमुख पदों पर बिठाया जा रहा है।

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