छत्तीसगढ़ में संतुलित विकास कैसे हो इसे लेकर न तो सरकार के पास ही कोई योजना है और न ही प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हही कुछ कर रही है। जिसका दुष्परिणाम जन आक्रोश के रूप में निकलता तो है लेकिन सरकार की ताकत इसे दबा देती है। लेकिन असंतुलित विकास की बेदी पर कब तक आम लोग अपने को रोक पायेंगे?
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली समस्या के अलावा माफिया राज भी कायम होने लगा है। भ्रष्टाचार चरम पर है और अफसर राज के चलते ओपन एम्सेस से लेकर रोगदा बांध घोटालों में सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। हालत यह हो गई है जो जिनता बड़ा भ्रष्टाचारी है उसे उतने ही बड़े पद से नवाजा गया है। सरकार का काम बड़े लोगों को बचाने व छोटों को सताने का होने लगा है यहीं वजह है कि आर्थिक अपराध ब्यूरों व लोकायुक्त जैसी सस्थाएं सफेद हाथी साबित होने लगा है। सूचना के अधिकार कानून की जितनी धज्जियां यहां उड़ाई जा रही है वैसा कहीं देखने को नहीं मिलेगा।
इन सबके पीछे असंतुलित विकास प्रमुख है। आजादी के 6 दशक बाद भी यदि आम लोगों को लोकतंत्र के मायने नहीं समझाया गया तो अपराधियों का राज स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को हुए दशक भर से उपर हो गया है सरकार कभी भी संतुलित विकास की योजना बना सकती है हाल ही में सरकार ने करीब दर्जन भर जिले बनाकर इसकी शुरुआत जरूर की है लेकिन असली जरूरत पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। छत्तीसगढ़ में संतुलित विकास के लिए सबसे पहले तो सभी विभागों के मुख्यालय को राजधानी में रखने की बजाय विभिन्न जिलों में उसकी ज्यादा उपयोगिता के साथ बनाया जाना चाहिए।
इसी तरह सभी बड़े निजी शिक्षण संस्थाओं को राजधानी में ही कालेज-स्कूल खोलने की अनुमति देने की बजाय अलग अलग जिले में अनुमति दी जानी चाहिए। यहीं स्थिति निजी बड़े अस्पताल खोलने जाने को लेकर सरकार की नीति होगी चाहिए।
यही नहीं राजधानी में बढ़ती आबादी को अन्य जिले में काम के अवसर बढ़ाकर रोका जा सकता है।
इसके अलावा भी संतुलित विकास के लिए सरकार को विशेषज्ञों की सलाह लेकर 10-20 साल का प्रोजेक्ट बनाकर काम करना चाहिए।
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