निजी स्कूलों की मनमानी पर सरकार कुछ नहीं करने वाली हैं। ऐसा नही हैं की सरकार कुछ नहीं कर सकती। चाहे तो सरकार सब कुछ कर सकती हैं। लेकिन सरकार की मर्जी हैं। आखिर उनकी जेब कौंन भरेगा हल्ला मचाओगे तो सरकार बयान दे देगी की मनमानी नहीं चलने दी जाायेगी। बस।
छत्तीसगढ़ की राजधानी ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों की दादागिरी किसी से छिपी नहीं हैं। दो-चार कमरों में लगने वाले स्कूलों का भी सरकार कुछ नहीं बिगाड़ पाती। मनमानी या दादागिरी और इसे गुण्डा गर्दी भी कहा जा सकता हैं। लेकिन यह सरकार को नहीं दिखता।
इस साल फिर कुछ पालक निजी स्कूलों की इस गुण्डागर्दी के खिलाफ सामने आये हैं लेकिन यह डरा सकने वाला नहीं दिखता। साल दर साल पालकों की जेब से अधिक से अधिक पैसे निकाले जाने की उनकी तरकीब के आगे आम आदमी मजबूर इसलिए हैं क्योंकि सरकार स्कूल में पढ़ाई का माध्यम अंगे्रजी रखा ही नहीं हैं, स्कूलों में टीचरों की कमी हैं।
यही वजह हैं कि निजी स्कूलों की गुण्दागर्दी किसी चौराहों पर लूटपाट करने वाले या हफ्ता वसूलने वालों जैसे स्थिति में पहुंच गई हैं। क्या सरकार को यह नहीं मालूम हैं कि हर साल फीस में बढ़ोतरी के अलावा भवन मरम्मत से लेकर निर्माण के लिए भी पैसे वसूले जाते हैं। हर साल किताबें बदल दी जाती हैं और ये किताबें वही मिलती हैं जो दूकानदार स्कूलों को कमीशन देते हैं। ड्रेस भी अमूमन तय दुकानों से खरीदना पड़ता हैं जुता,चप्पल ,टाई, मोजा तक तय दुकानों से ही खरीदना पड़ता है और इन दुकानों से एक मोटी रकम कमीशन के रुप में स्कूलों में पहुंचती हैं। यह सब सरकार नहीं देख रही है ऐसा नहीं हैं। सरकार में बैठे लोंगो के बच्चे भी इन्हीं स्कूलों में पढ़ रहे हैं। लेकिन पैसे की भूख ने उनकी जमीर को इन निजी स्कूल वालों के पास गिरवी रख छोड़ा हैं। सालों से इसकी शिकायतें होती रहती हैं। सत्ता किसी की भी हो इस पर बंदिश नहीं लगा पाया। और अपना पेट काटकर अच्छी शिक्षा की चाह रखने वाले मां-बाप दुखी हैं। उनके पास वक्त भी नहीं है कि वे इसके खिलाफ खड़े हो सके निजी स्कूलों की दादागिरी ने उन्हें हालात से समझौता करने को मजबूर कर दिया हैं। सरकार निजी स्कूलों को इसी शर्त पर मान्यता देती है कि वे लाभ हानि से परे शिक्षा देंगे लेकिन कितने निजी स्कूल इस सिद्धांत पर चल रहे है और क्या सरकार को यह दिखाई नहीं दे रहा है कि किस तरह इस राज्य को शिक्षा माफिया ने जकड़ रखा हैं।
इस बार हल्ला मचा तो कमेटी गठित कर दी गई लेकिन कमेटी क्या इसे रोक पायेगी।
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