शनिवार, 31 मई 2025

इस पूर्व सैनिक ने बता दिया सेना की वर्दी की सच्चाई…

 इस पूर्व सैनिक ने बता दिया सेना की वर्दी की सच्चाई…


ऑपरेशन सिंदूर अभी चल ही रहा है और देश के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पोस्टर लगवाकर चुनावी प्रचार में कूद पड़े हैं। अब भी कई सवाल का जवाब आना बाक़ी है , सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि पहलगाम में सीआरपीएफ़ किसके कहने से और क्यों हटाया गया जबकि सीजफ़ायर को लेकर सवाल है तो सेना को हुए नुक़सान को लेकर भी धुँध अटा पड़ा है, विजय शाह से लेकर दूसरे भाजपाइयों के विषवमन के बीच अब रेलवे टिकिट में मोदी की फ़ोटो के अलावा वर्दी में मोदी वाले पोस्टर पर सवाल का जवाब पूर्व सैनिक मुकेश कुमार बहुगुणा का लेख की हक़ीक़त ज़रूर पढ़ना चाहिए…


#लोकतंत्र_सेना_की_वर्दी और #युद्ध_का_उन्माद


इन लोगों के नाम तो जानते ही होंगे आप - 


क्लीमेंट एटलीहेरोल्ड मैकमिलनजेम्स कैलाघनएडवर्ड हीथ ( चारों ब्रिटेन ),एहद  बराक , मेनाकम बेगिननताली बेनेटबेंजामिननेतान्यहूएरियल शेरोन (सभी  इजराइल ) , जॉर्ज डब्ल्यू बुश ( सीनियर ), जॉर्ज बुश ( जूनियर ), जिमी कार्टर डी आइजनआवर , गेराल्ड फोर्ड ( सभी अमेरिका ), चार्ल्स डी गाल ( फ्रांस ) .....


 ये सभी वे लोग हैं जो #राष्ट्रपति या #प्रधानमंत्री के रूप में अपने #देश_की_सरकार_के_मुखिया रह चुके हैं... मुखिया होने के अलावाइन सभी ने #सेना_में_सेवा दी है, #युद्ध_में_भाग भी लिया हैऔर इनके मुखिया रहते हुए इनके देश ने #युद्ध_भी_लड़े या#मिलिट्री_आपरेशन  किये हैं...


 ऐसी सूची बहुत लम्बी हैयूरोपीय देशों सहित दुनिया  के कई देशों के बड़े नेता सैन्य सेवा में रह चुके हैंसिर्फ अमेरिका में ही 31 ऐसेराष्ट्रपति हो चुके हैंजो पूर्व सैनिक थे )....  अतःयहाँ सिर्फ कुछ के ही नाम लिखे हैं..


 परआपको इनकी ऐसी कोई तस्वीर नहीं मिलेगीजिसमें मुखिया के रूप में कार्य करते हुए ये सेना की वर्दी में सार्वजनिक रूप से आयेहों..... ऐसा कोई वाकया नहीं मिलेगा ज़ब इन्होंने #वोट_के_लिए_सेना_की_वर्दी या प्रतीक या सेना के कार्यों का प्रयोग किया हो...


 कारण ? कारण यह है कि एक मैच्योर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में #शक्ति_का_श्रोत मूलतः जनता में निहित होता हैजिसकाप्रकटीकरण जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के रूप होता है... जो इस शक्ति का प्रयोग राज्य के संवैधानिक संस्थानों ( विधायिकाकार्यपालिकान्यायपालिका )  द्वारा निरुपित व्यवस्थाओं के माध्यम से करते हैं...


विदेशों के अलावाहमारे देश भारत में भी कई ऐसे बड़े लोग हो गये हैं जो #सेना_में_एक्टिव_सेवा करने के बाद जनप्रतिनिधि ( विधायकसांसदमंत्रीमुख्यमंत्री )  के रूप में कार्य कर चुके हैंराज्यपाल और अन्य संवैधानिक पदों भी रह चुके हैं...


लेकिन आपने इनमें से भी  किसी को  जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए सेना की वर्दी में नहीं देखा होगा.. जरूरत हुई तो अपनेमैडल जरूर लगा लेते हैं या अपनी रेजिमेंटल कैप पहन लेते हैं... जिसके लिए अधिकृत  हैं सभी पूर्व सैनिक..


 अबकुछ और नाम भी याद होंगे आपको...


ईदी अमीन ( युगांडा ), कर्नल गद्दाफी ( लीबिया ), हिटलर ( जर्मनी), जोसफ स्टालिन ( USSR), माओ त्से तुंग ( चीन ), बेनिटोमुसोलिनी ( इटली ), किम जोंग- II ( नॉर्थ कोरिया ) ,  सद्दाम हुसैन ( इराक ), याहिया खानपरवेज मुसर्रफअयूब खानजिया उलहक ( सभी पाकिस्तान )...


ये भी अपने देश के मुखिया थेसेना में सेवा कर चुके थे... और देश के मुखिया के रूप में भी अक्सर पूरे रोबदाब से सेना की वर्दी पहनकर रहना पसंद करते थे...


 कारणकारण यह कि ये सभी #विचार_कर्म_स्वभाव_से ही #तानाशाह थे.. #लोकतान्त्रिक_व्यवस्थाओं_को_ठेंगे_पर रखते हुएअपनी शक्ति जनता की बजाय सेना से लेते थे...


 इतिहास गवाह है कि #तानाशाहों #को_सेना_की_वर्दी हमेशा पसंद आती है... क्योंकि वो जानते हैं कि कि उनके पैर बहुत कमजोर हैंतो शक्ति के लिए #वर्दी_का_सहारा लेना पड़ता है....


और  लोकतंत्र और आम नागरिक पर अटूट भरोसा रखने वालेखुद पर विश्वास रखने वाले नेता सैनिक होने के बावजूद नागरिकवेशभूषा  में ही रहते हैं... 


इतिहास यह भी बताता है कि अपनी तमाम ध्वंसक शक्तियों के बावजूद युद्ध खतरनाक स्थिति नहीं होती है.. लेकिन युद्ध का उन्माद  सदैव  ही सदैव ही खतरनाक होता है...क्योंकि युद्ध नवनिर्माण के रास्ते भी तो खोलता हैलेकिन उन्माद हमेशा हमेशा के लिए विध्वंसकही रहा है...


जयहिंद


मुकेश प्रसाद बहुगुणा

पूर्व सैनिक और पूर्व प्रवक्ता राजनीति विज्ञान

शुक्रवार, 30 मई 2025

आ गया मोदी सरकार की विफलता का पोस्टर…

आ गया मोदी सरकार की विफलता का पोस्टर…


 यह सिर्फ तस्वीर नहीं, भारत की कूटनीतिक विफलता का पोस्टर है यह तस्वीर आने वाले 10 वर्षों की भू-राजनीतिक दिशा तय कर रही है  और भारत उसमें ग़ायब है। जिन्हें लगता है कि ये सिर्फ एक इवेंट है, वे भूल रहे हैं

अंतरराष्ट्रीय मंचों से अनुपस्थित राष्ट्र, इतिहास में भी अप्रासंगिक हो जाते हैं।

27 मई 2025। स्थान: कुआलालंपुर, मलेशिया।

घटना: ASEAN – GCC – China Summit

20 राष्ट्राध्यक्ष मंच पर, हाथों में हाथ डाले खड़े हैं।

लेकिन भारत... कहीं नहीं है।

भारत, जो भू-राजनीति का पुराना खिलाड़ी था, अब इस वैश्विक मंच पर न तो आमंत्रित है, न प्रासंगिक।

यह तस्वीर एक खामोश तमाचा है उन लोगों के गाल पर जो दिन-रात विश्वगुर का झूठा नारा लगाते हैं।

यह तस्वीर क्या कहती है?

ASEAN (Association of Southeast Asian Nations)  10 प्रमुख एशियाई देश

GCC (Gulf Cooperation Council)  6 प्रमुख अरब देश

और चीन, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति

ये सभी एक भविष्य की साझेदारी बना रहे हैं

बिना अमेरिका बिना यूरोप और बिना भारत

भारत कहाँ है? भारत न अमेरिका का मित्र बन पाया, न चीन का।

न खाड़ी का भरोसेमंद साझेदार रहा, न एशिया का नेतृत्वकर्ता।

आज जब दुनिया डॉलर मुक्त लेन-देन की तरफ बढ़ रही है,

ऊर्जा-व्यापार के नए ब्लॉक बन रहे हैं,

सार्वजनिक विकास और तकनीक साझा रणनीति पर विचार हो रहा है 

भारत मंदिर उद्घाटन, जातीय जनगणना, और मुस्लिम विरोधी राजनीति में खोया हुआ है।

 कौन ज़िम्मेदार है?

भारत की विदेश नीति का राजनीतिककरण 

विदेश नीति अब कूटनीति नहीं, इवेंट मैनेजमेंट बन गई है।

वसुधैव कुटुंबकम् के नाम पर खोखली बयानबाज़ी 

जब GCC देश चीन से रणनीतिक साझेदारी करते हैं, भारत बस फोटो पोस्ट करता है।

 शब्दों का अतिरेक, नीतियों का अभाव 

भाषण ज़्यादा, समझौते कम। विदेश यात्राएँ ज़्यादा, अंतरराष्ट्रीय समझदारी कम।

भारत की गिरती वैश्विक साख के प्रमाण

सऊदी अरब और UAE अब भारत से ज़्यादा चीन और तुर्की के करीब हैं।

रूस ने BRICS में भी भारत के बजाय इंडोनेशिया, ईरान, और इथियोपिया को वरीयता दी।

ASEAN में भारत की भूमिका सिर्फ “गेस्ट स्पीकर” तक सीमित है, जबकि चीन स्थायी साझेदार है।

GCC मुद्रा प्रणाली में भारत का कोई नाम नहीं।

Belt & Road Initiative में भारत अनुपस्थित है, और CPEC जैसे प्रोजेक्ट भारत को घेर रहे हैं।

अब वक्त है आंखें खोलने का अगर भारत ने अब भी ध्यान नहीं दिया,

तो यह विश्वगुरु नहीं, विश्व-एकांतवासी बन जाएगा।

अब ज़रूरत है धर्म आधारित राजनीति से निकलकर

 आर्थिक-सामरिक समझौतों पर ध्यान देने की।

इमोशनल राष्ट्रवाद को छोड़कर वास्तविक बहुपक्षीय नीति अपनाने की।

यह तस्वीर आने वाले 10 वर्षों की भू-राजनीतिक दिशा तय कर रही है  और भारत उसमें ग़ायब है।

जिन्हें लगता है कि ये सिर्फ एक इवेंट है, वे भूल रहे हैं:

अंतरराष्ट्रीय मंचों से अनुपस्थित राष्ट्र, इतिहास में भी अप्रासंगिक हो जाते हैं।

अगर आप भी मानते हैं कि भारत को अपनी नीति, दिशा और प्राथमिकताएँ बदलनी होंगी 

तो यह पोस्ट शेयर कीजिए।

क्योंकि चुप्पी भी अपराध होती है।

अगर भारत ने अब भी ध्यान नहीं दिया,

तो यह विश्वगुर  नहीं, विश्व-एकांतवासी बन जाएगा।

अब ज़रूरत है धर्म आधारित राजनीति से निकलकर

 आर्थिक-सामरिक समझौतों पर ध्यान देने की।

इमोशनल राष्ट्रवाद को छोड़कर  वास्तविक बहुपक्षीय नीति अपनाने की।साभार