आपदा में अवसर और गिद्धों की वोटों पर निगाह
करोना काल में जब देश के प्रधान सेवक ने आपदा में अवसर की बात कही थी तब भी कुछ लोग आक्सीजन और रेमडीसीवीर की कालाबाज़ारी कर रहे थे
शायद उन्हीं लोगो को अब पहलगाम में हुए आतंकी हमला से मारे गये लोगों की चिता की राख ठंडी होने का भी सब्र नहीं है और वे लोग नफ़रत की बीज बोकर वोटों की फसल काटने आतुर है
आतंकवादियों की नीचताई पर सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछा जा रहा…
नीचता की भी हद होती है, लेकिन भाजपाइयों ने तो उसे भी पार कर दिया है...
वोटिंग कैंपेन में लगे हो तुम?
27 भारतीयों की लाशें पड़ी हैं, और तुम्हारी आंखों में सिर्फ वोट नाच रहा है?
सरकार तुम्हारी, गृहमंत्री तुम्हारा, जिम्मेदारी भी तुम्हारी — फिर क्यों नहीं जवाब दे रहे हो?
कश्मीर में 2000 पर्यटकों की मौजूदगी में आतंकवादी घुस आए, हमला किया, लोगों को बेरहमी से मार डाला और आराम से निकल भी गए — कहाँ थी तुम्हारी सुरक्षा? कहाँ था तुम्हारा इंटेलिजेंस?
गृहमंत्री कहां थे उस वक़्त? चुप क्यों हैं अब?
क्या गृहमंत्री सिर्फ चुनावी भाषणों और रैलियों के लिए हैं? जब देश के नागरिक मारे जा रहे हों, तब क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं?
पूछो सवाल! उठाओ आवाज़! मांगो इस्तीफा उस निकम्मे गृहमंत्री से!
और पाकिस्तान से आये इन दरिंदों के आकाओं को सबक सिखाने की बात करो, सिर्फ टीवी पर गाल बजाने से कुछ नहीं होगा!
लेकिन नहीं —
तुम्हारा ज़मीर तो कब का मर चुका है…
तुम्हें हर लाश में सिर्फ एक नया वोट बैंक दिखता है,
तुम्हें हर आतंकवादी हमले में चुनावी रणनीति नज़र आती है,
तुम इंसान नहीं, प्रचार के गुलाम बन चुके हो।
कल से देख रहा हूँ —
कोई नहीं पूछ रहा कि सुरक्षा कहाँ थी,
कोई नहीं पूछ रहा गृहमंत्री क्या कर रहे थे,
कोई नहीं कह रहा कि इस बर्बर हमले का ज़ोरदार बदला लिया जाए!
नीचता की भी कोई हद होती है...