रविवार, 15 जून 2025

नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक

 नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक



कुछ महीने पहले की बात है — दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में गिना जाने वाला फिनलैंड अचानक एक अजीब से विवाद में फंस गया। विवाद था — नाश्ते का! जी हां, महज़ एक प्रधानमंत्री के नाश्ते का खर्च। फिनलैंड की पैंतीस वर्षीय प्रधानमंत्री सना मारीन ने अपने सरकारी आवास में रहते हुए अपने परिवार के नाश्ते का बिल सरकारी खजाने से चुकाया। महीने का खर्च था — तीन सौ यूरो। न कोई बड़ी रकम, न कोई रहस्यमय घोटाला। फिर भी वहां की जनता ने बवाल मचा दिया — “हमारे टैक्स का पैसा क्यों?”

मीडिया ने सवाल उठाया। पुलिस ने सरकारी खर्च की वैधता की जांच शुरू की। जनता ने सड़क से सोशल मीडिया तक आवाज उठाई — “पैसे वापस करो, इस्तीफा दो, और घर जाओ!” और यही हुआ। जनता ने कड़ी नजर रखी और आखिरकार चुनाव में प्रधानमंत्री को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अब सोचिए — यही दृश्य भारत में होता तो?

तीन सौ यूरो तो क्या, यहाँ तो लाखों-करोड़ों का नाश्ता, लंच और डिनर सरकारी खजाने से चलता है। वीवीआईपी बंगले, आलीशान गाड़ियाँ, काफिले, निजी समारोह — सब जनता की जेब से। कोई पुलिस अफसर ऐसी जांच की हिम्मत कर सकता है? कोई मीडिया घराना बिना पक्षपात ऐसी रिपोर्टिंग कर सकता है? और सबसे बड़ी बात — क्या जनता सवाल पूछती है?

भारत में तो नेताओं के लिए ये सब ‘विशेषाधिकार’ माने जाते हैं। जिन्हें रोका-टोका नहीं जाता, बल्कि जाति-धर्म-समाज की दीवारों के पीछे छुपा दिया जाता है। अगर कोई सवाल उठाता है तो भीड़ कहती है — “तुम्हें देशद्रोही कौन बना रहा है?”

तो फर्क कहाँ है?

फर्क नाश्ते की प्लेट में नहीं है। फर्क है नागरिक चेतना में। फिनलैंड में टैक्स का एक-एक यूरो पवित्र है। वहाँ लोग मानते हैं — नेता जनता का सेवक है, मालिक नहीं। अगर वह गलत करता है तो उसे कुर्सी छोड़नी ही होगी। पुलिस और अदालतें सत्ता के डर से नहीं, कानून के बल पर चलती हैं। मीडिया बिकता नहीं, सवाल करता है।

भारत में भी यह संभव है। बस शर्त है — जनता को मालिक बनना होगा।

नेताओं की जाति, धर्म या पार्टी से ऊपर उठकर नागरिक को सिर्फ अपनी मेहनत की कमाई की कीमत समझनी होगी। सरकारी खजाना कोई राजा की जागीर नहीं है। यह खेत में पसीना बहाने वाले किसान, कारखाने में काम करने वाले मजदूर और नौकरीपेशा टैक्स देने वालों का खून-पसीना है।

जब तक हम यह नहीं समझेंगे, कोई सना मारीन नहीं, कोई नाश्ता बिल नहीं — घोटाले, वादे और जुमले ही हमारी किस्मत लिखते रहेंगे।

फिनलैंड खुशहाल है क्योंकि वहाँ सवाल पूछना जुर्म नहीं, अधिकार है। भारत खुशहाल तब होगा जब हर नागरिक सवाल पूछेगा, जवाब मांगेगा और जवाब न मिलने पर नेता को बदल देगा।

नाश्ते से लेकर नीति तक — यही लोकतंत्र की असली परीक्षा है।(साभार)

शनिवार, 14 जून 2025

इजराइल ने ईरान को गाजा समझ लिया था !

 इजराइल ने ईरान को गाजा समझ लिया था ! 



इजरायल के अटैक के बाद ईरान की ओर से जवाबी हमला किया जा रहा है। ईरान ने शनिवार तड़के फिर से इजरायल पर मिसाइलों की बारिश की है। इससे कुछ घंटे पहले शुक्रवार शाम को भी ईरान ने इजरायल पर मिसाइलों की बौछार की थी।

 शुक्रवार रात से इजरायल पर हमले शुरू किए हैं। ईरानी मिसाइल हमले में इजरायल के कई शहरों को निशाना बनाया गया, जिससे इमारतों को नुकसान हुआ और दर्जनों लोग घायल हुए। ईरान ने किर्यात कंपाउंड पर भी हमला किया है, इसे इजरायल का पेंटागन कहा जाता है। फॉक्स न्यूज के ट्रे यिंगस्ट ने इजरायल के सैन्य मुख्यालय किर्यात के नजदीक नुकसान की बात कही है। उन्होंने कहा कि आपातकालीन दल इमारतों में जाकर उन लोगों की तलाश कर रहे हैं, जो फंसे हुए हो सकते हैं। 

एक ही रात में ग़लतफ़हमी दूर हो गई। इजराइल की 300 मिसाइल के जवाब में ईरान ने 1500 मिसाइलों का जखीरा तेल अवीब में बिखेर दिया है। कल तक ईरान  को हद में रहने की समझाइश दे रहे ट्रम्प सऊदी अरब से वॉर रुकवाने की गुहार लगा रहे है। अपने महामानव को डपटकर ' सीज़फायर ' कराना आसान था क्योंकि अडानी नाम की नस दबी हुई थी। लेकिन ईरान की बात अलग है। तीन दशक से ज्यादा अमेरिका के सामने खड़ा होकर उसने अपनी रीढ़ की मजबूती  दिखा दी है। 


नुक्सान दोनों तरफ जबरा हो रहा है। तेल अवीब की गगन चुंबी इमारते गाजा के विध्वंस की याद दिला रही है। क्रूड की कीमतों में आग लगना शुरू होने ही वाली है। अल सुबह यह भी स्पस्ट हो गया कि पाकिस्तान , रूस , चाइना और सऊदी ने ईरान के साथ खड़े होने के संकेत दे दिए है भारत क्या कदम उठाएगा , किस तरफ मुंह करेगा आज सुबह तक स्पस्ट नहीं है। 

रफाल की फैल्योर के बाद 3 अमेरिकी एफ 35 के कबाड़ा होने की बात सामने आई है। इन्हे ईरान ने मार गिराया है , एक इसरायली महिला पायलट को बंदी भी बनाया है। संभव हो तो बीबीसी या सीएनएन देखे। बगैर गला फाड़े , बगैर ग्राफ़िक्स के कैसे रिपोर्टिंग होती है , हमारे घटिया मीडिया की ओकात समझ आएगी।

सोनम का भाई गोविंद सचमुच "गोविंद"है

 सोनम का भाई गोविंद सचमुच "गोविंद"है


 इंदौर के रघुवंशी परिवार के यहां एक घटना हुई । जो घटनाक्रम सामने आए वो किसी सस्पेंस थ्रीलर फिल्म  से कम नहीं थी। शुरुआत से लेकर अंत तक बहुत ही ज्यादा रोमांचक । अंत आश्चर्य जनक इससे ज्यादा दुखद।  शुरुआत हुई तो राजा की हत्या हुई । सोनम का लापता हो गई। ऐसा होता है कि आपराधिक प्रवृति के लोग अवसरवादी होते है । एक लड़का लड़की के अकेले होने का अवसर का फायदा  स्थानीय लोग अपनी जगह के पहचान की और दूसरों के अनजान होने की वजह से उठा लेना सामान्य सी बात है । राजा की हत्या और सोनम के लापता होने पर अनेक किस्से कहानी सुने गए। मेघालय सरकार, पुलिस पर उंगली उठी और  रियल लाइफ की फिल्म का क्लाइमेक्स सामने आया तो लोगों का सिर चकरा गया।एक के बाद एक आरोपी पकड़ाते गए और अंत में सूत्राधार सोनम भी अपने अगवा होने के तमाशे को नहीं दिखा सकी। अब सब कुछ सच सामने है। अक्सर हत्या करने वाले ऐसी जगह और परिस्थिति को योजना में रखते है जहां कोई देखने वाला न हो । राजा की हत्या के लिए ऐसी जगह खोजी गई और योजना को अंजाम दे दिया गया। योजना का दूसरा सूत्राधार इंदौर से ही हत्या को अंजाम देने  के बाद सोनम के परिवार को राजा के अंतिम संस्कार में मददगार बनने का स्वांग रचता गया।

इस फिल्म का अंत का सच बहुत ही दर्दनाक और वीभत्स रहा। सारी मर्यादा लांक्षित हो गई।दो परिवार सहित हर किसी को विवाह के रीति रिवाज,पति पत्नी के संबंध सहित मालिक का नौकर के प्रति विश्वास लड़खड़ा गया। सोनम का  राज के प्रति पनपा प्रेम पावन संबंध से ज्यादा किसी और प्रकार के सीधे शब्दों में कहे तो दैहिक आकर्षण ज्यादा था।अन्यथा बहन जैसे रिश्ते(भले दिखावे के लिए हो)को दोनों लांक्षित नहीं करते। सोनम के परिवार के अलावा आरोपी राज की मां भी विश्वास नहीं कर पाई कि एक पवित्र रिश्ते की आड में  अवैध संबंध पनप  रहा है।इसी "दीदी" उद्बोधन के चलते बेफिक्र परिवार ने सोनम का रिश्ता भी तय कर दिया।  पारिवारिक,सामाजिक, आर्थिक और जितने भी वजह हो सकते थे उनमें राज केवल एक अदना सा व्यक्ति ही था जिसकी कोई हैसियत नहीं थी। प्यार, अंधा होता है ये माना जाता है।इस प्रेम कहानी में सोनम और राज भी दोनों आंख से अंधे साबित हुए। साथ जीने की कसमें खाने वाले इन दोनो ने राजा को मारने की कसम खा ली। सोनम और राज की अवैध प्रेम ने एक निर्दोष व्यक्ति की जान ले ली। सभी आरोपी इंदौर से  2183किलोमीटर दूर शिलांग में पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए रिमांड पर है। सभी ने स्वीकार भी कर लिया है कि वे राजा रघुवंशी की हत्या में शामिल थे। मेघालय और इंदौर की पुलिस ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य इकट्ठे कर लिए है जो  राजा की हत्या के सबूत के रूप में न्यायालय के सामने रखे जाएंगे। पाठकों को ये जानकारी होनी चाहिए कि पुलिस के समक्ष किए गए कबूलनामें की न्यायालय में कोई मान्यता नहीं रहती है।अधिकांश आरोपियों को उनके वकील समझा चुके रहते है कि गुनाह कबूल कर लेना अन्यथा पुलिस की सख्ती के चलते आगे बचना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी हत्यारे , आकस्मिक आक्रोश के चलते कम सुनियोजित ढंग से हत्या की योजना बनाते है,ये बात अलग है आज तक बहुत कम हत्या के आरोपी पकड़ाने के बाद साधारण रूप से चार पांच साल तक तो जमानत ही नहीं पाते है। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और सीसीटीवी के दायरे में आए साक्ष्य परिस्थितियां स्वय बोलती है(res ipsa loquitur) के आधार पर ही अंतिम निर्णय होगा।

 ये तो ऑपरेशन हनीमून का मध्यांतर है।

मध्यांतर के बाद सस्पेंस थ्रीलर फिल्म का  सामाजिक पक्ष सामने आता है। राजा रघुवंशी  का परिवार आक्रोशित होकर सोनम की तस्वीरों का दहन करती है। समाज सोनम के परिवार को जात बाहर करने के लिए उद्वेलित होता है।आरोपी राज की गरीब मां अबतक ये नहीं मान पा रही है कि  कभी दिन में कपड़ा दुकान में सेल्समैन  और सुबह पेपर बांटने के बाद सोनम के परिवार में अदनी सी नौकरी कर  बिना पिता के परिवार का पालन पोषण करने वाला राज एक निरीह राजा की हत्या में साझेदार है।

 महाभारत के प्रसंग में द्रौपदी  कृष्ण को गोविंद कहती थी।द्रौपदी के हर मुश्किल में गोविंद खड़े रहते थे।गोविंद ने द्रौपदी को ये भी समझाया था कि अपनी महत्वाकांक्षा  के चलते तुम्हे नुकसान होगा तब मैं तटस्थ रहूंगा।

 ऐसी ही परिस्थितियों में एक शख्सियत उभरता है वह है सोनम का भाई, गोविंद जिसे जब तक सच का पता नहीं था तब तक भाई होने का धर्म निभाया।बरसते पानी में बहन को खोजा, न जाने कहां कहां दौड़ा। गाजीपुर से सोनम के फोन करने पर पुलिस को सूचना देने की नसीहत इसी भाई की ही थी। सोनम के राजा के हत्या में सूत्राधार होने का सच सामने आने पर  मृत राजा रघुवंशी के घर जाकर  राजा की मां से मिलना,  बहुत ही बड़े संवेदना का उदाहरण है।जरा सी बात पर संबंधों में कड़वाहट लाना, बोलचाल बंद कर देना,रिश्ता तोड़ देना सामान्य बात हो चली है ऐसे में अपनी ही बहन के द्वारा  हत्या कर देने के बाद पीड़ित परिवार के घर जाना अदम्य साहस ही है। अपने बेटे, भाई  और रिश्तेदार के हत्या के चलते एक परिवार का हत्या करने वाली लड़की के परिवार के प्रति आक्रोश, नफरत होता ही है।इनकी परवाह किए बगैर आरोपी सोनम के भाई  गोविंद का राजा के घर जाना, दुख को आत्मसात करना और अपनी बहन से रिश्ते खत्म करने की बात के अलावा मृत  राजा को न्याय दिलाने के लिए खुद को समर्पित करना निश्चित रूप से सोनम के भाई को बहुत ही बड़ा बना दिया है।

आप सोचिए कि कितनी विपरीत परिस्थिति में सोनम के भाई ने निर्णय लिया होगा।ये जानते हुए कि जिस प्रकार दुर्योधन के मारे जाने पर धृतराष्ट्र भीम को गले लगाकर मार देना चाहते थे वैसी ही परिस्थिति सोनम के भाई के लिए भी थी। निर्विकार भाव से किया गया साहस नफरत के जंगल में अपनत्व का एक बीज प्रस्फुटित करता तो है। सचमुच, गोविंद ने अपने नाम को सार्थक कर दिया। एक बहन, जो जब तक जानकारी में अगवा थी, भाई  ने उसके जिंदा होने या मरने की सत्य में लाश को पाने के लिए जी जान लगा दिया। इसी बहन के राजा की हत्या  में शामिल होने का सच जानकर कितने कड़े मन  से सालों राखी बांधने वाली बहन से रिश्ते खत्म करने की बात कहने वाला "गोविंद" ही हो सकता है। मै बड़े आदर,सम्मान,और श्रद्धा से इस आधुनिक गोविंद के सामने नत  मस्तक हूं

संजय दुबे 

7415553274

शुक्रवार, 13 जून 2025

आख़िर एलपी पटेल का हो गया निलंबन…

 आख़िर एलपी पटेल का हो गया निलंबन… 


प्रभारी डीईओ एल पी पटेल को अनुशासन हीनता के आरोप में निलंबित कर दिया गया लेकिन निलंबन क्यों देर से हुआ यह सवाल अब भी बना हुआ है, उन पर अपनी पत्नी सुषमा पटेल की आत्मानंद स्कूल में नियुक्ति से लेकर चारित्रिक आरोप के अलावा युक्तियुक्तकरण में भी गड़बड़ी का आरोप है। यही नहीं वे इससे पहले भी कई बार निलंबित हो चुके हैं तो पत्नी सुषमा पटेल भी कार्य में लापरवाही के आरोप में निलंबित हो चुकी है। क्या है पूरा मामला…


ताज़ा मामला छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल परीक्षा के दौरान जिले में परीक्षा केंद्रों की निगरानी और अनुचित साधनों की रोकथाम के लिए एक जिला स्तरीय उड़नदस्ता दल का गठन का है । 

इस दल का मुख्य उद्देश्य परीक्षा की निष्पक्षता बनाए रखना और आवश्यक व्यवस्थाओं की निगरानी करना था। लेकिन इस दौरान प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी एल.पी. पटेल ने बिना कलेक्टर की पूर्वानुमति और निर्देश के उड़नदस्ता दल में मनमाने तरीके से परिवर्तन और संशोधन किया। इतना ही नहीं, उन्होंने तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी को कथित रूप से धमकी देने, दुर्व्यवहार करने और वेतन रोकने जैसे गंभीर आरोपों से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।

अनुशासनहीनता के लिए प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी निलंबितइन सभी मामलों पर पटेल को कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया, जिसका जवाब उन्होंने निर्धारित समयावधि में प्रस्तुत नहीं किया। इसके बाद राज्य शासन ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता मानते हुए छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 9(1) क के तहत एल. पी. पटेल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

एलपी पटेल पर रिपोर्ट…

https://youtu.be/itOcDBMz3BA?si=2_KdhdW67nS8jBxo

गुरुवार, 12 जून 2025

रोहतक की वह बेटी जिसने जिया उल हक़ जैसे क्रूर तानाशाह की नींद उड़ा दी थी

रोहतक की वह बेटी जिसने जिया उल हक़ जैसे क्रूर तानाशाह की नींद उड़ा दी थी,,,


रोहतक के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी दसेक साल की उस दुबली मुस्लिम लड़की की एक सबसे पक्की हिन्दू सहेली थी. सहेली और उसकी बहन अपने संगीतप्रेमी पिता के निर्देशन में क्लासिकल गाना सीख रही थीं. एक दिन उस लड़की ने उनके सामने ऐसे ही कुछ गा दिया. शाम को सहेली के पिता उसे घर छोड़ने गए और उसके पिता से बोले – “"मेरी बेटियां अच्छा गा लेती हैं पर आपकी बेटी को ईश्वर से गायन का आशीर्वाद मिला हुआ है. संगीत की तालीम दी जाए तो वह बहुत नाम कमाएगी."  

यूँ 1945 के आसपास उस लड़की के लिए दिल्ली घराने के एक बड़े उस्ताद की शागिर्दी में भर्ती किये जाने की राह खुली. उस्ताद की संगत में जल्द ही उसने दादरा और ठुमरी जैसी शास्त्रीय विधाओं में प्रवीणता हासिल कर ली. पार्टीशन के 4-5 साल तक वह दिल्ली में गाना सीखती रही. 17 की हुईं तो उम्र में उनसे काफी बड़े एक पाकिस्तानी जमींदार को उनसे इश्क हो गया. जल्द ही इस शर्त पर दोनों का निकाह हुआ कि शादी के बाद भी उस की संगीत यात्रा पर कोई रोक नहीं आने दी जाएगी. पति ने अपना वादा अपनी मौत यानी 1980 तक निभाया.

यूँ हमें इक़बाल बानो नसीब हुईं. “हम देखेंगे” वाली इक़बाल बानो!

इक़बाल बानो की गायकी का सफ़र उनकी जिन्दगी जैसा ही हैरतअंगेज रहा. कौन सोच सकता था दादरा और ठुमरी जैसी कोमल चीजें गाते-गाते वह दुबली लड़की उर्दू-फारसी की गजलें गाने लगेगी और भारत-पाकिस्तान से आगे ईरान-अफगानिस्तान तक अपनी आवाज का झंडा गाड़ देगी. उसकी आवाज में एक ठहराव था और गायकी में शास्त्रीयता को बरतने की तमीज. 

फिर 1977 का साल उसके मुल्क में अपने साथ जिया उल हक जैसा क्रूर तानाशाह लेकर आया. धार्मिक कट्टरता के पक्षधर इस निरंकुश फ़ौजी शासक ने तय करना शुरू किया कि क्या रहेगा और क्या नहीं. इस क्रम में सबसे पहले उसने अपने विरोधियों को कुचलना शुरू किया. उसके बाद डेमोक्रेसी और स्त्रियों की बारी आई. जिया उल हक ने यह तक तय कर दिया कि औरतें क्या पहन सकती हैं और क्या नहीं. पाकिस्तान की औरतों के साड़ी पहनने पर इसलिए पाबंदी लग गयी कि वह हिन्दू औरतों का पहनावा थी.

कला-संगीत-कविता जैसी चीजों को गहरा दचका भी इस दौर में लगा. फैज़ अहमद फैज को मुल्कबदर कर दिया गया. हबीब जालिब को जेल भेज दिया गया. उस्ताद मेहदी हसन का एक अल्बम बैन हुआ. शायरों-कलाकारों को सार्वजनिक रूप  से कोड़े लगे. करीब बारह साल के उस दौर की पाशविकताओं और अत्याचारों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है.  

ऐसे माहौल में इक़बाल बानो ने विद्रोह और इन्कलाब के शायर फैज़ को गाना शुरू किया. सन 1981 में जब उन्होंने पहली बार फैज़ को गाया, निर्वासित फैज़ बेरूत में रह रहे थे और उनकी शायरी प्रतिबंधित थी. 

उसके बाद जमाने ने इक़बाल बानो का जो रूप देखा उसकी खुद उन्हें कल्पना नहीं रही होगी. बीस साल पहले उनकी आवाज कोमल, तीखी और सुन्दर हुआ करती थी – अनुभव और संघर्ष के ताप ने अब उसे किसी पुराने दरख्त के तने जैसा मजबूत, दरदरा और पायेदार बना दिया था. अचानक सारा मुल्क पिछले ही साल विधवा हुई इस प्रौढ़ औरत की तरफ उम्मीद से देखने लगा था.   

गुप्त महफ़िलें जमाई जातीं. प्रतिबंधित कविताएं गाई जातीं. स्कूल-युनिवर्सिटियों में पर्चे बांटे जाते. इक़बाल बानो हर जगह होतीं.

फिर 1986 की 13 फरवरी को लाहौर के अलहमरा आर्ट्स काउंसिल के ऑडीटोरियम में वह तारीखी महफ़िल सजी. पूरा हॉल भर चुकने के बाद भी हॉल के बाहर भीड़ बढ़ती जा रही थी. आयोजकों ने जोखिम उठाते हुए गेट खोल दिए. सीढियों पर, फर्श पर, गलियारों में – जिसे जहाँ जगह मिली वहीं बैठ गया. कुछ हजार सुनने वालों के सामने इक़बाल बानो ने फैज़ अहमद फैज़ को गाना शुरू किया:

“हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे

वो दिन कि जिसका वादा है, जो लौह-ए-अज़ल में लिक्खा है

हम देखेंगे”

इस नज्म के शुरू होते ही समूचे हॉल में बिजली दौड़ने लगी. सुनने वालों के रोंगटे खड़े होना शुरू हुए. दर्द के नश्तरों से बिंधी, इक़बाल बानो की पकी हुई आवाज के तिलिस्म ने धीरे-धीरे हर किसी को अपनी आगोश में लेना शुरू किया. अजब दीवानगी का आलम तारीं होने लगा. लोगों ने बाकायदा लयबद्ध तालियों से इक़बाल बानो का साथ देना शुरू किया. 

फिर नज्म का वह हिस्सा आया:

"जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां रुई की तरह उड़ जाएँगे

हम महकूमों के पाँव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी

और अहल-ए-हकम के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे

हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे

सब ताज उछाले जाएँगे

सब तख़्त गिराए जाएँगे" 

भीड़ तालियाँ बजाने लगी. इन्कलाब और इक़बाल बानो की जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू हो गए. इस शोरोगुल के थामने तक इक़बाल बानो को गाना बंद करना पड़ा. उन्होंने फिर गाना शुरू किया. इस दफ़ा लोग बेकाबू होकर रोने लगे. 

कई बरसों की रुलाई दबाये बैठा एक मुल्क सांस लेना शुरू कर रहा था. 

उस रात अलहमरा आर्ट्स काउंसिल के आयोजकों-मैनेजरों के घर छापे पड़े. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर प्रोग्राम की सारी रेकॉर्डिंग्स जब्त कर जला दीं. किसी तरह एक प्रति स्मगल होकर दुबई पहुँच गयी. उसके बाद फैज़-इक़बाल बानो की उस जुगलबंदी का नया इतिहास लिखा जाना शुरू हुआ. दुनिया भर के युवा आज भी उसे लिख रहे हैं.

दो बरस बाद जिया उल हक के अपने ही सलाहकार-साथियों ने उस जहाज में आमों की एक पेटी के भीतर बम छिपा दिए थे जिस पर उसे यात्रा करनी थी. ये बम बीच आसमान में फटे. तब से बीते इतने बरसों में जनरल जिया की हेकड़ी का भूसा भर चुका है. 

इक़बाल बानो आज तक महक रही हैं. पता है 13 फरवरी 1986 की उस रात की कंसर्ट में इक़बाल बानो क्या पहन कर गई थीं?

काले रंग की साड़ी!

Cpd

#AshokPande  जी की जादुई लेखनी

बुधवार, 11 जून 2025

ट्रंप के भारत विरोधी एजेंडे की असली वजह…

 ट्रंप के भारत विरोधी एजेंडे की असली वजह…


यह पूरा देश जानता है कि कभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अपना सबसे बड़ा मित्र बताया था तब ट्रंप आख़िर ऐसी हरकत क्यों कर रहा है जिससे मोदी की छीछालेदर तो हो ही रही है भारत का नाम भी न केवल दुनिया में ख़राब हो रहा है बल्कि नई तरह की मुसीबत खड़ी हो रही है…

क्या इसकी वजह नरेंद्र मोदी की कोई चाल है जिसकी वजह से ट्रंप नाराज़ हो गया, या फिर इसकी वजह मोदी का मित्र प्रेम है या फिर ब्रिक्स में डॉलर को चुनौती देना या फिर कुछ और …

सोशल मीडिया में कितने ही क़यास चल रहे है इन क़यासों के बीच रजनीश जैन लिखते हैं- लॉस एंजेलिस में चल रहे दंगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं, लेकिन उनका भारत-विरोधी एजेंडा रुकने का नाम नहीं ले रहा। वायरल तस्वीरों में एक अप्रवासी  भारतीय छात्र को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ा हुआ देखकर हर भारतीय का खून खौल उठता है। यह न केवल एक व्यक्ति का अपमान है, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान पर हमला है। फिर भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रहस्यमयी चुप्पी देश को हैरान कर रही है।

ट्रम्प प्रशासन ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्ती बरतते हुए भारतीयों को निशाना बनाया है। 2025 में सैन्य विमानों से 104 भारतीयों को हथकड़ियों में वापस भेजने की घटना ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने सही कहा कि भारत को अमेरिका से मानवीय व्यवहार की मांग करनी चाहिए थी, न कि अपराधियों सा बर्ताव स्वीकार करना चाहिए था। ट्रम्प का यह रवैया उनकी भारत-विरोधी नीतियों का हिस्सा है, जो भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में मध्यस्थता के दावे और भारत के रूस-चीन संबंधों पर तंज से स्पष्ट है।

मोदी सरकार की चुप्पी इस मामले को और गंभीर बनाती है। कभी ट्रम्प के लिए "अबकी बार ट्रम्प सरकार" का नारा देने वाले मोदी आज उनके सामने भारत का सम्मान दांव पर लगने के बावजूद खामोश हैं। क्या यह वही "मजबूत" भारत है, जिसका दावा सरकार करती रही है? विदेश मंत्रालय की ओर से सिर्फ औपचारिक बयानबाजी और सहयोग की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन ठोस कदमों का अभाव है।

भारत को अब कूटनीतिक दबाव बनाना होगा। ट्रम्प के टैरिफ और निर्वासन नीतियों का जवाब भारत को अपने व्यापारिक और सामरिक हितों की रक्षा करते हुए देना चाहिए। भारतीय छात्रों और प्रवासियों के सम्मान की रक्षा के लिए अमेरिका में भारतीय दूतावासों को सक्रिय होना होगा। मोदी सरकार को चाहिए कि वह ट्रम्प के सामने भारत का पक्ष मजबूती से रखे, न कि चुप्पी साधे। देश का स्वाभिमान दांव पर है, और अब समय है कि भारत अपनी आवाज बुलंद करे।  लेकिन सिंदूरी लाल अपने ग्यारह साल को सदी के बेहतरीन साल मनवाने को आमादा है।

मंगलवार, 10 जून 2025

तब सवाल सिर्फ़ सोनम का नहीं है…

 तब सवाल सिर्फ़ सोनम का नहीं है…


राजा रघुवंशी और सोनम! पिछले कई दिनों से लोगों के ज़ेहन में कितने ही सवाल खड़े कर चुके हैं। पुलिस ने तो दावा भी कर दिया कि सोनम ही राजा की कातिल है… लेकिन कुछ सवाल अब भी बाक़ी है…

इंदौर के मिसिंग कपल का मेघालय से गायब हो जाना, उनमें से एक राजा रघुवंशी की हत्या हुई।फिर बदहवास हालत में सोनम रघुवंशी का मेघालय से बहुत दूर गाजीपुर में बरामद होना, पूरे देश में सनसनी मचा दी , कितने ही सवाल लोगों के ज़ेहन में उठे तो कितनी ही आशंका। जिसका जो मन चाहा सवाल उठाने लगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आख़िर सोनम ने हत्या जैसा कदम क्यों उठाया ?

लेकिन इसके अलावा भी कुछ सवाल है जिनके जवाब अभी आना बाकी है!

मीडिया पुलिस की थ्योरी पर काम कर रहा है *ओपन एंड शट* केस की तरह इसको एक सामान्य प्रेम प्रकरण की कथा बताया जा रहा है लेकिन यदि आप सारी स्थितियों का अन्वेषण करेंगे तो आपको बहुत सारे पेचीदा तथ्य नजर आएंगे! 

हो सकता है जो स्टोरी पुलिस एस्टेब्लिश करना चाहती है वैसा ही हो लेकिन फिर भी हर पहलू का निरीक्षण जरूरी है! 

मीडिया का काम होता है ऐसे उलझे हुए सवालों को न सिर्फ जनमानस के सामने लाना बल्कि प्रशासन को भी उनके प्रति जवाब देह बनाना!

लेकिन मीडिया क्या कर रहा है जो भी सोर्स है उसके वह सीधे पुलिस की स्टोरी से जुड़े हुए हैं वह इस एक सामान्य प्रेम प्रकरण की तरह पेश कर रहा है और लगभग उसने आम आदमी की मानसिकता में यह धारणा बना  दी है तो सोनम का किसी राज कुशवाहा से प्रेम प्रकरण था जो उस से 5 साल छोटा था उसी के पिता की फैक्ट्री में काम करता था और इस प्रेम के चलते  इस घटना को अंजाम दिया गया!

*मेघालय के मुख्यमंत्री* *कोनारूडसंगमा* के बयान के बाद  मीडिया इन्वेस्टिगेशन तो मानो एक तरह से रुक गया है! 

उसके पहले तक तो कभी बांग्लादेश रोहिगयो का नाम आ रहा था, कभी स्थानीय लूट से उसे जोड़ा जा रहा था, और कभी दुर्घटना का एंगल भी प्रस्तुत किया जा रहा था !

क्योंकि यह केस हाई प्रोफाइल हो चुका था पूरे देश में इसकी चर्चा थी उसके बाद पुलिस पर बहुत दबाव था और मेघालय पुलिस के लिए यह चुनौती बन गया था! 

पुलिस सब पहलुओं को विचार करती है लेकिन पुलिस के सामने एक बहुत बड़ा पहली यह भी होता है कि वह राज्य की आकांक्षाओं के अनुसार  इन्वेस्टिगेशन को अंजाम दें!

पर्यटन मेघालय का बहुत बड़ा व्यापार है और वहां की आर्थिक जीवन रेखा है यदि इस तरह की घटनाएं वहां सामने आती है और अगर उनके संदर्भ स्थानीय लूटपाट से या अंतर राष्ट्रीय अपहरणों से जुड़ता है तो उसका प्रभावित होना संभावित होता है! 

मुख्यमंत्री संगमा की पूरा प्रकरण में हाइपरएक्टिव भूमिका इस संदर्भ में रोचक विषय है! मर्डर मिस्ट्री अधिकांश पुलिस वाले ही डिक्लेअर करते हैं लेकिन यह पहला मौका था जब किसी मुख्यमंत्री ने x पर इसको शेयर कर कर सोशल मीडिया के माध्यम से सारे देश को सूचना दी थी!

यहां एक तथ्य और काबिले गौर है, पुलिस ने अभी तक पूरी तरह एस्टेब्लिश स्टोरी की जानकारी नहीं दी है यानी जो कुछ मीडिया पर कहां जा रहा है वह पूरी तरह पुष्ट नहीं है!

कभी-कभी पुलिस   एक्यूज को कंफ्यूज करने के लिए सूडो स्टोरी भी एस्टेब्लिश करती है ताकि अपराधी निश्चित हो जाए और गलतियां करें ताकि वह पकड़ में आ सके! 

सोनम के बयान अभी भी यही है उसे फसाया जा रहा है उसके साथ जो कुछ घटा 10 दिनों मे लेकर मीडिया में पूरी तरह जानकारी नहीं दी गई है ना पुलिस ने उसके बारे में बहुत विस्तार से बताया है! 

और इसके लिखने के पीछे कुछ और तथ्य भी हैं, गाड़ी के ड्राइवर के बयान और ढाबे वाले के बयान यह तस्दीक कर रहे हैं , जब गाजीपुर में सोनम को देखा गया वहां आने के पहले तक वह बदहवास हालत में थी!

जिस राज कुशवाहा के साथ सोनम का प्रेम प्रकरण बताया जा रहा है उसके कोई डॉक्यूमेंट्री प्रूफ नहीं है यह एक सुनी सुनाई बातों का और मीडिया की कल्पना का आभासी चित्र है! 

तीसरा यदि सोनम को अपने प्रेमी के साथ फरार ही होना था तो उसके लिए राजा की हत्या करना क्यों जरूरी था यह तथ्य भी समझ के  परे हैं!

जिन लोगों को सुपारी किलिंग के लिए हायर किया हुआ बताया जा रहा है क्या वह हिस्ट्रीशीटर है, उनका क्या ऐसा इतिहास है अभी यह परीक्षण का विषय है!

अगर वह लूट थी तो फिर राजा के साथ सोनम को क्यों नहीं मारा गया यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है! 

पुलिस तथ्य जुटा रही है अंतिम सत्य सामने आने तक हमें हमारी मानसिकता बनाने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी! 

 हमारीचोटिल सामाजिक और मानसिक स्थिति के लिए तथ्यों को पूरी कसौटी पर कसना जरूरी है! 

क्योंकि यह सिर्फ सोनम के भरोसे का नहीं, औरत जात के भरोसे का सवाल है जो समाज का निर्माण करती है! 

प्रेम की अंधी पराकाष्ठा, और एक विवाहित स्त्री की नैतिकता के बीच में कर्तव्यों की अधर झूल इस कहानी के सारे सूत्र खुल जाने के बाद समाज में नए मानदंड तय करेगी!(साभार)

रविवार, 8 जून 2025

मंदिर-मंदिर घुमते मस्क की सच्चाई क्या हिंदू धर्म का अपमान नहीं…

 मंदिर-मंदिर घुमते मस्क की सच्चाई क्या हिंदू धर्म का अपमान नहीं…


एलन मस्क के पिता एरोल के भारत आ कर मंदिर मंदिर घुमते तस्वीर को लेकर कितने ही सवाल है और सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जिस व्यक्ति का पूरा जीवन सनातन धर्म के विपरीत रहा है उसे लेकर न तो नफ़रती चिंटुओं की भावना आहत हो रही है न ही मंदिर के पुजारियों की। गौ मांस का सेवन करने वाले एरोल सिर्फ़ बिज़नेस के लिए भारत आये हैं और वे मंदिर मंदिर सिर्फ़ सरकार को खुश करने घुम रहे हैं इसके बाद भी यदि नफ़रती चिंटुओं को उनके साथ तस्वीर खिंचाने में मज़ा आ रहा है तो आप भी जान ले कि एलन मस्क के इस पिता एरोल की हक़ीक़त…

एरोल ग्राहम मस्क का जन्म वाल्टर और कोरा अमेलिया मस्क ( नीरॉबिन्सन) के घर 25 मई 1946 को प्रिटोरिया में हुआ था। उनके पिता दक्षिण अफ़्रीकी थे और उनकी माँ अंग्रेज़ थीं। उन्होंने क्लैफ़हम हाई स्कूल में पढ़ाई की, जहाँ उनका मेय हल्दमैन के साथ रिश्ता शुरू हुआ [ 3 ] जिनसे उन्होंने 1970 में शादी की। [ 4 ] परिवार प्रिटोरिया में रहता था , जहाँ मेय ने आहार विशेषज्ञ और एक मॉडल के रूप में काम किया। [ 3 ] उनके पहले बच्चे, एलोन रीव मस्क का जन्म 28 जून 1971 को हुआ, जिसका नाम मेय के दादा जे. एलोन हल्दमैन के नाम पर रखा गया, रीव उनकी नानी का पहला नाम था। [ 3 [ 1 ]

1979 में मस्क और उनकी पत्नी मेय का तलाक हो गया। [ 3 [ 23 ] अपने संस्मरण में मेय ने अपनी शादी को अपमानजनक बताया और आरोप लगाया कि एरोल हिंसक था। [ 24 ] वह अपने तलाक के दौरान एक समय को याद करती है जब उसने एक पड़ोसी के घर में शरण ली थी जब एरोल उसे ढूंढते हुए चाकू लेकर आया था। [ 12 ] तलाक के बाद, मस्क ने अपने बच्चों की कस्टडी के लिए अपनी पूर्व पत्नी पर बार-बार मुकदमा किया। [ 12 ]उन्होंने कुछ समय के लिए सू नाम की एक महिला से शादी की थी। [ 12 ]

1990 के दशक की शुरुआत में, एरोल ने, जो उस समय 45 वर्ष के थे, 25 वर्षीय हेइडे बेजुइडेनहौट से विवाह किया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वह "मेरे जीवन में देखी गई सबसे सुंदर महिलाओं में से एक थी।" [ 25 ] बेजुइडेनहौट से उनकी दो बेटियाँ थीं। [ 26 ]

1992 में एरोल मस्क दक्षिण अफ्रीका में Heidi Bezuidenhout नाम की महिला से दूसरी शादी करते हैं ,


● Heidi को पहली शादी से चार साल की बेटी Jana थी...!


● Jana जब जवान होती है तब एरोल मस्क अपनी इस सौतेली बेटी को पेट से कर देता है अब तो वो दो बच्चों की माँ हैदोनों केबीच 42 वर्ष का अंतर है...!


 एलन मस्क अपने पिता की हरकत पर उन्हें EVIL कहा हैइस बात की सच्चाई इसकी ख़ुद की वेबसाइट विकिपीडिया पर भीमौजुद है...!


● अब ऐसे आदमी को एक राज्य में मंदिर दर्शन के नाम पर स्टेट गेस्ट का दर्जा दिया जा रहा है क्या यह उचित है...?

दूसरी अहम बात ये एलन मस्क का पिता तो गौ मांस भी खाता है,

इसे प्रभु श्री राम जी के मंदिर औऱ अयोध्या में इतनी इज़्ज़त क्यो दी जा रही है VHP Digital वालो...?

या अब RSS org हिंदू की भावनाओं को रुपए में बेचते हो...?

● ज्ञात हो एलन मस्क ऐरोल मस्क की पहली बीवी से पैदा हुवे हैं जिसे ऐरोल मस्क ने तलाक़ देकर दूसरी महिला के साथ सालों तकलिव इन रिलेशनशिप में थे लेक़िन उससे कोई संतान नही होने से उससे अलग होकर तीसरी शादी Heidi Bezuidenhout नाम कीमहिला से किये जिस महिला की उसके पहले तलाकशुदा पति से महज 4 साल की बेटी थीजिसका नाम Jana है अब इसी सौतेलीबेटी के जवान होने पर ऐरोल मस्क को 2 औलाद Jana से हुवे हैं , ऐसे चरित्रहीन (कैरेक्टर लेसको मंदिरों में घुमाना स्टेट गेस्ट बनाना कितना  उचित है...!

शनिवार, 7 जून 2025

सबूत के साथ राहुल ने उठाये चुनाव पर सवाल

 सबूत के साथ राहुल ने चुनाव पर उठाये सवाल…


देश के नामचीन अखबारों में आज राहुल गांधी के छपे लेख से मोदी सत्ता को कितना फ़र्क़ पड़ेगा कहना मुश्किल है लेकिन जिन चुनावी व्यवस्था को लेकर राहुल ने सबूत के साथ बेईमानी को सामने रखा है क्या जनमानस पर इसका असर 

राहुल गांधी ने लिखा यह पांच प्रमुख तरीके हैं जिनसे चुनाव प्रभावित किया जा रहे हैं! पहले उन्होंने लिखा चुनाव आयोग की नियुक्ति को लेकर सरकार ने जो कुछ भी कदम उठाए हैं वह पारदर्शी नहीं है 

आप खुद सोचे cji ,प्रधानमंत्री और वि पक्ष का नेता चुनाव आयोग के अधिकारी तय करता था मुख्य चुनाव आयोग के अधिकारी को तय करने के लिए इन तीन सदस्यों की कमेटी थी जो बहुमत से किसी को भी चुनाव आयोग का अध्यक्ष  बनाती थी!

लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने संसद में प्रस्ताव पास कर कर अपने बहुमत की ताकत से इस पूरी प्रक्रिया को विवादास्पद बना दिया है उन्होंने आगे लिखा अब मुख्य चुनाव अधिकारी बनने के लिए cji को हटाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री को शामिल कर लिया गया है ऐसे में आप खुद सोच सकते हैं एक निष्पक्ष आदमी को हटाकर एक पूर्वाग्रह वाले आदमी को यदि नियुक्ति के लिए आगे करते हैं तो इसका सीधा मतलब है आपका मन साफ नहीं है! 

जब दो व्यक्ति एक साथ मिलकर किसी अपने व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को जिस पर देश का विश्वास नहीं है चुनाव अधिकारी बनना चाहेंगे तो विपक्ष का नेता और उसके विरोध के बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ेगा! 

सब इसलिए किया गया ताकि चुनाव आयोग पर अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का नियंत्रण रह सके ताकि वह अपने हिसाब से चुनाव को मैनेज कर 

राहुल गांधी फिर फर्जी वोटो का जिक्र करते हैं उनका कहना है की चुनाव आयोग को अपने हिसाब से मैनेज करने के बाद सरकार चुनाव जीतने के लिए फर्जी वोटो का उपयोग करती है! 

 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 76 लाख वोट बढ़ाए गए और उन चुनाव क्षेत्र को टारगेट किया गया जहां लोकसभा चुनाव में वह हारी वो!

उन्होंने इस बात के साक्ष्यप दिए की एक ही वाटर नंबर से अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से वाटर दर्ज हैं जिनका उपयोग फर्जी वोटो के लिए किया जाता है! 

राहुल गांधी लिखते हैं फर्जी वोटरों के लिए कुछ बूथ भाजपा द्वारा निश्चित कर लिएजाते हैं, उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में 100000 वाटर केंद्र है लेकिन इसमें से सिर्फ 12000 बूथ का चयन किया गया जहां फर्जी वोटिंग करवाई गई!

ऐसे मतदान केदो पर औसतन 600 वोट फर्जी डालें अब आप सोच सकते हैं 5:00 बजे बाद यह 600 वोट डाले जाएं तो 10 घंटे का समय लगता है प्रति वाटर समय के हिसाब से क्या किसी बूथ पर भी 10 घंटे लाइन रही है! 

एक और आश्चर्यजनक बात यह थी बड़े हुए फर्जी वोटरों में नई उम्र के वोटर नहीं थे ज्यादातर उम्र दराज वॉटर थे जो चुनाव आयोग के इस दावे को भी गलत साबित करता है कि यह नए वोटरों में उत्साह की वजह से हुआ है!

नांदेड लोकसभा क्षेत्र इसका एक बेहतरीन उदाहरण है जहां पार्लियामेंट के चुनाव में यूपीए का उम्मीदवार जीत जाता है और वही सारी विधानसभा सीटों पर भाजपा का गठबंधन और वोटो का मार्जिन विधानसभा में इतना ही रहता है जीतने वोट बढ़ाए गए थे!

 भारतीय लोकतंत्र में यह बेहद चौंकाने वाला उदाहरण है एक ही मतदाता पर्ची लेकर बूथ में वोट डालने गया और अलग-अलग पार्टियों को वोट डाला और आश्चर्य तो इस बात का था कि उसने स्टेट में देवेंद्र फडणवीस को केंद्र में मोदी जी से ज्यादा प्राथमिकता दी! सवाल था क्या यह संभव है?

इसी तरह कामठी विधानसभा का उदाहरण भी दिया गया जहां लोकसभा में कांग्रेस को 136000 वोट मिले थे और भाजपा नीत गठबंधन को 119000 विधानसभा में यहां 50000के  लगभग वोट बढ़ाए गए और जब परिणाम आया विधानसभा का तो कांग्रेस को वोट मिले 134 000 जो पिछले लोकसभा के ही आसपास थे लेकिन भारतीय जनता पार्टी के वोट बढ़ाकर 175000 हो गए जिसमें 50000 वोटो का बहुत योगदान था!

राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया के चुनाव आयोग द्वारा चुनाव के बाद जानबूझकर बढ़ा हुआ मत प्रतिशत बताया जाता है, 5:00  बजे के बाद जिन बूथों पर 

भारी मात्रा में मतदान प्रतिशत बताया जाता है यह सब मैनेज किया हुआ होता है! 

राहुल गांधी ने मिसमैच को लेकर भी सवाल उठाए राहुल गांधी का कहना था जब वोटिंग मशीन  इतनी परफेक्ट है तो जीतने वोट डाले जाते हैं उससे ज्यादा क्यों गिनती है या कम क्यों 

राहुल गांधी ने चुनाव चोरी करने के लिए चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा चुनाव आयोग द्वारा जवाब नहीं दिया जाता और जो तथ्य पूछे जाते हैं उनको तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है! 

उल्लेखनीय है की वोटिंग लिस्ट के सवाल पर कांग्रेस के तमामतर सवाल जो किए गए थे 

चुनाव आयोग ने  अभी तक उनका तथ्यात्मक जवाब नहीं दिया है! कुछ मामलों में तो उन्होंने यह कह कर भी पल्ला झाड़ लिया है कि हमारे पास इसका रिकॉर्ड नहीं है! 

अपनी शिकायत और सवालों का जवाब न देकर भारतीय लोकतंत्र की जो पारदर्शी पहचान थी उसको भी भारतीय चुनाव आयोग द्वारा खंडित किया जा रहा है! 

राहुल गांधी ने यह भी कहा चुनाव आयोग द्वारा सबूत को नष्ट किया जाता है ताकि उसे साबित नहीं किया जा सके! 

क्या आवश्यकता थी वोटिंग मशीनों से डाटा इरेज़ करने की, दिन भर वोटिंग मशीनों में काम आने वाली बैटरी है आखिर क्यों कई दिन बाद भी 100% पाई जाती है जब वोट गिने जाते हैं!

चुनाव आयोग ने हरियाणा के महाराष्ट्र के यहां तक की लोकसभा चुनाव के भी डाटा इरेज़ कर दिए हैं मशीनों से डाटा हटा दिए गए हैं! 

सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद भी जब हजारों रुपए जमा कराकर ईवीएम मशीन को री  चेक करने की बात की गई तो चुनाव आयोग ने जिन हुए दाताओं को नहीं बताया बल्कि मार्क ड्रिल कर कर मशीन की सत्यता स्थापित करने की कोशिश की जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है! हिंदी अंग्रेजी दोनों में छपे इस लेख में राहुल गांधी ने इन पांच बातों से किस तरह चुनाव चोरी किया जाता है इसके बारे में विस्तार से लेख में अपनी बात रखी है !

महाराष्ट्र चुनाव के बाद जन विचार संवाद के पटल पर लगातार क्रमशः धारावाहिक के रूप में मैंने इन चुनाव चोरी पर फीचर लिखे थे और चुनाव व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए थे आज राहुल गांधी जी ने भी इस व्यवस्था को नंगा करने का प्रयास किया है और देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए शायद चुनाव की पारदर्शिता बेहद जरूरी है!

आखिर भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक पारदर्शी चुनाव व्यवस्था के इ तने खिलाफ क्यों हैं?पारदर्शी चुनाव की बात करते ही वह सबूत की बात करते हैं अरे सबूत तो चुनाव आयोग नष्ट कर रहा है कहां से  लाएंगे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो का उल्लंघन हो रहा है सरकार, मुक्त दर्शक बनी हुई है और कानून के हाथ बांध दिए गए हैं क्या यह सब अपने आप में प्रमाण नहीं दाल में कुछ काला है? (साभार)