सोमवार, 30 जून 2025

थैलेसीमिया और सिकलसेल से जूझ रहे बच्चों के लिए …

 थैलेसीमिया और सिकलसेल से जूझ रहे बच्चों के लिए …


थैलेसीमिया और सिकलसेल से जूझ रहे बच्चों के लिए एक जीवनदायिनी पहल के तहत दो जुलाई को काश फ़ाउंडेशन के द्वारा मुफ़्त में खून उपलब्ध कराने के लिए शिविर लगाया जा रहा है यह आयोजन fafadih रायपुर में आयोजित है।

काश फ़ाउंडेशन के काजल सचदेवा, रोटरी क्वींस की प्रभजीत कौर और दीपेंदर कौर ने बताया कि इससे किसी का जीवन अमृत बन सकता है इसलिए इसे अमृत रक्त नाम दिया है 

थैलीसीमिया यह खून से जुड़ी बीमारी है, जिसमें ऑक्सीजन ले जाने वाला प्रोटीन, सामान्य से कम मात्रा में होता है।

थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है जिसमें शरीर में सामान्य से कम ऑक्सीजन ले जाने वाले प्रोटीन (हीमोग्लोबिन) और कम लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं।

इसमें थकान, कमज़ोरी, पीलापन और धीमी रफ़्तार से विकास जैसे लक्षण शामिल हैं।

हो सकता है कि सामान्य मामलों में इलाज की ज़रूरत ना हो। लेकिन गंभीर मामलों में खून चढ़ाने, या डोनेट की गईं स्टेम कोशिकाओं के प्रत्यारोपण (डोनर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट) की ज़रूरत हो सकती है।

इसी तरह से सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक विकार है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं हंसिया के आकार में परिवर्तित हो जाती हैं। कोशिकाएं जल्दी मर जाती हैं, जिससे स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (सिकल सेल एनीमिया) की कमी हो जाती है और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है जिससे दर्द (सिकल सेल संकट) हो सकता है।

सिकल सेल रोग के लक्षणों में संक्रमण, दर्द, और थकान शामिल है।

इसके इलाज में, दवाएं और शरीर में खून चढ़ाना शामिल है। कभी-कभी बोन-मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है।

रविवार, 29 जून 2025

भारतीय मीडिया और जोहरान ममदानी…

भारतीय मीडिया और जोहरान ममदानी…


भारतीय मीडिया ख़ुद अपना तमाशा बना रही है चाहे ममदानी का मामला हो या शेफाली का… संवेदनहीनता की पराकाष्ठा और सत्ता की जी हुजूरी का ऐसा उदाहरण आपको पूरी दुनिया में नहीं मिलेगा…

भारतीय मीडिया का चेहरा आज अपनी विश्वसनीयता खो चुका है मीडिया का काम सूचना देना है, न कि सनसनी फैलाना। लेकिन टीआरपी की अंधी दौड़ में, चैनल और डिजिटल प्लेटफॉर्म तथ्यों को दरकिनार कर अफवाहों को हवा देते हैं। शेफाली जरीवाला, जो महज अपने एक नृत्य गीत  के लिए जानी जाती हैं, को इस बार उनकी कथित मृत्यु की खबरों ने सुर्खियों में ला दिया। बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के, उनके निजी जीवन, करियर और यहां तक कि मृत्यु के काल्पनिक कारणों पर बहस छेड़ दी गई। क्या यह पत्रकारिता है या संवेदनहीनता की पराकाष्ठा?

यह प्रवृत्ति केवल शेफाली तक सीमित नहीं है। कोई भी सेलिब्रिटी, चाहे वह कितना ही सम्मानित क्यों न हो, इस मीडिया की भूख का शिकार बन सकता है। मृत्यु जैसे गंभीर विषय को भी मजाक बना देना, परिजनों के दुख को तमाशा बनाना, क्या यही है हमारी चौथी दीवार का कर्तव्य? कथावाचक बन चूका मीडिया सुधरने वाला नहीं है , अब यह तय हो गया है ! 

रील देखकर समय गुजारती पीढ़ी से भी संजीदगी की उम्मीद नहीं है। उनके भी सोंच और संवेदना में उथलापन पसर गया है।  फिर भी आग्रह है कि सनसनी के प्रसार का तमाशा बंद होना चहिये।


भारतीय (गुजराती) मूल के डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से न्यूयॉर्क के मेयर प्रत्याशी जोहरान ममदानी की भारत में मुख्यधारा की मीडिया द्वारा खूब आलोचना हो रही। 


हालांकि  ममदानी एक प्रगतिशील राजनेता हैं, जो मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखर रहे हैं। उनके 2002 के गुजरात दंगों और भारत में मुस्लिम उत्पीड़न संबंधी बयान उनके वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रति समर्थन को दर्शाते हैं, जो उनकी राजनीतिक विचारधारा का हिस्सा है। कंगना राणावत और अभिषेक मनु सिंघवी को मीडिया में बने रहने के लिए मुद्दा चाहिए जो वो बखूबी निभा रहे हैं। 


उनकी इजरायल-नेतन्याहू तुलना फिलिस्तीन समर्थन के संदर्भ में थी, जिसे उनके समर्थक उत्पीड़न के खिलाफ साहसी रुख मानते हैं। न्यूयॉर्क में 15 लाख से अधिक यहूदी हैं जिसमें आधे से अधिक ममदानी के समर्थन में हैं। ममदानी के बयान उनके न्यूयॉर्क के मतदाताओं के लिए हो सकते हैं, न कि भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप। यह विवाद उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारत की संवेदनशीलता के बीच तनाव को उजागर करता है।

अब तक आपको पता चल ही गया होगा। प्रख्यात फ़िल्मकार मीरा नायर के पुत्र  33 वर्षीय इस अप्रवासी मुस्लिम अमेरिकन युवा  ने दुनिया भर के मीडिया को अपने बारे में बात करने के लिए काफी मसाला दे दिया है।  सब कुछ ठीक रहा तो यह शख्स नवंबर में  न्यूयॉर्क का मेयर बन जाएगा। महज पिछले दो दिनों में ममदानी भारतीय मीडिया में विलेन बनकर उभर रहे है , वजह बस इतनी सी है कि उन्होंने  गुजरात के 2002 के जख्मों के लिए  मोदी का नाम लिया है साथ ही  नेतन्याहू का नाम भी लेते हुए इन दोनों को ' युद्ध अपराधी ' करार दिया है।  

अब भारतीय पालतू मीडिया इस बात को कैसे बर्दाश्त कर सकता है! जो मोदी के खिलाफ बोलेगा उसे भारत के दुश्मन के रूप में प्रोजेक्ट करना उसका परम धर्म होगा ही। लिहाजा ममदानी इस समय भारत के ' एनीमी नंबर वन ' घोषित हो चुके है। 

न्यूयॉर्क का मेयर कोई भी बने , उससे हमारी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन इनके वीडियो ढूढ़ कर देखने का प्रयास करे , अंग्रेजी के अलावा  आठ भारतीय भाषाओ को धारा प्रवाह बोलने वाला यह युवक आपको प्रभावित जरूर करेगा , इसकी गारंटी है।

शनिवार, 28 जून 2025

देश प्रेम के मायने…

 देश प्रेम के मायने…


आज जब देशप्रेम के मायने बदल गये है तब 1937 की घटना को याद करते हुए मन भर जाता है कि इस दौर में मोदी सत्ता ने क्या कर दिया है तब इसे एक बार ज़रूर पढ़े…

डेढ़ घंटा,,, आज चंचल दादा( Chanchal Bhu  )ने एक पोस्ट डाली है डेढ़ घंटे वाले पत्र की कांग्रेस पर,, इसी पर याद आया डेढ़ लाइन के एक पत्र का वह भी कांग्रेस से ही संबंधित है। 👉


यू पी मे एक जिला है गाजीपुर,,। जिसे शहीदों की धरती, वीरों का देश भी कहते हैं।यह जिला पहले से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। 


मंगल पांडे से लेकर अब्दुल हमीद तक के नाम को सभी जानते हैं। 


उसी जिले की एक तहसील है, सैदपुर। सन् रहा होगा 1937का। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू ही हुआ था अभी। 


दो भाईयों के परिवार में पांच लड़के वयस्क हो रहे थे। बड़ा बेटा जिला कांग्रेस का महा मंत्री बन कर देश के लिए जेल में था। 


दूसरा घर की खेती देख रहा था, तीसरा हाई स्कूल पास कर निकला ही था। पिता से उपेच्छित था, किन्तु बड़े भाई का लाडला। 


नई नई भर्ती हो रही थी दरोगा की, चुन लिया गया। किन्तु बिना भाई के परमिशन के जाए तो जाए कैसे,,,जाए ! 


अब परमिशन भी कैसे ले,,? पूछने की भी हिम्मत नहीं। भाई के प्यार के साथ उनके गुस्से से वाक़िफ़। इरादा हुआ पत्र लिखकर पूछने का। 


अब पत्र में भी भला क्या लिखे,,? बहुत सोचने के बाद लिखा,,👉👇

 "भ्राता जी प्रणाम, 

दरोगा की नौकरी करने चंदोली जाए क्या? "


अब यह पत्र कैसे पहुँचे, खुद दे कर उत्तर प्राप्त करने का निर्णय लेकर पहुँच गए जिला जेल, गाजीपुर। 


उस समय भी नमक सत्याग्रह के कारण जेल में बन्द थे बड़े भाई, नर सिंह जी। पहुँचने के बाद गाँव घर का हाल - चाल हुआ। घर से लाये कुछ सामान के साथ पत्र दे दिया धीरे से। 


भाई ने सोचा कोई गुप्त खबर होगी,चुपके से पीछे जाकर पढ़ने लगे। 


सिर्फ एक मिनट भी नहीं बिता होगा,,, गुस्से से एकदम लाल, क्रोध में फुफकारते हुए चिल्लाये,,, 👉👇


" अरे,,कमीना तूने यह सोच कैसे ली, कुत्तों की नौकरी करने की,,!?, 


,,,मै कांग्रेस में रहु और मेरे घर का कोई इन कुत्तों का तलुवा चाटे,,, यह नहीं हो सकता। ,,,,, "


"तुझे नौकरी करनी है तो रुक तुझे मै अभी रानिवा आश्रम(फैजाबाद)  भेजवा दे रहा हूँ। जा तु वहाँ गाँधी आश्रम के काम को कर। तुझे वहाँ तनख्वाह भी मिलेंगी और तु देश की सेवा भी करेगा। "


तुरंत एक कागज पर किसी के नाम पत्र लिख कर दे दिये।अगले एक महीने के अंदर छोटा भाई रनिवा आश्रम में हथकरघा का काम सिख रहा था। 


दरसल उस समय कांग्रेस के नेताओं को तोड़ने के लिए अंग्रेज हर हथकंडे अपना रहे थे। जब जेल और मार के बाद भी नर सिंह नही टूटे और ना कांग्रेस छोड़ी तो जेलर ने छोटे भाई को मिलाने के लिए नई हो रही भर्ती में उनकी पोस्टिंग करवा दी। 


किन्तु वह बबर शेर ही क्या जो सवा शेर पर भारी ना पड़े,,नर सिंह,! 


डेढ़ लाइन के पत्र पर डेढ़ पन्ने का पत्र भारी पड़ गया।एक साल रनिवा आश्रम मे रह कर कपड़े की रंगाई , विनाई, धुलाई हुई। 


किन्तु दुर्भाग्य,,, जेल में पुलिस की पिटाई और कुपोषण के कारण जल्द ही टी वी से बड़े भाई जी की मृत्यु के बाद उन्हें घर आना पड़ा। 


फिर वापस नहीं जा पाए रनिवा,,,। बल्कि भाई के ना रहने पर फ़ौज मे चले गए। फिर वहाँ से नेताजी के साथ,,आजाद हिंद फ़ौज में।।🙏🏾

शुक्रवार, 27 जून 2025

जहाँचाह-वहाँ राह…

 जहां चाह-वहाँ राह,,,


ये कहानी फ़िल्मी नहीं है बल्कि असमान से उतरा वह सच है जो धरातल पर चीख चीख कर कहता है, हाँ मैं यह कर सकता हूँ, आत्मसम्मान से बढ़कर कुछ नहीं, और वो कहते है मन का हारे हार है और मन का जीते जीत… ऐसा ही एक सच जो आपको भाव विभोर कर देगा…

 लड़का अपने स्कूल की फुटबॉल टीम का कप्तान था. लड़की चीयरलीडर्स की मुखिया. दोनों में मोहब्बत होती है और वे कुछ ही समय बाद शादी कर लेते हैं. यह 1961 का साल था. डिक हॉइट और जूडी लेटन की इस दास्तान ने फकत एक मामूली प्रेमकथा बनकर रह जाना था अगर शादी के अगले बरस जन्मा उनका बेटा एक गंभीर बीमारी लेकर पैदा न हुआ होता.

डाक्टरों ने उन्हें राय दी कि वे अपने बेटे को भूल जाएं और उसे किसी मेडिकल रिसर्च संस्थान को दान कर दें क्योंकि बच्चा जीवन भर चल-फिर या बोल सकने वाला नहीं था. डिक और जूडी ने ऐसा नहीं किया. वे उसे घर लेकर आए और उसका नाम रिक रखा. उन्हें उम्मीद थी उनका बच्चा कभी न कभी उनसे किसी तरह का संवाद कर सकेगा.

जूडी ने कड़ी मशक्कत के बाद बच्चे को इस लायक बना दिया कि वह संख्याओं और अक्षरों को पहचान सके. रिक 11 बरस का हुआ तो माँ-बाप ने टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों से मदद माँगी. काफी मेहनत के बाद वैज्ञानिक रिक के शरीर को एक ऐसे कम्प्यूटर से जोड़ पाने में कामयाब हुए जिसके कर्सर को वह अपने सर से छूकर नियंत्रित कर सकता था. 

आखिरकार रिक संवाद स्थापित कर सकने में सफल हुआ. उसने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया था. स्कूल में एक चैरिटी रेस होने वाली थी. रिक ने उसमें भाग लेने की इच्छा जाहिर की.

शारीरिक रूप से बेहद मिसफिट हो चुके बाप की सांस एक किलोमीटर दौड़ने में फूल जाती थी. पांच किलोमीटर कैसे भाग सकेगा? वह भी अपने बेटे को उसकी व्हीलचेयर में बिठाकर धकेलते हुए.

डिक हॉइट को उसके अंतर्मन ने लताड़ा, “विकलांग तुम्हारा बेटा है या खुद तुम?”

कोशिश करने में क्या हर्ज़ है - उसने अपने आप से कहा और रेस में हिस्सा लिया. दो सप्ताह तक डिक की मांसपेशियां दर्द करती रहीं लेकिन उस दिन रेस ख़त्म होने के बाद बेटे रिक ने जो बात कही थी उसने दोनों का जीवन बदल दिया. रिक ने पिता से कहा – 

“जब आप और मैं दौड़ रहे थे, मुझे महसूस हुआ जैसे मैं विकलांग हूँ ही नहीं.”

डिक हॉइट ने अपने बेटे को वह अहसास बार-बार दिलाने का फैसला किया और अपनी देह पर इस कदर मेहनत की कि बाप-बेटे 1979 में दुनिया की सबसे मशहूर मैराथन यानी बोस्टन मैराथन के लिए तैयार थे.

लेकिन बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने साफ़ मना कर दिया. वे बाप-बेटे की जोड़ी को एक धावक नहीं मान सकते थे. 

डिक ने हार नहीं मानी और अगले चार साल तक खूब मेहनत की. 1983 में वे एक मैराथन इतनी तेज़ भागे कि उन्होंने अगले बरस की बोस्टन रेस के लिए क्वालीफाई कर लिया. 

उसके बाद से हर साल की बोस्टन मैराथन में उन्हें टीम हॉइट के नाम से प्रवेश मिला और उन्होंने अगले बत्तीस साल तक उसमें हिस्सा लिया. 1992 की मैराथन में उनका समय वर्ल्ड रेकॉर्ड से कुल 35 मिनट कम रहा. 2007 वाली मैराथन के समय पिता-पुत्र की आयु क्रमशः 65 और 43 थी. कुल 20 हज़ार धावकों ने हिस्सा लिया और टीम हॉइट का नंबर रहा - 5,083 जो करीब 15 हज़ार स्वस्थ स्त्री-पुरुषों से बेहतर था. 

2014 में उन्होंने अपनी आख़िरी बोस्टन मैराथन दौड़ने की घोषणा की क्योंकि डिक 74 साल के हो चुके थे और उनका शरीर कमज़ोर पड़ रहा था. 2015 से लेकर 2019 तक मैसाचुसेट्स के एक डेंटिस्ट ब्रायन लियोन्स ने डिक की जगह ली और रिक की व्हीलचेयर को धकेलने का जिम्मा उठाया. बदकिस्मती से जून 2020 में मात्र 50 की आयु में लियोन्स की मौत हो गई.

उधर रिक ने 1993 में बोस्टन यूनीवर्सिटी से स्पेशल एजूकेशन में डिग्री हासिल की और बोस्टन कॉलेज की एक कम्प्यूटर लैब में नौकरी करना शुरू किया जो विकलांगों के लिए विशिष्ट संचार तकनीकों पर कम कर रही थी. 

पहली बोस्टन मैराथन के कुछ समय बाद किसी ने डिक को ट्रायथलन में हिस्सा लेने का विचार दिया. डिक को तैरना नहीं आता था और साइकिल उसने छः साल की उम्र के बाद से नहीं चलाई थी.  

कोशिश करने में क्या हर्ज़ है - उसने अपने आप से फिर से कहा और एक ट्रायथलन में हिस्सा लिया. 2005 तक वे 212 ट्रायथलन दौड़ चुके थे.

2003 में डिक हॉइट को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टरों ने पाया उसके दिल की एक धमनी 95% ब्लॉक्ड थी. “अगर तुम दौड़ न रहे होते तो शायद 15 बरस पहले मर गए होते” – डाक्टरों ने उसे बताया.

विकलांग रिक ने इस तरह अपने पिता को नया जीवन भी दिया. एक इंटरव्यू में अपने पिता को ‘फादर ऑफ़ द सेन्चुरी’ बताने वाले रिक ने कहा था, “मेरे दिल में एक ही ख्वाहिश है कि पापा कुर्सी पर बैठे हों और उन्हें धकेलता हुआ मैं दौड़ रहा हूँ.”

टीम हॉइट ने ग्यारह सौ से ज़्यादा दौड़ों में हिस्सा लिया. 17 मार्च 2021 को अस्सी साल की आयु में डिक हॉइट की मृत्यु हो गई.

2013 में बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने पिता-पुत्र के अविश्वसनीय और अदम्य हौसले के सम्मान में उनकी एक प्रतिमा ठीक उस जगह स्थापित की जहाँ से यह प्रतिष्ठित रेस शुरू होती है.(साभार)


मूर्ति के नीचे लिखा हुआ है – “यस यू कैन!”


Ashok Pande

गुरुवार, 26 जून 2025

आपात काल का एक और सच…

 आधी रोटी खाएँगे , इंदिरा वापस लायेंगे…

और इस नारे ने इंदिरा को वापस सत्ता में ले आये..


लेकिन संसद की देहरी से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपातकाल की याद दिलाते समय यह बात भूल गये, भूले तो वे विनोबा जी द्वारा इस आपात काल को अनुशासन पर्व कहा था,, हम आपात काल की वकालत नहीं बल्कि एक और सच्चाई आपको दिखा रहे है…

दरअसल आरएसएस और बीजेपी के पास गाड़े मुर्दे उखाड़ने के अलावा कुछ बचा भी नहीं है तब सीतामढ़ी के राजकुमार गुप्ता ने जो लिखा वह भी लोगों को जानना चाहिए…  

इंदिरा गांधी ने संविधान के दायरे में रहते हुए अराजकता, देशविरोध और विदेशी एजेंटों से  देश को बचाया. अगर वह निर्णय नहीं लिया गया होता, तो भारत का राजनीतिक और सामाजिक ढांचा नष्ट हो जाता.


आपातकाल को केवल एकतरफा आलोचना से नहीं, बल्कि उस समय की ऐतिहासिक परिस्थितियों, सामाजिक विघटन और विद्रोह के प्रयासों की पृष्ठभूमि में देखना होगा।


जब देश अराजकता के कगार पर था, तब एक स्त्री ने " आयरन लेडी " ने सही निर्णय लेकर भारत को बचाया.... 

                        


नए संसद सत्र प्रारंभ के ठीक पूर्व संसद की देहरी से आपातकाल की याद दिलाते नरेंद्र मोदी शायद यह भूल रहे हैं कि इन्हीं के पितृ संगठन आरएसएस की बढ़ती अनुशासनहीनता के कारण ही आपातकाल लगाया गया था जिसे विनोबा जी ने अनुशासन पर्व की संज्ञा दी थी. 


इस दौर में हर जगह संघ के संधियों की साहूकारी चल रही थी. मुनाफाखोरी और गोदामों में अनाज भरकर कालाबाजारी की जा रही थी. जबकि किसान और आम आदमी कर्ज़ के तले दबा जा रहा था. लोगों की निजी संपत्ति और ज़मीन जायदाद इन लोगों के अधीन गिरवी होते जा रहे थे. मजदूर बंधुआ मजदूरी करने विवश किए जा रहे थे.


कालेज, यूनिवर्सिटीज बंद से हो गए थे और पाठ्यक्रम तीन साल पीछे चल रहा था. हर जगह अव्यवस्था का आलम सम्पूर्ण क्रांति के नाम पर चल रहा था. 


ट्रेन घंटों पीछे चला करती थी और इनके साथी जार्ज फर्नांडिस डायनामाइट लगा कर बड़ौदा में ट्रेन उड़ाने का षड्यंत्र रच रहे थे. 

जेपी ने पुलिस और सेना से सरकार का आदेश न मानने का आह्वाहन कर डाला. यह सब भारत जैसे लोकतंत्र में सीधे विद्रोह की चेष्टा थी. अगर यह सब चलता रहता, तो भारत एक अराजक, विखंडित और गृहयुद्ध की ओर बढ़ता देश बन जाता.


इंदिरा जी ने आपातकाल लगा कर देश को विखंडन और विदेशी षड्यंत्रों से बचाने का एक रणनीतिक कदम उठाया, सब चीजों को व्यवस्थित किया. बीस सूत्री कार्यक्रम लागू किया जिससे हर वंचित को लाभ पहुंचाने के वास्तविक प्रयत्न किए गए. बैंक फाइनेंस की झड़ी लगा दी गई ताकि हर व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार व्यवसाय और जीवनयापन कर सके. 


ट्रेन इतने समय पर चलने लगी थीं कि उनके आगमन से लोग अपनी घड़ी मिलाने लगे थे. हर किस्म की हड़तालें बंद हो गई थी और कल कारखाने पूर्ववत चालू हो गए थे.  जनता एक तरह से खुश हो रही थी. यह कदम भारत को अराजकता, सामाजिक विघटन, और विदेशी प्रायोजित "टुकड़े-टुकड़े गैंग" के हाथों में गिरवी रखने से बचाने का था।


सबसे ज्यादा  संघ परिवार के लोग ही जेल भेजे गए थे. यही वे संघी थे जो जेल से अपने माफीनामे सरकार को भेजा करते थे और उनका विधिवत प्रकाशन समाचार पत्रों में सशुल्क छपवाते थे, और तब पैरोल पर जेल से छूटते थे. एक प्रकार से तब वे अपने आप में सावरकर को दोहरा रहे थे. देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की यह कोई बड़ी सजा नहीं.

सेना के साथ मिलकर कुछ लोग सत्ता हथियाना चाहते थे. वो इलाहाबाद का जज भी जे पी का रिश्तेदार था. कमाल तो देखो, इनके समुदाय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने को sc ( हरिजन ) घोषित करने का मुकदमा कर रखा है जो आज भी लंबित है. बुरा दौर था. मैं उसका समर्थन नहीं करता. लेकिन आज का दौर उससे भी बुरा है.

यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि इंदिरा गांधी जब इमरजेंसी हटाने पर विचार कर रही थीं तो कौन लोग इमरजेंसी के पक्ष में बयान दे रहे थे? अगर विकीपीडिया पर भरोसा करें तो इमरजेंसी हटाए जाने की घोषणा के महज चार महीने पहले- यानी नवंबर 1976 में माधवराव मुले, दत्तोपंत ठेंगड़ी और मोरोपंत पिंगले के नेतृत्व में 30 से ज़्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि अगर आरएसएस कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया जाए तो वे लोग इमरजेंसी का समर्थन करेंगे. वाजपेयी भी इसके पक्ष में थे.

संजय गांधी की नसबंदी की जबराना हरकतों की वजह से इंदिरा गांधी चुनाव हारी और बाद में जो संघनीत सरकार बनी, उसने सबसे पहले ऐसे तमाम जेल यात्रियों के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन शुरू की गई जिसका लाभ उन्हें अब तक मिल रहा है जो अभी शायद 25000 प्रतिमाह है. आंदोलनजीवी को अशांति फैलाने का यह पुरस्कार कितना वाजिब है यह देश तय करेगा.

 इमरजेंसी उपरांत इंदिरा जी चुनाव हार गयीं और इंदिरा जी के विरूद्ध भ्रष्टाचार और तमाम फालतू के आरोप लगाकर जांच करने के लिए गुजरात के एक जज छोटा भाई शाह के नेतृत्व में शाह कमीशन बनाया गया ।

वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह ने कहा था कि शाह कमीशन में कार्यवाही नहीं खिलवाड़ हो रहा था।

उस कमीशन के सामने कांग्रेस सांसद शशि भूषण बाजपेई ने ३५० पन्नों की साक्ष्य प्रस्तुत की जिसमें जनसंघ के एकाउंट नंबर और उनमें आने वाले पैसे का जिक्र किया गया और शाह कमीशन की रिपोर्ट बिल्कुल पढ़ी नहीं गयी।

जनता पार्टी की सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी और वो बेटे को दलाली करवाने लगे और ये पहले लिख चुका हूं और जयप्रकाश नारायण दिल्ली आये और दलाली देखी तो उनको दिल्ली के मौर्या शेरेटन होटल में पूरे सम्मान के साथ नजरबंद कर दिया गया और कुछ दिन बाद जेपी किडनी पकड़कर बिहार वापस चले गये।

 कुछ ही दिनों बाद सारा झूठ का महल भरभरा कर गिर गया और लोग चीखने लगे " आधी रोटी खाएंगे इंदिरा वापस लायेंगे" 

कुदरत ने आगे और खेल दिखाया आगे चलकर। 

देश के साथ गद्दारी करने वाले निक्सन के दलाल जेपी कैसे निपटे? अटल बिहारी वाजपेई और जार्ज फर्नांडिस दस दस साल देश के साथ गद्दारी करने की सजा पाकर मरे और उनका बास रिचर्ड निक्सन अमरीका में जलील करके वाटरगेट कांड में महाभियोग के जरिए हटाया गया और आज कैनेडी, आइजनहावर या ओबामा की तरह उसे कोई याद करने वाला नहीं है और शेरनी की तरह मुस्कुराते हुए शहीद हुयीं इंदिरा जी को कोई भूलने वाला नहीं है। 

तुम मर जाओ जेपी ... 

क्या आप जानते है कि जेपी के कंधों पर सवार होकर आने वाली जनता सरकार, जेपी की मौत के लिए कितनी उत्साह से भरी हुई थी। जेपी, जो आंदोलन के नेता थे, जनता सरकार की सत्ता में दलाली देखकर टूट गए। मौर्या शेरेटन होटल में नजरबंद किए गए और बीमार होकर लौटे।

हांजी, बीमार जेपी के मरने के पहले ही उन्हें संसद में हड़बड़ तड़बड़ श्रद्धाजंलि भी दे दी थी। फिर पता चला, अभी साहब जिंदा है, तो भरी संसद से माफी मांगी गयी। 

गूगल कीजिए, मिल जाएगा। 

इंदिरा की "तानाशाही" के खिलाफ...? 

जेपी आंदोलन आखिर था क्यों? ऐसा कौन सा भ्रष्टाचार हो गया? जब नियमित चुनाव हो ही रहे थे, तो तानाशाही कैसे आ गयी? और जब माँग बिहार विधानसभा बरखास्त करने की थी, तो यह इंदिरा गांधी की सत्ता उखाड़ने की ओर क्यों बढ़ गयी?

◆◆◆◆

वे तानाशाहीपूर्ण निर्णय क्या थे?


प्रिवीपर्स खत्म करना?? बैंक नेशनलाइजेशन?? हरित क्रांति?? पाकिस्तान को दो टुकड़े करना??? या कांग्रेस के मोरारजी सहित कांग्रेस के सिंडिकेट को बेरोजगार कर देना?? 

आह, क्या मेस के खाने की फीस बढ़ जाना, गेहूं की कीमत बढ़ जाना, बेरोजगारी बढ़ जाना, रेलवे के वेतम भत्ते न बढ़ाना?? ये इतना बड़ा संकट था, कि देश की सेना और पुलिस से विद्रोह का आव्हान किया जाए। 

अगर हां, तो क्या आप आज के विपक्ष को, इन्हीं कृत्यों के लिए आप समर्थन देंगे?? 

●●

दरअसल 1975 की इमरजेंसी के बाद तो आप नसबन्दी, संजय गांधी, तुर्कमान गेट, मीसाबन्दी और किशोर कुमार के गाने न बजाने को तानाशाही गिना सकते हैं। 

लेकिन 1975 के इसके पहले कौन से निर्णय थे, जिसके खिलाफ जेपी आकर खड़े हो गए। 

कोई बताये...

मुस्लिम लीग जिन्ना के साथ सरकार बनाने वाले, अंग्रेजों के मुखबिर, गांधी के हत्यारे, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के विरोधी, संविधान और तिरंगा को जलाने वाले किस मुंह से संविधान रक्षा की बात करते हैं? 

जनता ने जल्द ही देखा कि संघ-जनसंघ-जनता पार्टी की सरकार न तो अनुशासन ला सकी, न विकास दे सकी। जल्द ही पूरे देश में नारा गूंजा —

"आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे!"

जनता का मन पलटा और 1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में लौटीं।

बा'द में जेपी ने इंदिराजी से माफ़ी मांगी थी- जेपी ने क़ुबूल किया था कि इंदिराजी के ख़िलाफ़ आंदोलन ग़लत था.(साभार)

बुधवार, 25 जून 2025

सीज़फ़ायर-युद्ध और ट्रंप…

 सीज़फ़ायर-युद्ध और ट्रंप…


यह दुनिया के लिए राहत की खबर है कि इज़राइल ईरान या भारत पाकिस्तान के बीज सीज़फ़ायर हो गया लेकिन युद्ध और सीज़फ़ायर के बीच जो कुछ हुआ वह क्या सब पूर्व में लिखी स्क्रिप्ट है ताकि कोई खेल खेला जा सके… राष्ट्रवाद के जुनून में जनता को धकेला जा सके…


जैसे भारत-पाकिस्तान में आभासी युद्ध करवाया गया था ड्रोन ड्रोन मिसाइल मिसाइलों का खेल किया गया था कुछ उसी तरह से यह स्क्रिप्ट भी लिख दी गई!


भारत-पाक युद्ध में भी क्या हुआ था सरकार ने स्वयं अपनी पीठ ठोकी थी पाकिस्तान को सूचना देकर आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए थे जहां से पहले ही आतंकवादी हटा लिए गए थे और अब तो यह भी साबित हो गया है की पहलगाम आतंकवादियों के लिए जिन आतंकवादियों को नामांकित किया गया था उसमें भी भारत सरकार चूक कर गई थी और वह आतंकवादी वह नहीं थे जिन्होंने हमला किया!


भारत में यह परसेप्शन बनाया गया कि हमने चुन चुन कर टारगेट हिट किया और पाकिस्तान ने इस बात के लिए जश्न बनाया की पहली बार पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत के बड़े-बड़े विमान को मार गिराया!


 दोनों तरफ से विन विन सिचुएशन का परसेप्शन मीडिया बनाता रहा और दोनों देश की जनता तमाशा देखते रही और दोनों देश के शासक सत्ता के पुनरप्राप्ति के प्रयासों पर अपने कदम बढ़ाते रहे और अमेरिका का राष्ट्रपति अपने व्यापारिक फायदा और अंतर्राष्ट्रीय सरपंची के लिए अपनी स्थिति मजबूत करता रहा!

पूरे देश में सेना की वर्दी पहनकर घूमने वाले तथाकथित 56 इंच कमांडर की जबान पर अभी तक पहलगाम के आतंकवादियों का सवाल वह कौन थे कब गिरफ्तार होंगे नहीं आ पाया है! 

समय की बिसात पर राजनीति के पासे  जब कूटनीति के सांचो में ढलते हैं, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है क्या सच है क्या झूठ? 

बाहर से दिखने वाली परिस्थितियों अंदर से कितनी शालीनता से एक दूसरे का सहयोगी बन जाती है हम अपेक्षित ही नहीं कर पाते!  और शायद इसी का नाम अंतरराष्ट्रीय राजनीति है !

फोर्दो पर हमले के बाद ईरान के चट्टानी संकल्प की परीक्षा लेते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने जो कुछ कहा ,किया वह चौंकाने वाला था! 

आज ईरान ने भी कतर स्थित अमेरिकन बेस पर हमला किया लेकिन उसके पहले उसने कतर को आगाह किया इसलिए एयर बेस पर ईरानी मिसाइल तो विस्फोट करती नजर आई, लेकिन जनधन की हानि बहुत न्यूनतम थी हमले के वेग के अनुपात में 

और इस एक घटना से विमर्श उपजने लगा क्या कहीं सब कुछ स्क्रिपटेड तो नहीं चल रहा!

ईरान की पहाड़ियों में दफन सुरक्षित किला फॉरदो पर अमेरिका की बंकर रोधी मिसाइल ने हमले किए और सुरक्षित अमेरिका का विमान इसराइल लौट गए! 

एक बारगी लगा नोबेल पीस प्राइज की दौड़ में शामिल ट्रंप ऐसी गलती कैसे कर सकते हैं? 

जो संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों का उल्लंघन ही नहीं बल्कि अमेरिकन नागरिकों की मानसिकता को भी हिट करता था!

लेकिन जैसा भारत-पाक युद्ध में हुआ ठीक वही परसेप्शन वहां क्रिएट किया गया!

 अमेरिका ने ईरान को पूर्व सूचना दी थी कि हमें इजरायल की संतुष्टि और अमेरिका की जो सीनेट की यहूदी लाबी है , उसकी मानसिकता को तुष्ट करने के लिए ऐसा प्रदर्शित करना पड़ेगा !

आप वहां से अपने आवश्यक और जो आपको हानि पहुंचा सकते हैं ऐसी सामग्रियों को हटा ले जो 15 दिन का समय दिया गया था ट्रंप के द्वारा शायद उसकी प्रति ध्वनि भी अब समझी जा सकती है! चट्टान का वह किला अमेरिका की बंकर रोधी मिसाइलों ने हिलाया, एक सीमा तक नष्ट भी किया लेकिन फिर भी कोई रेडियोएक्टिव प्रभाव ईरान पर दुनिया ने नहीं देखा मतलब साफ था वहां से यूरेनियम हटा लिया गया था! 

यह सब इतना आसान भी नहीं रहा होगा क्योंकि

 ईरान को इस बात के लिए राजी करने के लिए शायद यह भी कहा होगा कि हम इसराइल के माध्यम से सीज फायर का निवेदन आप तक पहुंचाएंगे और वह उस ईरान की मानसिकता को संतुष्ट करेगा जिसका परसेप्शन आपने बनाया है! 

नेतन्याहू भी इजरायल के लगातार होते नुकसान से परेशान थे एक के बाद एक मुस्लिम देशों पर हमले के बाद इजरायल की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हुई थी और युद्ध सामग्री का भंडार भी! 

कहीं की भी जनता युद्ध नहीं चाहती इजरायल की भी नहीं! नेतन्याहू परेशान थे, विद्रोह के स्वर इजराइल में भी उठने लगे थे!

अमेरिका ने समझाया इजराइल का प्राथमिक उद्देश्य युद्ध को लेकर यह था कि ईरान परमाणु संवर्धन नहीं कर पाए परमाणु बम नहीं बना पाए बंकर रोधी आक्रमण के बाद ईरान लगभग 10 साल पीछे चला गया है और यह इजरायल के लिए विन विन सिचुएशन है 

मिडिल ईस्ट में इजरायल के साथ सीधे युद्ध में शिरकत कर कर अमेरिका ने इजरायल की स्थिति को मजबूत किया है और इन्हीं सब तथ्यों की रोशनी में उन्होंने इसराइल पर दबाव डाला की  वह ईरान से  सीज फायर की रिक्वेस्ट करें!

एक चालाकीअमेरिका नेऔर की उन्होंने ईरान से अपनी एयरबेस जो कतर में थी उस पर भी हमला करवाया ताकि ईरानी मानसिकता और अमेरिका विरोधी मानसिकता इस बात से संतुष्ट हो सके कि ईरान ने सरेंडर नहीं किया नरेंद्र की तरह बल्कि अमेरिका के आक्रमण पर भी प्रत्यक्रमण कर जवाब दिया!

 ठीक इसी तरह जिस तरह इजराइल को समझाया गया कि चीन उत्तर कोरिया और सोवियत रूस ईरान को परमाण्विक हथियार दे सकते हैं इसलिए इस विषय को आगे बढ़ना तर्कसंगत नहीं!

अब व्यापार की बात होगी, शेयर मार्केट में तेजी होगी सोने के भाव गिरेंगे और पेट्रोल की आपूर्ति निरंतर रहेगी लेकिन सवाल सबसे बड़ा है क्या ईरान इजरायल युद्ध में भारत की विदेश नीति और कूटनीति एक बार फिर से आहत नहीं हुई है? 

अपने अपने तर्कों से आपके जवाब प्रतीक्षित रहेंगे पर फिलहाल ऐसा लगता है तीसरे विश्व युद्ध का खतरा कुछ दिनों के लिए तो आगे खिसक गया है!(साभार)

मंगलवार, 24 जून 2025

चुनाव आयोग क्यों डर रहा…

चुनाव आयोग क्यों डर रहा…



जब से राहुल गांधी की लिखी चिट्ठी ने चुनावी प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाया है तब से चुनाव आयोग ही नहीं पूरा सिस्टम एक तनाव में नजर आ रहा है! 

आज चुनाव आयोग ने यह घोषणा की वीडियोग्राफी फोटोग्राफी और इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट के सारे डेटा सिर्फ 45 दिन तक सुरक्षित रखें जायेंगे!

उल्लेखनीय है कि पहले मतदान की प्रक्रिया जिसमे वोटर वोट डालता था 6 महीने से 1 साल तक सुरक्षित रखी जाती थी, इलेक्ट्रानिक मशीनों में 6 महीने से 1 साल तक डाटा सुरक्षित रखने की बात पहले चुनाव आयोग कहता था! 

चुनाव आयोग का तर्क है मतदाता की निजता और सोशल मीडिया के माध्यम से जो गलत खबरें चुनाव आयोग को लेकर फैलाई जाती है उसको रोकने के लिए ये कदम उठाए गए हैं! 

अगर 45 दिन तक सबूत के साथ चुनाव पर कोई याचिका दायर नहीं हुई तो यह डाटा डिलीट कर दिए जाएंगे! 

वीडियो फुटेज जो ऑन डिमांड दिए जाते थे वह भी ऑन जुडिशरी आर्डर दिए जाएंगे अगर 45 दिन में यह सब कुछ नहीं हुआ तो डाटा डिलीट कर दिया जाएगा! 

जिस देश मेंअदालत की इतनी पेंडेंसी हो और सामान्य न्याय के लिए भी वर्षों लग जाते हैं कैसे संभव होगा की 45 दिन में संबंधित न्यायालय शिकायतों पर विचार कर पाएगा! सूचना  के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाए साल साल भर तक सुनी नहीं जाती वहां पर 45 दिन का यह प्रावधान क्या पार दर्शित का गला घोंटने की कोशिश नहीं?

चुनाव आयोग के इन बदलावों पर सारे राजनीतिक दल हमलावर है और इसे पारदर्शिता के प्रति कुठाराघात मान रहे हैं!

जिस लोकतंत्र के लिए चुनाव हो रहे हैं उस लोकतंत्र में आपको सवाल पूछने की आजादी तो है पर जवाब दिया जाए जरूरी नहीं है !


दरअसल चुनाव भी अब तकनीक का खेल हो गया है और इसलिए प्रक्रिया सिस्टम कैसे हैक किया जाए उसे लेकर रोज नई-नई योजनाएं बनाई जाती है !


राहुल गांधी के आरोपो के बाद जो पुराना सिस्टम हैक करने का तरीका था उसकी परत खुल जाने की वजह से अब सत्ता को और सत्ता के गुलाम चुनाव आयोग को नई तकनीक का उपयोग करने पर मजबूर होना पड़ा है! 


यह विमर्श तो आम है की चुनाव आयोग पर भरोसा खत्म हो गया है और आज इस बात को फिर से बल मिला है! 

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लेकिन चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव के पहले भी 10 महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं! 


1_ ई वोटिंग की शुरुआत बिहार चुनाव में अब आप E वोटिंग कर सकते हैं घर बैठे लेकिन सवाल यह है कि जो लोग शहरों में रहते हैं जिनके पास स्मार्टफोन है वहीं इसका लाभ उठा पाएंगे ग्रामीण क्षेत्रों में यह कितना उपयोगी होगा यह विश्लेषण का विषय होगा! और ई वोटिंग में मतदाता को डराने धमकाने या मजबूर करने और उसकी निजता के उल्लंघन की पूरी पूरी संभावना रहेगी!


2_ बायोमेट्रिक सिस्टम से मतदाता पहचान जाएगा मतलब जब मतदाता मतदान करने  जाएगा तो आधार कार्ड पर जो उसका अंगूठा है वही अंगूठे का निशान बायोमेट्रिक सिस्टम से मैच किया जाएगा पर सवाल यह है कि जब एक ही अंगूठे वाले बहुत सारे जगह पर मतदाता का नाम होगा तो उसे बायोमेट्रिक सिस्टम से चुनाव आयोग कैसे पहचानेगा कि यह डुप्लीकेट वोटिंग हो रही है! 


 3_  बदलाव जो चुनाव आयोग ने किया है वह यह है किai आधारित चैट बॉक्स पर मतदान की सूचनाओं दी जाएगी यहां पर भी एक सवाल हैai जेनरेटेड चैट box क्या सिर्फ मतदान की जानकारी देगा या मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए या प्रचारित करने के   के लिए किसी सत्ता का सहयोग करेंगे!


4_ E पास इशू किए जाएंगे, वृद्ध दिव्यांग या बीमार लोगों के लिए यह सुविधा दी जाएगी! इस सुविधा के लिए ऑनलाइन आवेदन करना पड़ेगा सवाल यह है जो लोग ऑनलाइन आवेदन नहीं कर पाएंगे क्या वह सुविधा के अधिकारी नहीं होंगे! 


5_मतदान केंद्र की देखरेख के लिए ड्रोन सर्विलांस का उपयोग किया जाएगा मतलब आप आसमान से मतदान केदो पर नजर रखी जाएगी पर यदि कोई जमीन पर गड़बड़ हो रही है कमरे के अंदर तो बेचारा ड्रोन सर्विलांस क्या करेगा! 


6_ मतदान केदो में वृद्धि की जाएगी यह स्वागत योग्य बात है ताकि मतदान केंद्र पर किसी तरह की भीड़ नहीं हो लेकिन क्या यह भी तय किया जाएगा के मतदान केंद्र आसान पहुंच में हो सुलभ हो और बस्ती के पास हो!


7_मोबाइल ऐप से मतदान केदो की जानकारी दी जाएगी ताकि आप यह जान सके कि मतदान केंद्र पर कितनी भीड़ है और क्या आप समय पर वोट दे पाएंगे!


8_शिकायत निवारण में तेजी की जाएगी लेकिन चुनाव आयोग का जो वर्तमान का स्वरूप है उसमें बरसों बरस शिकायतें नहीं सुनी जाती क्या यह बदलाव सिर्फ कागजी रहेगा या व्यवहारिक रूप से परिवर्तित किया जाएगा? 


9_वृद्ध दिव्यांग या विशेष वर्गों के लिए रैंप बनाई जाएगी ताकि किसी तरह के असुविधा न हो यह स्वागत योग्य बात है! 


10_और अंतिम बदलाव यह है की सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया जाएगा और सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग होगी सवाल यह है की सोशल मीडिया को आप प्रतिबंधित करना चाहते हो पर टीवी मीडिया और प्रिंट मीडिया का लेकर कोई गार्ड लाइन नहीं है! (साभार)

सोमवार, 23 जून 2025

उपचुनाव-चार राज्य, आठ परिणाम…

 उपचुनाव- चार राज्य,आठ परिणाम…


चार राज्यों में हुए उपचुनाव के आज परिणाम जारी हुए, केरल, बंगाल, पंजाब और गुजरात के चुनाव परिणाम ने एक बार फिर बीजेपी की चूलें हिला दी.. तो दिल्ली हार चुकी आप पार्टी के लिए यह परिणाम ने उम्मीद की नई किरण को जन्म दिया है ऐसे में कांग्रेस के लिए यह परिणाम आत्म चिंतन का विषय भी है…

वैसे तो उपचुनाव के परिणाम का कोई ख़ास असर नहीं होता लेकिन एक संकेत तो उभरते ही है. । क्या है वह संकेत…

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के तमाम प्रयासों के बावजूद मजबूती के साथ खड़ी है और भारतीय जनता पार्टी कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं कर पाई है , सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशें के बावजूद तृणमूल कांग्रेस मजबूत है, और ममता बनर्जी की स्थिति आज के परिणाम को देखते हुए आने वाले विधानसभा के आम चुनाव में बहुत मजबूत नजर आती है!

ठीक इसी तरह कांग्रेस के तमाम दावों के बावजूद पंजाब  में  आप ने लुधियाना पश्चिम सीट जीतकर अपनी स्थिति को मजबूत किया है और कांग्रेस को आत्म चिंतन पर मजबूर यह सही है कांग्रेस का उम्मीदवार अच्छा चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस का जो जातिगत आधार रहता था उसे भाजपा के उम्मीदवार ने पूरी तरह डेंट किया है और ऐसे में कांग्रेस को वहां नए सिरे से अपने जातिगत समीकरण उलट पलट करने पड़ेंगे!

 दरअसल पंजाब में कांग्रेस के नेतृत्व को जनता  ने  विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं किया है !

इसलिए सत्ता विरोधी माहौल होने के बावजूद भी आप परिणाम देने में सक्षम रही है! 

केरल ऐसा उदाहरण है जहां कांग्रेस ने एलडीएफ की सत्ता के बावजूद अपना उम्मीदवार को जीता लाने में कामयाबी हासिल की है!

 लेकिन चुकि ये विधानसभा प्रियंका गांधी की लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थी इसलिए यह कांग्रेस के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती थी ! लेकिन फिर भी केरल के विधानसभा चुनाव भी आने वाले हैं और कांग्रेस इस एक राज्य में और उम्मीद कर सकती है!

भाजपा यहां अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं कर पाई है और यह उसके लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि दक्षिण में अभी भी उसकी स्वीकार्यता नजर नहीं आ रही है!

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण राज्य गुजरात था जहां राहुल गांधी ने काफी परिश्रम किया था और उम्मीद थी कांग्रेस कुछ बेहतर करेगी लेकिन राहुल गांधी का जो कार्यक्रम था या कोशिश थी वह जनता के बीच नहीं पहुंच पाई है, और सत्ता विरोधी माहौल होने के बावजूद कांग्रेस  अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं कर पाई,

गुजरात को लेकर कांग्रेस को आत्म चिंतन करना पड़ेगा!

लेकिन इसके विपरीत गुजरात की विसवादर सीट पर आप पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और उपचुनाव के उम्मीदवार गोपाल इटालिया ने शानदार जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी को मोचक्का कर दिया है! 

सत्ता विरोधी माहौल जो कांग्रेस ने तैयार किया था इसका लाभ गोपाल इटालिया को मिला है लेकिन कांग्रेस जमीन पर उस माहौल का लाभ नहीं ले पाई यह कांग्रेस के लिए आत्म चिंतन का विषय है!

कड़ी में भारतीय जनता पार्टी ने कंफर्टेबल जीत हासिल की लेकिन जिस तरह गुजरात के परिणाम आए हैं भाजपा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि कहीं ना कहीं परिणाम सत्ता विरोधी माहौल को इंगित कर रहा है! 

आप के लिए दिल्ली के बाद उपचुनाव के परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले हैं और राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर से केजरीवाल भी मुख्य भूमिका में अपने शिरकत निभाते नजर आ सकते हैं!

रविवार, 22 जून 2025

ईरान का डर, ज़िद और गर्व…

ईरान का डर, ज़िद और गर्व…


इज़राइल और अमेरिका के हमले के बाद ईरान ने दोगुनी ताक़त से इज़राइल पर हमला किया, क्या अमेरिका के युद्ध में कूदने से तीसरे विश्व युद्ध की घंटी बज़ गई है , क्या है ईरान का परमाणु ठिकाना…


ईरान के क़ुम शहर के करीब, एक ऐसा किला सांस ले रहा है जो दुनिया की नींद उड़ाए हुए है — इसका नाम है Fordow Fuel Enrichment Plant। यह कोई आम परमाणु ठिकाना नहीं, बल्कि ईरानी सत्ता का गर्व, डर और जिद तीनों है। सतह से करीब 300 फीट नीचे, सख़्त चट्टानों में सुरंगों के भीतर इस किले को इस तरह बनाया गया है कि कोई बम इसे छू भी न सके। पर जो चीज़ इसे अजेय नहीं बनाती, वो है इज़राइल और अमेरिका का बारीक इंटेलिजेंस जाल — जो Fordow के बाहर नहीं, इसके अंदर तक हर आवाज़ सुनता है

 पत्थर की दीवारें, धातु के रोटर और अंदरूनी डर

Fordow में ईरान वो काम करता है जिससे पश्चिमी दुनिया को सबसे बड़ा खतरा लगता है — high-grade यूरेनियम enrichment। इसका मतलब होता है कि परमाणु बम बनाने की बुनियाद यहीं से तैयार होती है। Iran ने Saddam और Gaddafi से सबक लिया — ओपन field में enrichment रखोगे तो अमेरिका बम गिरा देगा। इसलिए Fordow को पहाड़ के नीचे छिपा दिया गया।

लेकिन दुनिया के सबसे बेहतरीन जासूसों ने ये भी सबक सीख रखा था कि चट्टान से नहीं, इंसान से इन्फॉर्मेशन निकाली जाती है। और वहीं से शुरू होता है Mossad और CIA का अदृश्य खेल।

Mossad की इंसानी जंजीर

इज़राइल की सबसे घातक एजेंसी Mossad ने Fordow के चारों ओर एक ऐसा इंसानी घेरा बनाया है जिसमें कोई scientist, कोई engineer, कोई driver या कोई सुरक्षा गार्ड भी शामिल हो सकता है।

कई बार पैसों से, कई बार ब्लैकमेल से, और कई बार परिवार की सुरक्षा के नाम पर ये लोग अपने ही प्लांट की खबर बाहर भेजते हैं — कब कौन सा rotor बदलना है, कौन सी सुरंग में नया ventilation shaft खोदा जा रहा है।

इसी नेटवर्क ने Fordow के जैसे ही Natanz enrichment plant में centrifuge sabotage कराया था — कभी magnetic bomb से scientist उड़े, कभी remote sniper ने कार रोक कर गोली चलाई।

Unit 8200 और NSA की आंखें

इज़राइल की Unit 8200 और अमेरिका की NSA — ये दोनों agencies Fordow के बाहर की हर communication line, radio chatter, और tunnel sensor को real time में पढ़ती हैं।

Fordow से Tehran तक रोज़ाना जो encrypted report जाती है, वो cipher टूटते ही Tel Aviv और Langley की टेबल पर आ जाती है।

अमेरिकी KH-11 और KH-12 satellite Fordow की छत पर रखे ट्रकों की गिनती भी बदलते देख लेते हैं।

आजकल hyperspectral और AI-based imagery से thermal anomaly से पता चलता है कि पत्थर के नीचे कौन सी सुरंग active है और कौन सी dummy।

Cyber के कीड़े : Stuxnet और उसके वारिस

एक बार Mossad और NSA ने मिलकर दुनिया का सबसे चालाक cyber worm बनाया था — Stuxnet।

इसने Fordow की बहन site Natanz में centrifuge के rotors को खुद-ब-खुद overspeed करवा कर फाड़ दिया था।

आज के दौर में ईरान ने air-gapped systems बनाकर direct hacking रोक दी है, लेकिन phishing emails, fake research links और USB traps से इज़राइल-अमेरिका अब भी firmware poisoning करते हैं।

Smart Dust और Mini Drones : हवा में घुले जासूस

नए दौर में जासूसी सिर्फ उपग्रह या कंप्यूटर तक नहीं है। Mossad छोटे छोटे drones, और smart dust sensors Fordow के ventilation shaft में छोड़ सकता है। ये sensors vibration, gas leaks, और unusual heat record कर AI dashboard पर भेजते रहते हैं।

जैसे ही कोई suspicious drill या centrifuge overspin होता है — Israel Defense Forces या US Fifth Fleet को alert जाता है।

Azerbaijan से लेकर Gulf तक : चारों तरफ जाल

Fordow को घेरने के लिए जमीनी logistics भी active हैं। इज़राइल ने Azerbaijan border पर discrete drone hub बना रखा है।

अमेरिका के पास Iraq, Bahrain और UAE में forward bases हैं — जहां से rapid strike या sabotage squad कुछ ही घंटे में Fordow की logistic lifeline को cut कर सकते हैं।

मतलब साफ है

Fordow की concrete shell उसे बम से तो बचा सकती है, लेकिन जासूसों से नहीं।

उसकी गहराई अमेरिकी Massive Ordnance Penetrator को delay कर सकती है, रोक नहीं सकती।

और Mossad का आदमी अंदर centrifuge poison करने में कितना वक्त लगाएगा — Tehran को खुद नहीं पता।

Fordow का सच : पाताल के भीतर भी डर

Fordow ईरान का गर्व है, लेकिन Tehran के लिए एक perpetual anxiety भी है।

एक तरफ अमेरिका-इज़राइल ने आज तक इसे फुल-scale bombing से बचा रखा, क्योंकि इसका political cost Strait of Hormuz बंद कर सकता है।

दूसरी तरफ, Fordow के दरवाज़े पर Mossad का जासूसी रडार हमेशा ON है — पहाड़ के बाहर भी और अंदर भी।

Fordow बंकर बम से ज्यादा Mossad के आदमी और AI की आंखों से डरता है — और यही इस पाताल का सच है।(साभार)

शनिवार, 21 जून 2025

राहुल का ऐसा जन्मदिन…

 राहुल का ऐसा जन्मदिन… 


राहुल गांधी को लेकर बीजेपी और संघ ने जो निरेटिव बनाया था वह तो कब का धुँआ धुँआ हो चुका है, ऐसे में राहुल को लेकर न केवल कांग्रेस में बल्कि आम लोगों में भी एक नई उम्मीद जगी है, तब भला काफ़ी हाउस में उनके जन्मदिन पर क्या हुआ, यह भी जानना ज़रूरी है… यह सब बताये उससे पहले राहुल का वह जवाब भी जान ले जब उन्हें ईडी दफ़्तर जाना पड़ा…

ईडी ऑफिसर्स ने पूछा कि हम इतने समय से आप से पूछताछ कर रहे हैं आप थकते नहीं हैं क्या ?

राहुल गांधी जी ने बताया उन्होंने ईडी ऑफिसर्स से कहा कि वे विपश्यना करते हैं।उसमें बैठना पड़ता है, तो आदत लग गई है।उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं है। 6-7-8 या 10 घंटे बैठने पर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।



एक आदमी को तो थकाया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के हर नेता हर कार्यकर्ता को थकाना संभव नहीं, सिर्फ कांग्रेस पार्टी के नेता-कार्यकर्ता उस कमरे में नहीं थे। उस कमरे में हर वह शख्स मौजूद था, जो सरकार से बिना डरे लड़ता है। हिंदुस्तान के लोकतंत्र के लिए लड़ने वाले सब लोग मेरे साथ उस कमरे में बैठे हुए थे तो मैं थकूंगा कैसे?

#National Herald वो अख़बार था कि जिसने अंग्रेज़ी हुक्मरानों के नींद उड़ा दी थी,,, आजादी के दीवानों की पहचान थी National Herald,, जिसने दुनियां भर को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से रूबरू कराया,,,,,,,आज जिसको लेकर तुम  ED,के दम पर ,  उसकी बदनामी की कहानियां गढ़ रहे हो!! वो दरअसल तुम्हारी नाकाम साजिशों के कुंठित मानसिकता है,, 

वो E D,, डराते हैं,,, मै तो कहता हूं ABCD,से , पूरी Z तक का पूरा जोर लगा दो,,,,, ये आंधियों में चिराग जलाने वाले शूरवीरों का वंशज है,,,,जिसके पुरखे अंग्रेजी हुक्मरानों की जेलों में भारतीय सभ्यताओं का इतिहास लिखा करते थे,,,,जिसने अपने पुरखों  को बमों और गोलियों की बौछारें से छलनी लाशों को देखा हो,,,,वो पुरखे जिन्होंने भारत को बैलगाड़ी से अंतरिक्ष तक ऊँचाइयाँ दीं,,,,, आज वहीं भारत नफ़रतों के दौर से गुजर रहा है,,,, लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं हैं,,,,आज भी ऐसी ताक़तों के खिलाफ़ बेखौफ लड़ने दंभ रखने का जुनून ही राहुल को लोकप्रियता की शिखर पर ले जा रहा है।

राहुल गांधी का जन्मदिन जगह जगह अपने ढंग से लोगो ने मनाया लेकिन कॉफ़ी हाउस में उनका जन्मदिन कुछ इस तरह से मनाया गया कि लोग याद रखेंगे…

सुबह से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व आयोजन कर्ता बिरेश शुक्ला ने सभी वरिष्ठ जनों और पत्रकारों को सूचित किया था कि आज शाम 7 बजे राहुल गांधी जी का जन्मदिन मनाया जाएगा।

इंडियन काफी हाउस में यह पहली बार हुआ कि राहुल गांधी का बैनर पोस्टर लगाकर केक काटकर सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में यह कार्यक्रम का आयोजन किया गया बाद में स्वल्पाहार का भी आयोजन किया गया।




इस कार्यक्रम में प्रमुख
रूप से कार्यक्रम के आयोजक बिरेश शुक्ला, तिलक देवांगन, चंद्रदेव राय , नरेंद्र ठाकुर, पप्पू बंजारे , दिलीप चौहान , अवस्थी जी, नितिन ठाकुर , अनिल यादव , सुहैल खान ,रेहान खान , सद्दाम सोलंकी , संजय सोलंकी , वरिष्ठ पत्रकार कौशल शर्मा जी, खालसा समिति के जसवंत ग्रेवाल जी , अशोक तोमर (टाटा रिटायर्ड ) राकेश चौबे आरटीआई एक्टिविस्ट, वासु चटर्जी , विजय भट्टाचार्य , ललित सोनी, सजी वर्गीश, पत्रकार शिवशंकर सोनपिपरे , पत्रकार कौशल तिवारी, पत्रकार मोहन तिवारी , पत्रकार विप्लव दत्ता, पत्रकार रजनीश दिवान व अन्य सैकड़ों की संख्या में मौजूद रहे।

शुक्रवार, 20 जून 2025

सुनो…! ऑपरेशन सिंदूर जारी है…

सुनो…! ऑपरेशन सिंदूर जारी है…


 आपरेशन सिंदुर चल रहा हैं इसके समाप्त होने की  कोई अधिकृत घोषणा नहीं हुई मतलब आपरेशन सिंदुर के चलते तीन देशों की यात्रा भी हो गई और  ट्रंप से 
35 मिनिट की बातचीत भी हो गई। और ईधर आपरेशन सिंदुर चल रहा है और ऊधर असीम मुनीर का मजे में अमेरिका दौरा भी चल रहा हैं, लंच भी हो ही गया। कितना गंभीर आपरेशन हैं ये पाकिस्तान को कोई परेशानी नहीं फिर भी चल रहा है और तो और ऐसा भी चल रहा हैं कि मानो कोई बाई पास सर्जरी चल रही हो एकदम खामोशी से…

हैरानी हुई कि आख़िर ऑपरेशन सिंदूर के बीच ये सब हो क्या रहा है,इमेज तो सीज फ़ायर से ख़राब हुई ही है और अब जैसे ही मीडिया में खबर चली के पाकिस्तानी सेनापति मुनरो को ट्रंप ने लंच पर आमंत्रित किया है वैसे ही अमेरिका की पाकिस्तान को एक तरफा झुकाव वाली बात को गलत साबित करने के लिए और मोदी जी के विश्व गुरु चरित्र की रक्षा के लिए फोन कॉल का नॉरेटिव गढ़ा गया!

दरअसल् यह अर्ध सत्य रहा होगा !प्रधानमंत्री के फोन कॉल पर कभी विदेश मंत्रालय को ब्रीफिंग करते हुए नहीं देखा गया है !जब स्वयं प्रधानमंत्री छोटी-छोटी सी बातों के लिए ट्वीट करते है ,,मन की बात करते हैं , फिर इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर उनके व्यक्तिगत वार्तालाप पर विदेश सचिव कोई वक्तव्य दे यह बात हजम नहीं होती!

तीसरी बात यह है यह सामान्य शिष्टाचार के खिलाफ है क्योंकि प्रधानमंत्री की किसी नेता के साथ हुई व्यक्तिगत बातचीत को विदेश मंत्रालय के रिकॉर्ड पर रखा जाए! विदेश सचिव सरकारके एक विभाग  अधिकारी  मात्र है प्रधानमंत्री की बात यदि विदेश मंत्री कहते केंद्रीय मंत्री परिषद की तरफ से कही जाती तो वह सरकार की बात होती तो ज्यादा असर कारक होती!

 अमेरिका में सिर्फ पाकिस्तान  के सेनापति को जिस तरह ग्लोरिफाई किया गया था लंच की डिप्लोमेसी से उसको न्यूट्रल करने के लिए यह नॉरेटिव घड़ा गया!

दरअसल श्रीमान ट्रंप ने फोन तो किया होगा लेकिन माय डियर फ्रेंड को फोन में उन्होने स्पष्ट रूप से अमेरिका आमंत्रित किया  था कि वह g7 समिट के बाद अमेरिका होते हुए भारत आए और जो  पाक सेनापति के साथ लंच था वह भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तान के सेनापति और अमेरिका के राष्ट्रपति एक साथ करें! 

इस डिप्लोमेसी की वजह थी एक तो ट्रंप यह स्थापित करना चाहते थे की मध्यस्थता उनकी वजह से हुई हुई है दूसरी पाकिस्तान के सेनापति ने उन्हें नोबेल पीस प्राइज के लिए नामांकित किया है अगर भारत के प्रधानमंत्री भी  वहां उपस्थित होते हैं तो शायद इस पीस प्राइज के लिए उनके प्रतिनिधित्व को ज्यादा मान्यता   मिलने के अवसर थे !

बीजेपी की आईटी सेल लगातार एक नॉरेटिव स्थापित करने की कोशिश कर रही है कि ईरान पर पाकिस्तान आक्रमण करें या ईरान पर अमेरिका जो आक्रमण करेगा उसमें पाकिस्तान के हवाई अड्डा का इस्तेमाल किया जा सके इसके लिए पाकिस्तान के सेनापति को बुलाया गया था! 

पाकिस्तान खुलकर ईरान के साथ है वह उसकी मजबूरी भी है क्योंकि उसे अरब देशों का साथ चाहिए और मुस्लिम कंट्री का भी! ईरान उसका स्वाभाविक दोस्त है और हर बार ईरान पाकिस्तान के साथ रहा है! 

जिओ पॉलिटिक्स की भी बात करें, तो चीन तुर्की जैसे देश जो खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े थे वह ईरान के समर्थन में है ऐसे में पाकिस्तान अमेरिका के दबाव में ईरान पर हमले की इजाजत दे दे इस नरेटीव में दम नहीं लगता!

दूसरा बीजेपी के दावों की पोल अमेरिका ने फिर खोल दी , जब विदेश सचिव के वक्तव्य के 24 घंटे के पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने फिर एक बार बयान दिया कि भारत पाक युद्ध को न्यूक्लियर व्यवहार से बचने के लिए उनकी मध्यस्थ की बहुत बड़ी भूमिका थी!

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है जिस फोन की बात की गई है , उसके संदर्भ में अमेरिका से किसी प्रकार की पुष्टि नहीं की गई है !

जब साहेब 35 मिनट तक लालआंख कर कर ट्रंप को धमका सकते हैं, तो क्या कारण है ट्रंप के एक बार फिर बयान देने के बाद प्रधानमंत्री भी खामोश है विदेश मंत्री भी और तथाकथित विशेषज्ञों के अनुसार भारत का सफलतम विदेश मंत्रालय भी!

अमेरिका की स्पष्ट डिप्लोमेसी है उसे साउथ एशिया में अपना अड्डों के लिए पाकिस्तान चाहिए और रूस की नाक में नकल डालने के लिए अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए बलूचिस्तान में अपनी मनमानी चाहिए! पाक अमेरिका को क्यों प्रिय है , क्योंकि वह अमेरिका के बि हाफ पर ही आतंकवादी गतिविधियों को मॉनिटर करता है! 

चीन के लिए पाकिस्तान व्यापारिक मजबूरी है क्योंकि पाकिस्तान से होकर उसके ट्रेड का एक बहुत बड़ा रास्ता गुजरता है और पाकिस्तान में लगभग सरेंडर की मुद्रा में उसे चीन को सौंप रखा है!

अमेरिका जानता है भारत और चीन के बीच में बहुत सारे विवाद है इसलिए हथियारों की होड़ में चीन भारत को मदद नहीं करेगा और रूस यूक्रेन युद्ध में उलझा  होने के कारण वैसे ही निर्माण क्षमता में बहुत पीछे हो गया है ऐसे में अमेरिका ही एकमात्र ऐसा प्रतिद्वंदी है जिसे भारत में बाजार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और हथियारों के बाजार के लिए एक उपयुक्त ग्राहक! इसलिए अमेरिका की नीति भारत को बैलेंस करने की भी है!

भाजपा का थिंक टैंक इस वक्त घबराया हुआ है, क्योंकि जिस तरह इन दिनों मोदी जी की वैश्विक छवि को डेंट लगा है विश्व गुरु की छवि आहत हुई है और सीज फायर करने के बाद , फिर ट्रंप के आगे घुटने देखने के बाद और सबसे बड़ी बात तो यह है पहलगाम और पुलवामा का आतंकवादियों पर साहेब के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकलता! इन सब बातों ने उनके परसेप्शन की हवा निकाल दी है और बुरी तरह बेचैनी महसूस करती हुई उनके आई टी सेल इस तरह रोज नए-नए झूठ नरेटिव गढ़कर सोशल मीडिया और गोदी मीडिया के माध्यम से उस आभामंडल को बचाए रखने की कोशिश कर रही है!(साभार)

रविवार, 15 जून 2025

नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक

 नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक



कुछ महीने पहले की बात है — दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में गिना जाने वाला फिनलैंड अचानक एक अजीब से विवाद में फंस गया। विवाद था — नाश्ते का! जी हां, महज़ एक प्रधानमंत्री के नाश्ते का खर्च। फिनलैंड की पैंतीस वर्षीय प्रधानमंत्री सना मारीन ने अपने सरकारी आवास में रहते हुए अपने परिवार के नाश्ते का बिल सरकारी खजाने से चुकाया। महीने का खर्च था — तीन सौ यूरो। न कोई बड़ी रकम, न कोई रहस्यमय घोटाला। फिर भी वहां की जनता ने बवाल मचा दिया — “हमारे टैक्स का पैसा क्यों?”

मीडिया ने सवाल उठाया। पुलिस ने सरकारी खर्च की वैधता की जांच शुरू की। जनता ने सड़क से सोशल मीडिया तक आवाज उठाई — “पैसे वापस करो, इस्तीफा दो, और घर जाओ!” और यही हुआ। जनता ने कड़ी नजर रखी और आखिरकार चुनाव में प्रधानमंत्री को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अब सोचिए — यही दृश्य भारत में होता तो?

तीन सौ यूरो तो क्या, यहाँ तो लाखों-करोड़ों का नाश्ता, लंच और डिनर सरकारी खजाने से चलता है। वीवीआईपी बंगले, आलीशान गाड़ियाँ, काफिले, निजी समारोह — सब जनता की जेब से। कोई पुलिस अफसर ऐसी जांच की हिम्मत कर सकता है? कोई मीडिया घराना बिना पक्षपात ऐसी रिपोर्टिंग कर सकता है? और सबसे बड़ी बात — क्या जनता सवाल पूछती है?

भारत में तो नेताओं के लिए ये सब ‘विशेषाधिकार’ माने जाते हैं। जिन्हें रोका-टोका नहीं जाता, बल्कि जाति-धर्म-समाज की दीवारों के पीछे छुपा दिया जाता है। अगर कोई सवाल उठाता है तो भीड़ कहती है — “तुम्हें देशद्रोही कौन बना रहा है?”

तो फर्क कहाँ है?

फर्क नाश्ते की प्लेट में नहीं है। फर्क है नागरिक चेतना में। फिनलैंड में टैक्स का एक-एक यूरो पवित्र है। वहाँ लोग मानते हैं — नेता जनता का सेवक है, मालिक नहीं। अगर वह गलत करता है तो उसे कुर्सी छोड़नी ही होगी। पुलिस और अदालतें सत्ता के डर से नहीं, कानून के बल पर चलती हैं। मीडिया बिकता नहीं, सवाल करता है।

भारत में भी यह संभव है। बस शर्त है — जनता को मालिक बनना होगा।

नेताओं की जाति, धर्म या पार्टी से ऊपर उठकर नागरिक को सिर्फ अपनी मेहनत की कमाई की कीमत समझनी होगी। सरकारी खजाना कोई राजा की जागीर नहीं है। यह खेत में पसीना बहाने वाले किसान, कारखाने में काम करने वाले मजदूर और नौकरीपेशा टैक्स देने वालों का खून-पसीना है।

जब तक हम यह नहीं समझेंगे, कोई सना मारीन नहीं, कोई नाश्ता बिल नहीं — घोटाले, वादे और जुमले ही हमारी किस्मत लिखते रहेंगे।

फिनलैंड खुशहाल है क्योंकि वहाँ सवाल पूछना जुर्म नहीं, अधिकार है। भारत खुशहाल तब होगा जब हर नागरिक सवाल पूछेगा, जवाब मांगेगा और जवाब न मिलने पर नेता को बदल देगा।

नाश्ते से लेकर नीति तक — यही लोकतंत्र की असली परीक्षा है।(साभार)

शनिवार, 14 जून 2025

इजराइल ने ईरान को गाजा समझ लिया था !

 इजराइल ने ईरान को गाजा समझ लिया था ! 



इजरायल के अटैक के बाद ईरान की ओर से जवाबी हमला किया जा रहा है। ईरान ने शनिवार तड़के फिर से इजरायल पर मिसाइलों की बारिश की है। इससे कुछ घंटे पहले शुक्रवार शाम को भी ईरान ने इजरायल पर मिसाइलों की बौछार की थी।

 शुक्रवार रात से इजरायल पर हमले शुरू किए हैं। ईरानी मिसाइल हमले में इजरायल के कई शहरों को निशाना बनाया गया, जिससे इमारतों को नुकसान हुआ और दर्जनों लोग घायल हुए। ईरान ने किर्यात कंपाउंड पर भी हमला किया है, इसे इजरायल का पेंटागन कहा जाता है। फॉक्स न्यूज के ट्रे यिंगस्ट ने इजरायल के सैन्य मुख्यालय किर्यात के नजदीक नुकसान की बात कही है। उन्होंने कहा कि आपातकालीन दल इमारतों में जाकर उन लोगों की तलाश कर रहे हैं, जो फंसे हुए हो सकते हैं। 

एक ही रात में ग़लतफ़हमी दूर हो गई। इजराइल की 300 मिसाइल के जवाब में ईरान ने 1500 मिसाइलों का जखीरा तेल अवीब में बिखेर दिया है। कल तक ईरान  को हद में रहने की समझाइश दे रहे ट्रम्प सऊदी अरब से वॉर रुकवाने की गुहार लगा रहे है। अपने महामानव को डपटकर ' सीज़फायर ' कराना आसान था क्योंकि अडानी नाम की नस दबी हुई थी। लेकिन ईरान की बात अलग है। तीन दशक से ज्यादा अमेरिका के सामने खड़ा होकर उसने अपनी रीढ़ की मजबूती  दिखा दी है। 


नुक्सान दोनों तरफ जबरा हो रहा है। तेल अवीब की गगन चुंबी इमारते गाजा के विध्वंस की याद दिला रही है। क्रूड की कीमतों में आग लगना शुरू होने ही वाली है। अल सुबह यह भी स्पस्ट हो गया कि पाकिस्तान , रूस , चाइना और सऊदी ने ईरान के साथ खड़े होने के संकेत दे दिए है भारत क्या कदम उठाएगा , किस तरफ मुंह करेगा आज सुबह तक स्पस्ट नहीं है। 

रफाल की फैल्योर के बाद 3 अमेरिकी एफ 35 के कबाड़ा होने की बात सामने आई है। इन्हे ईरान ने मार गिराया है , एक इसरायली महिला पायलट को बंदी भी बनाया है। संभव हो तो बीबीसी या सीएनएन देखे। बगैर गला फाड़े , बगैर ग्राफ़िक्स के कैसे रिपोर्टिंग होती है , हमारे घटिया मीडिया की ओकात समझ आएगी।

सोनम का भाई गोविंद सचमुच "गोविंद"है

 सोनम का भाई गोविंद सचमुच "गोविंद"है


 इंदौर के रघुवंशी परिवार के यहां एक घटना हुई । जो घटनाक्रम सामने आए वो किसी सस्पेंस थ्रीलर फिल्म  से कम नहीं थी। शुरुआत से लेकर अंत तक बहुत ही ज्यादा रोमांचक । अंत आश्चर्य जनक इससे ज्यादा दुखद।  शुरुआत हुई तो राजा की हत्या हुई । सोनम का लापता हो गई। ऐसा होता है कि आपराधिक प्रवृति के लोग अवसरवादी होते है । एक लड़का लड़की के अकेले होने का अवसर का फायदा  स्थानीय लोग अपनी जगह के पहचान की और दूसरों के अनजान होने की वजह से उठा लेना सामान्य सी बात है । राजा की हत्या और सोनम के लापता होने पर अनेक किस्से कहानी सुने गए। मेघालय सरकार, पुलिस पर उंगली उठी और  रियल लाइफ की फिल्म का क्लाइमेक्स सामने आया तो लोगों का सिर चकरा गया।एक के बाद एक आरोपी पकड़ाते गए और अंत में सूत्राधार सोनम भी अपने अगवा होने के तमाशे को नहीं दिखा सकी। अब सब कुछ सच सामने है। अक्सर हत्या करने वाले ऐसी जगह और परिस्थिति को योजना में रखते है जहां कोई देखने वाला न हो । राजा की हत्या के लिए ऐसी जगह खोजी गई और योजना को अंजाम दे दिया गया। योजना का दूसरा सूत्राधार इंदौर से ही हत्या को अंजाम देने  के बाद सोनम के परिवार को राजा के अंतिम संस्कार में मददगार बनने का स्वांग रचता गया।

इस फिल्म का अंत का सच बहुत ही दर्दनाक और वीभत्स रहा। सारी मर्यादा लांक्षित हो गई।दो परिवार सहित हर किसी को विवाह के रीति रिवाज,पति पत्नी के संबंध सहित मालिक का नौकर के प्रति विश्वास लड़खड़ा गया। सोनम का  राज के प्रति पनपा प्रेम पावन संबंध से ज्यादा किसी और प्रकार के सीधे शब्दों में कहे तो दैहिक आकर्षण ज्यादा था।अन्यथा बहन जैसे रिश्ते(भले दिखावे के लिए हो)को दोनों लांक्षित नहीं करते। सोनम के परिवार के अलावा आरोपी राज की मां भी विश्वास नहीं कर पाई कि एक पवित्र रिश्ते की आड में  अवैध संबंध पनप  रहा है।इसी "दीदी" उद्बोधन के चलते बेफिक्र परिवार ने सोनम का रिश्ता भी तय कर दिया।  पारिवारिक,सामाजिक, आर्थिक और जितने भी वजह हो सकते थे उनमें राज केवल एक अदना सा व्यक्ति ही था जिसकी कोई हैसियत नहीं थी। प्यार, अंधा होता है ये माना जाता है।इस प्रेम कहानी में सोनम और राज भी दोनों आंख से अंधे साबित हुए। साथ जीने की कसमें खाने वाले इन दोनो ने राजा को मारने की कसम खा ली। सोनम और राज की अवैध प्रेम ने एक निर्दोष व्यक्ति की जान ले ली। सभी आरोपी इंदौर से  2183किलोमीटर दूर शिलांग में पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए रिमांड पर है। सभी ने स्वीकार भी कर लिया है कि वे राजा रघुवंशी की हत्या में शामिल थे। मेघालय और इंदौर की पुलिस ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य इकट्ठे कर लिए है जो  राजा की हत्या के सबूत के रूप में न्यायालय के सामने रखे जाएंगे। पाठकों को ये जानकारी होनी चाहिए कि पुलिस के समक्ष किए गए कबूलनामें की न्यायालय में कोई मान्यता नहीं रहती है।अधिकांश आरोपियों को उनके वकील समझा चुके रहते है कि गुनाह कबूल कर लेना अन्यथा पुलिस की सख्ती के चलते आगे बचना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी हत्यारे , आकस्मिक आक्रोश के चलते कम सुनियोजित ढंग से हत्या की योजना बनाते है,ये बात अलग है आज तक बहुत कम हत्या के आरोपी पकड़ाने के बाद साधारण रूप से चार पांच साल तक तो जमानत ही नहीं पाते है। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और सीसीटीवी के दायरे में आए साक्ष्य परिस्थितियां स्वय बोलती है(res ipsa loquitur) के आधार पर ही अंतिम निर्णय होगा।

 ये तो ऑपरेशन हनीमून का मध्यांतर है।

मध्यांतर के बाद सस्पेंस थ्रीलर फिल्म का  सामाजिक पक्ष सामने आता है। राजा रघुवंशी  का परिवार आक्रोशित होकर सोनम की तस्वीरों का दहन करती है। समाज सोनम के परिवार को जात बाहर करने के लिए उद्वेलित होता है।आरोपी राज की गरीब मां अबतक ये नहीं मान पा रही है कि  कभी दिन में कपड़ा दुकान में सेल्समैन  और सुबह पेपर बांटने के बाद सोनम के परिवार में अदनी सी नौकरी कर  बिना पिता के परिवार का पालन पोषण करने वाला राज एक निरीह राजा की हत्या में साझेदार है।

 महाभारत के प्रसंग में द्रौपदी  कृष्ण को गोविंद कहती थी।द्रौपदी के हर मुश्किल में गोविंद खड़े रहते थे।गोविंद ने द्रौपदी को ये भी समझाया था कि अपनी महत्वाकांक्षा  के चलते तुम्हे नुकसान होगा तब मैं तटस्थ रहूंगा।

 ऐसी ही परिस्थितियों में एक शख्सियत उभरता है वह है सोनम का भाई, गोविंद जिसे जब तक सच का पता नहीं था तब तक भाई होने का धर्म निभाया।बरसते पानी में बहन को खोजा, न जाने कहां कहां दौड़ा। गाजीपुर से सोनम के फोन करने पर पुलिस को सूचना देने की नसीहत इसी भाई की ही थी। सोनम के राजा के हत्या में सूत्राधार होने का सच सामने आने पर  मृत राजा रघुवंशी के घर जाकर  राजा की मां से मिलना,  बहुत ही बड़े संवेदना का उदाहरण है।जरा सी बात पर संबंधों में कड़वाहट लाना, बोलचाल बंद कर देना,रिश्ता तोड़ देना सामान्य बात हो चली है ऐसे में अपनी ही बहन के द्वारा  हत्या कर देने के बाद पीड़ित परिवार के घर जाना अदम्य साहस ही है। अपने बेटे, भाई  और रिश्तेदार के हत्या के चलते एक परिवार का हत्या करने वाली लड़की के परिवार के प्रति आक्रोश, नफरत होता ही है।इनकी परवाह किए बगैर आरोपी सोनम के भाई  गोविंद का राजा के घर जाना, दुख को आत्मसात करना और अपनी बहन से रिश्ते खत्म करने की बात के अलावा मृत  राजा को न्याय दिलाने के लिए खुद को समर्पित करना निश्चित रूप से सोनम के भाई को बहुत ही बड़ा बना दिया है।

आप सोचिए कि कितनी विपरीत परिस्थिति में सोनम के भाई ने निर्णय लिया होगा।ये जानते हुए कि जिस प्रकार दुर्योधन के मारे जाने पर धृतराष्ट्र भीम को गले लगाकर मार देना चाहते थे वैसी ही परिस्थिति सोनम के भाई के लिए भी थी। निर्विकार भाव से किया गया साहस नफरत के जंगल में अपनत्व का एक बीज प्रस्फुटित करता तो है। सचमुच, गोविंद ने अपने नाम को सार्थक कर दिया। एक बहन, जो जब तक जानकारी में अगवा थी, भाई  ने उसके जिंदा होने या मरने की सत्य में लाश को पाने के लिए जी जान लगा दिया। इसी बहन के राजा की हत्या  में शामिल होने का सच जानकर कितने कड़े मन  से सालों राखी बांधने वाली बहन से रिश्ते खत्म करने की बात कहने वाला "गोविंद" ही हो सकता है। मै बड़े आदर,सम्मान,और श्रद्धा से इस आधुनिक गोविंद के सामने नत  मस्तक हूं

संजय दुबे 

7415553274

शुक्रवार, 13 जून 2025

आख़िर एलपी पटेल का हो गया निलंबन…

 आख़िर एलपी पटेल का हो गया निलंबन… 


प्रभारी डीईओ एल पी पटेल को अनुशासन हीनता के आरोप में निलंबित कर दिया गया लेकिन निलंबन क्यों देर से हुआ यह सवाल अब भी बना हुआ है, उन पर अपनी पत्नी सुषमा पटेल की आत्मानंद स्कूल में नियुक्ति से लेकर चारित्रिक आरोप के अलावा युक्तियुक्तकरण में भी गड़बड़ी का आरोप है। यही नहीं वे इससे पहले भी कई बार निलंबित हो चुके हैं तो पत्नी सुषमा पटेल भी कार्य में लापरवाही के आरोप में निलंबित हो चुकी है। क्या है पूरा मामला…


ताज़ा मामला छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल परीक्षा के दौरान जिले में परीक्षा केंद्रों की निगरानी और अनुचित साधनों की रोकथाम के लिए एक जिला स्तरीय उड़नदस्ता दल का गठन का है । 

इस दल का मुख्य उद्देश्य परीक्षा की निष्पक्षता बनाए रखना और आवश्यक व्यवस्थाओं की निगरानी करना था। लेकिन इस दौरान प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी एल.पी. पटेल ने बिना कलेक्टर की पूर्वानुमति और निर्देश के उड़नदस्ता दल में मनमाने तरीके से परिवर्तन और संशोधन किया। इतना ही नहीं, उन्होंने तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी को कथित रूप से धमकी देने, दुर्व्यवहार करने और वेतन रोकने जैसे गंभीर आरोपों से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।

अनुशासनहीनता के लिए प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी निलंबितइन सभी मामलों पर पटेल को कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया, जिसका जवाब उन्होंने निर्धारित समयावधि में प्रस्तुत नहीं किया। इसके बाद राज्य शासन ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता मानते हुए छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 9(1) क के तहत एल. पी. पटेल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

एलपी पटेल पर रिपोर्ट…

https://youtu.be/itOcDBMz3BA?si=2_KdhdW67nS8jBxo

गुरुवार, 12 जून 2025

रोहतक की वह बेटी जिसने जिया उल हक़ जैसे क्रूर तानाशाह की नींद उड़ा दी थी

रोहतक की वह बेटी जिसने जिया उल हक़ जैसे क्रूर तानाशाह की नींद उड़ा दी थी,,,


रोहतक के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी दसेक साल की उस दुबली मुस्लिम लड़की की एक सबसे पक्की हिन्दू सहेली थी. सहेली और उसकी बहन अपने संगीतप्रेमी पिता के निर्देशन में क्लासिकल गाना सीख रही थीं. एक दिन उस लड़की ने उनके सामने ऐसे ही कुछ गा दिया. शाम को सहेली के पिता उसे घर छोड़ने गए और उसके पिता से बोले – “"मेरी बेटियां अच्छा गा लेती हैं पर आपकी बेटी को ईश्वर से गायन का आशीर्वाद मिला हुआ है. संगीत की तालीम दी जाए तो वह बहुत नाम कमाएगी."  

यूँ 1945 के आसपास उस लड़की के लिए दिल्ली घराने के एक बड़े उस्ताद की शागिर्दी में भर्ती किये जाने की राह खुली. उस्ताद की संगत में जल्द ही उसने दादरा और ठुमरी जैसी शास्त्रीय विधाओं में प्रवीणता हासिल कर ली. पार्टीशन के 4-5 साल तक वह दिल्ली में गाना सीखती रही. 17 की हुईं तो उम्र में उनसे काफी बड़े एक पाकिस्तानी जमींदार को उनसे इश्क हो गया. जल्द ही इस शर्त पर दोनों का निकाह हुआ कि शादी के बाद भी उस की संगीत यात्रा पर कोई रोक नहीं आने दी जाएगी. पति ने अपना वादा अपनी मौत यानी 1980 तक निभाया.

यूँ हमें इक़बाल बानो नसीब हुईं. “हम देखेंगे” वाली इक़बाल बानो!

इक़बाल बानो की गायकी का सफ़र उनकी जिन्दगी जैसा ही हैरतअंगेज रहा. कौन सोच सकता था दादरा और ठुमरी जैसी कोमल चीजें गाते-गाते वह दुबली लड़की उर्दू-फारसी की गजलें गाने लगेगी और भारत-पाकिस्तान से आगे ईरान-अफगानिस्तान तक अपनी आवाज का झंडा गाड़ देगी. उसकी आवाज में एक ठहराव था और गायकी में शास्त्रीयता को बरतने की तमीज. 

फिर 1977 का साल उसके मुल्क में अपने साथ जिया उल हक जैसा क्रूर तानाशाह लेकर आया. धार्मिक कट्टरता के पक्षधर इस निरंकुश फ़ौजी शासक ने तय करना शुरू किया कि क्या रहेगा और क्या नहीं. इस क्रम में सबसे पहले उसने अपने विरोधियों को कुचलना शुरू किया. उसके बाद डेमोक्रेसी और स्त्रियों की बारी आई. जिया उल हक ने यह तक तय कर दिया कि औरतें क्या पहन सकती हैं और क्या नहीं. पाकिस्तान की औरतों के साड़ी पहनने पर इसलिए पाबंदी लग गयी कि वह हिन्दू औरतों का पहनावा थी.

कला-संगीत-कविता जैसी चीजों को गहरा दचका भी इस दौर में लगा. फैज़ अहमद फैज को मुल्कबदर कर दिया गया. हबीब जालिब को जेल भेज दिया गया. उस्ताद मेहदी हसन का एक अल्बम बैन हुआ. शायरों-कलाकारों को सार्वजनिक रूप  से कोड़े लगे. करीब बारह साल के उस दौर की पाशविकताओं और अत्याचारों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है.  

ऐसे माहौल में इक़बाल बानो ने विद्रोह और इन्कलाब के शायर फैज़ को गाना शुरू किया. सन 1981 में जब उन्होंने पहली बार फैज़ को गाया, निर्वासित फैज़ बेरूत में रह रहे थे और उनकी शायरी प्रतिबंधित थी. 

उसके बाद जमाने ने इक़बाल बानो का जो रूप देखा उसकी खुद उन्हें कल्पना नहीं रही होगी. बीस साल पहले उनकी आवाज कोमल, तीखी और सुन्दर हुआ करती थी – अनुभव और संघर्ष के ताप ने अब उसे किसी पुराने दरख्त के तने जैसा मजबूत, दरदरा और पायेदार बना दिया था. अचानक सारा मुल्क पिछले ही साल विधवा हुई इस प्रौढ़ औरत की तरफ उम्मीद से देखने लगा था.   

गुप्त महफ़िलें जमाई जातीं. प्रतिबंधित कविताएं गाई जातीं. स्कूल-युनिवर्सिटियों में पर्चे बांटे जाते. इक़बाल बानो हर जगह होतीं.

फिर 1986 की 13 फरवरी को लाहौर के अलहमरा आर्ट्स काउंसिल के ऑडीटोरियम में वह तारीखी महफ़िल सजी. पूरा हॉल भर चुकने के बाद भी हॉल के बाहर भीड़ बढ़ती जा रही थी. आयोजकों ने जोखिम उठाते हुए गेट खोल दिए. सीढियों पर, फर्श पर, गलियारों में – जिसे जहाँ जगह मिली वहीं बैठ गया. कुछ हजार सुनने वालों के सामने इक़बाल बानो ने फैज़ अहमद फैज़ को गाना शुरू किया:

“हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे

वो दिन कि जिसका वादा है, जो लौह-ए-अज़ल में लिक्खा है

हम देखेंगे”

इस नज्म के शुरू होते ही समूचे हॉल में बिजली दौड़ने लगी. सुनने वालों के रोंगटे खड़े होना शुरू हुए. दर्द के नश्तरों से बिंधी, इक़बाल बानो की पकी हुई आवाज के तिलिस्म ने धीरे-धीरे हर किसी को अपनी आगोश में लेना शुरू किया. अजब दीवानगी का आलम तारीं होने लगा. लोगों ने बाकायदा लयबद्ध तालियों से इक़बाल बानो का साथ देना शुरू किया. 

फिर नज्म का वह हिस्सा आया:

"जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां रुई की तरह उड़ जाएँगे

हम महकूमों के पाँव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी

और अहल-ए-हकम के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे

हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे

सब ताज उछाले जाएँगे

सब तख़्त गिराए जाएँगे" 

भीड़ तालियाँ बजाने लगी. इन्कलाब और इक़बाल बानो की जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू हो गए. इस शोरोगुल के थामने तक इक़बाल बानो को गाना बंद करना पड़ा. उन्होंने फिर गाना शुरू किया. इस दफ़ा लोग बेकाबू होकर रोने लगे. 

कई बरसों की रुलाई दबाये बैठा एक मुल्क सांस लेना शुरू कर रहा था. 

उस रात अलहमरा आर्ट्स काउंसिल के आयोजकों-मैनेजरों के घर छापे पड़े. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर प्रोग्राम की सारी रेकॉर्डिंग्स जब्त कर जला दीं. किसी तरह एक प्रति स्मगल होकर दुबई पहुँच गयी. उसके बाद फैज़-इक़बाल बानो की उस जुगलबंदी का नया इतिहास लिखा जाना शुरू हुआ. दुनिया भर के युवा आज भी उसे लिख रहे हैं.

दो बरस बाद जिया उल हक के अपने ही सलाहकार-साथियों ने उस जहाज में आमों की एक पेटी के भीतर बम छिपा दिए थे जिस पर उसे यात्रा करनी थी. ये बम बीच आसमान में फटे. तब से बीते इतने बरसों में जनरल जिया की हेकड़ी का भूसा भर चुका है. 

इक़बाल बानो आज तक महक रही हैं. पता है 13 फरवरी 1986 की उस रात की कंसर्ट में इक़बाल बानो क्या पहन कर गई थीं?

काले रंग की साड़ी!

Cpd

#AshokPande  जी की जादुई लेखनी

बुधवार, 11 जून 2025

ट्रंप के भारत विरोधी एजेंडे की असली वजह…

 ट्रंप के भारत विरोधी एजेंडे की असली वजह…


यह पूरा देश जानता है कि कभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अपना सबसे बड़ा मित्र बताया था तब ट्रंप आख़िर ऐसी हरकत क्यों कर रहा है जिससे मोदी की छीछालेदर तो हो ही रही है भारत का नाम भी न केवल दुनिया में ख़राब हो रहा है बल्कि नई तरह की मुसीबत खड़ी हो रही है…

क्या इसकी वजह नरेंद्र मोदी की कोई चाल है जिसकी वजह से ट्रंप नाराज़ हो गया, या फिर इसकी वजह मोदी का मित्र प्रेम है या फिर ब्रिक्स में डॉलर को चुनौती देना या फिर कुछ और …

सोशल मीडिया में कितने ही क़यास चल रहे है इन क़यासों के बीच रजनीश जैन लिखते हैं- लॉस एंजेलिस में चल रहे दंगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं, लेकिन उनका भारत-विरोधी एजेंडा रुकने का नाम नहीं ले रहा। वायरल तस्वीरों में एक अप्रवासी  भारतीय छात्र को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ा हुआ देखकर हर भारतीय का खून खौल उठता है। यह न केवल एक व्यक्ति का अपमान है, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान पर हमला है। फिर भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रहस्यमयी चुप्पी देश को हैरान कर रही है।

ट्रम्प प्रशासन ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्ती बरतते हुए भारतीयों को निशाना बनाया है। 2025 में सैन्य विमानों से 104 भारतीयों को हथकड़ियों में वापस भेजने की घटना ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने सही कहा कि भारत को अमेरिका से मानवीय व्यवहार की मांग करनी चाहिए थी, न कि अपराधियों सा बर्ताव स्वीकार करना चाहिए था। ट्रम्प का यह रवैया उनकी भारत-विरोधी नीतियों का हिस्सा है, जो भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में मध्यस्थता के दावे और भारत के रूस-चीन संबंधों पर तंज से स्पष्ट है।

मोदी सरकार की चुप्पी इस मामले को और गंभीर बनाती है। कभी ट्रम्प के लिए "अबकी बार ट्रम्प सरकार" का नारा देने वाले मोदी आज उनके सामने भारत का सम्मान दांव पर लगने के बावजूद खामोश हैं। क्या यह वही "मजबूत" भारत है, जिसका दावा सरकार करती रही है? विदेश मंत्रालय की ओर से सिर्फ औपचारिक बयानबाजी और सहयोग की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन ठोस कदमों का अभाव है।

भारत को अब कूटनीतिक दबाव बनाना होगा। ट्रम्प के टैरिफ और निर्वासन नीतियों का जवाब भारत को अपने व्यापारिक और सामरिक हितों की रक्षा करते हुए देना चाहिए। भारतीय छात्रों और प्रवासियों के सम्मान की रक्षा के लिए अमेरिका में भारतीय दूतावासों को सक्रिय होना होगा। मोदी सरकार को चाहिए कि वह ट्रम्प के सामने भारत का पक्ष मजबूती से रखे, न कि चुप्पी साधे। देश का स्वाभिमान दांव पर है, और अब समय है कि भारत अपनी आवाज बुलंद करे।  लेकिन सिंदूरी लाल अपने ग्यारह साल को सदी के बेहतरीन साल मनवाने को आमादा है।

मंगलवार, 10 जून 2025

तब सवाल सिर्फ़ सोनम का नहीं है…

 तब सवाल सिर्फ़ सोनम का नहीं है…


राजा रघुवंशी और सोनम! पिछले कई दिनों से लोगों के ज़ेहन में कितने ही सवाल खड़े कर चुके हैं। पुलिस ने तो दावा भी कर दिया कि सोनम ही राजा की कातिल है… लेकिन कुछ सवाल अब भी बाक़ी है…

इंदौर के मिसिंग कपल का मेघालय से गायब हो जाना, उनमें से एक राजा रघुवंशी की हत्या हुई।फिर बदहवास हालत में सोनम रघुवंशी का मेघालय से बहुत दूर गाजीपुर में बरामद होना, पूरे देश में सनसनी मचा दी , कितने ही सवाल लोगों के ज़ेहन में उठे तो कितनी ही आशंका। जिसका जो मन चाहा सवाल उठाने लगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आख़िर सोनम ने हत्या जैसा कदम क्यों उठाया ?

लेकिन इसके अलावा भी कुछ सवाल है जिनके जवाब अभी आना बाकी है!

मीडिया पुलिस की थ्योरी पर काम कर रहा है *ओपन एंड शट* केस की तरह इसको एक सामान्य प्रेम प्रकरण की कथा बताया जा रहा है लेकिन यदि आप सारी स्थितियों का अन्वेषण करेंगे तो आपको बहुत सारे पेचीदा तथ्य नजर आएंगे! 

हो सकता है जो स्टोरी पुलिस एस्टेब्लिश करना चाहती है वैसा ही हो लेकिन फिर भी हर पहलू का निरीक्षण जरूरी है! 

मीडिया का काम होता है ऐसे उलझे हुए सवालों को न सिर्फ जनमानस के सामने लाना बल्कि प्रशासन को भी उनके प्रति जवाब देह बनाना!

लेकिन मीडिया क्या कर रहा है जो भी सोर्स है उसके वह सीधे पुलिस की स्टोरी से जुड़े हुए हैं वह इस एक सामान्य प्रेम प्रकरण की तरह पेश कर रहा है और लगभग उसने आम आदमी की मानसिकता में यह धारणा बना  दी है तो सोनम का किसी राज कुशवाहा से प्रेम प्रकरण था जो उस से 5 साल छोटा था उसी के पिता की फैक्ट्री में काम करता था और इस प्रेम के चलते  इस घटना को अंजाम दिया गया!

*मेघालय के मुख्यमंत्री* *कोनारूडसंगमा* के बयान के बाद  मीडिया इन्वेस्टिगेशन तो मानो एक तरह से रुक गया है! 

उसके पहले तक तो कभी बांग्लादेश रोहिगयो का नाम आ रहा था, कभी स्थानीय लूट से उसे जोड़ा जा रहा था, और कभी दुर्घटना का एंगल भी प्रस्तुत किया जा रहा था !

क्योंकि यह केस हाई प्रोफाइल हो चुका था पूरे देश में इसकी चर्चा थी उसके बाद पुलिस पर बहुत दबाव था और मेघालय पुलिस के लिए यह चुनौती बन गया था! 

पुलिस सब पहलुओं को विचार करती है लेकिन पुलिस के सामने एक बहुत बड़ा पहली यह भी होता है कि वह राज्य की आकांक्षाओं के अनुसार  इन्वेस्टिगेशन को अंजाम दें!

पर्यटन मेघालय का बहुत बड़ा व्यापार है और वहां की आर्थिक जीवन रेखा है यदि इस तरह की घटनाएं वहां सामने आती है और अगर उनके संदर्भ स्थानीय लूटपाट से या अंतर राष्ट्रीय अपहरणों से जुड़ता है तो उसका प्रभावित होना संभावित होता है! 

मुख्यमंत्री संगमा की पूरा प्रकरण में हाइपरएक्टिव भूमिका इस संदर्भ में रोचक विषय है! मर्डर मिस्ट्री अधिकांश पुलिस वाले ही डिक्लेअर करते हैं लेकिन यह पहला मौका था जब किसी मुख्यमंत्री ने x पर इसको शेयर कर कर सोशल मीडिया के माध्यम से सारे देश को सूचना दी थी!

यहां एक तथ्य और काबिले गौर है, पुलिस ने अभी तक पूरी तरह एस्टेब्लिश स्टोरी की जानकारी नहीं दी है यानी जो कुछ मीडिया पर कहां जा रहा है वह पूरी तरह पुष्ट नहीं है!

कभी-कभी पुलिस   एक्यूज को कंफ्यूज करने के लिए सूडो स्टोरी भी एस्टेब्लिश करती है ताकि अपराधी निश्चित हो जाए और गलतियां करें ताकि वह पकड़ में आ सके! 

सोनम के बयान अभी भी यही है उसे फसाया जा रहा है उसके साथ जो कुछ घटा 10 दिनों मे लेकर मीडिया में पूरी तरह जानकारी नहीं दी गई है ना पुलिस ने उसके बारे में बहुत विस्तार से बताया है! 

और इसके लिखने के पीछे कुछ और तथ्य भी हैं, गाड़ी के ड्राइवर के बयान और ढाबे वाले के बयान यह तस्दीक कर रहे हैं , जब गाजीपुर में सोनम को देखा गया वहां आने के पहले तक वह बदहवास हालत में थी!

जिस राज कुशवाहा के साथ सोनम का प्रेम प्रकरण बताया जा रहा है उसके कोई डॉक्यूमेंट्री प्रूफ नहीं है यह एक सुनी सुनाई बातों का और मीडिया की कल्पना का आभासी चित्र है! 

तीसरा यदि सोनम को अपने प्रेमी के साथ फरार ही होना था तो उसके लिए राजा की हत्या करना क्यों जरूरी था यह तथ्य भी समझ के  परे हैं!

जिन लोगों को सुपारी किलिंग के लिए हायर किया हुआ बताया जा रहा है क्या वह हिस्ट्रीशीटर है, उनका क्या ऐसा इतिहास है अभी यह परीक्षण का विषय है!

अगर वह लूट थी तो फिर राजा के साथ सोनम को क्यों नहीं मारा गया यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है! 

पुलिस तथ्य जुटा रही है अंतिम सत्य सामने आने तक हमें हमारी मानसिकता बनाने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी! 

 हमारीचोटिल सामाजिक और मानसिक स्थिति के लिए तथ्यों को पूरी कसौटी पर कसना जरूरी है! 

क्योंकि यह सिर्फ सोनम के भरोसे का नहीं, औरत जात के भरोसे का सवाल है जो समाज का निर्माण करती है! 

प्रेम की अंधी पराकाष्ठा, और एक विवाहित स्त्री की नैतिकता के बीच में कर्तव्यों की अधर झूल इस कहानी के सारे सूत्र खुल जाने के बाद समाज में नए मानदंड तय करेगी!(साभार)

रविवार, 8 जून 2025

मंदिर-मंदिर घुमते मस्क की सच्चाई क्या हिंदू धर्म का अपमान नहीं…

 मंदिर-मंदिर घुमते मस्क की सच्चाई क्या हिंदू धर्म का अपमान नहीं…


एलन मस्क के पिता एरोल के भारत आ कर मंदिर मंदिर घुमते तस्वीर को लेकर कितने ही सवाल है और सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जिस व्यक्ति का पूरा जीवन सनातन धर्म के विपरीत रहा है उसे लेकर न तो नफ़रती चिंटुओं की भावना आहत हो रही है न ही मंदिर के पुजारियों की। गौ मांस का सेवन करने वाले एरोल सिर्फ़ बिज़नेस के लिए भारत आये हैं और वे मंदिर मंदिर सिर्फ़ सरकार को खुश करने घुम रहे हैं इसके बाद भी यदि नफ़रती चिंटुओं को उनके साथ तस्वीर खिंचाने में मज़ा आ रहा है तो आप भी जान ले कि एलन मस्क के इस पिता एरोल की हक़ीक़त…

एरोल ग्राहम मस्क का जन्म वाल्टर और कोरा अमेलिया मस्क ( नीरॉबिन्सन) के घर 25 मई 1946 को प्रिटोरिया में हुआ था। उनके पिता दक्षिण अफ़्रीकी थे और उनकी माँ अंग्रेज़ थीं। उन्होंने क्लैफ़हम हाई स्कूल में पढ़ाई की, जहाँ उनका मेय हल्दमैन के साथ रिश्ता शुरू हुआ [ 3 ] जिनसे उन्होंने 1970 में शादी की। [ 4 ] परिवार प्रिटोरिया में रहता था , जहाँ मेय ने आहार विशेषज्ञ और एक मॉडल के रूप में काम किया। [ 3 ] उनके पहले बच्चे, एलोन रीव मस्क का जन्म 28 जून 1971 को हुआ, जिसका नाम मेय के दादा जे. एलोन हल्दमैन के नाम पर रखा गया, रीव उनकी नानी का पहला नाम था। [ 3 [ 1 ]

1979 में मस्क और उनकी पत्नी मेय का तलाक हो गया। [ 3 [ 23 ] अपने संस्मरण में मेय ने अपनी शादी को अपमानजनक बताया और आरोप लगाया कि एरोल हिंसक था। [ 24 ] वह अपने तलाक के दौरान एक समय को याद करती है जब उसने एक पड़ोसी के घर में शरण ली थी जब एरोल उसे ढूंढते हुए चाकू लेकर आया था। [ 12 ] तलाक के बाद, मस्क ने अपने बच्चों की कस्टडी के लिए अपनी पूर्व पत्नी पर बार-बार मुकदमा किया। [ 12 ]उन्होंने कुछ समय के लिए सू नाम की एक महिला से शादी की थी। [ 12 ]

1990 के दशक की शुरुआत में, एरोल ने, जो उस समय 45 वर्ष के थे, 25 वर्षीय हेइडे बेजुइडेनहौट से विवाह किया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वह "मेरे जीवन में देखी गई सबसे सुंदर महिलाओं में से एक थी।" [ 25 ] बेजुइडेनहौट से उनकी दो बेटियाँ थीं। [ 26 ]

1992 में एरोल मस्क दक्षिण अफ्रीका में Heidi Bezuidenhout नाम की महिला से दूसरी शादी करते हैं ,


● Heidi को पहली शादी से चार साल की बेटी Jana थी...!


● Jana जब जवान होती है तब एरोल मस्क अपनी इस सौतेली बेटी को पेट से कर देता है अब तो वो दो बच्चों की माँ हैदोनों केबीच 42 वर्ष का अंतर है...!


 एलन मस्क अपने पिता की हरकत पर उन्हें EVIL कहा हैइस बात की सच्चाई इसकी ख़ुद की वेबसाइट विकिपीडिया पर भीमौजुद है...!


● अब ऐसे आदमी को एक राज्य में मंदिर दर्शन के नाम पर स्टेट गेस्ट का दर्जा दिया जा रहा है क्या यह उचित है...?

दूसरी अहम बात ये एलन मस्क का पिता तो गौ मांस भी खाता है,

इसे प्रभु श्री राम जी के मंदिर औऱ अयोध्या में इतनी इज़्ज़त क्यो दी जा रही है VHP Digital वालो...?

या अब RSS org हिंदू की भावनाओं को रुपए में बेचते हो...?

● ज्ञात हो एलन मस्क ऐरोल मस्क की पहली बीवी से पैदा हुवे हैं जिसे ऐरोल मस्क ने तलाक़ देकर दूसरी महिला के साथ सालों तकलिव इन रिलेशनशिप में थे लेक़िन उससे कोई संतान नही होने से उससे अलग होकर तीसरी शादी Heidi Bezuidenhout नाम कीमहिला से किये जिस महिला की उसके पहले तलाकशुदा पति से महज 4 साल की बेटी थीजिसका नाम Jana है अब इसी सौतेलीबेटी के जवान होने पर ऐरोल मस्क को 2 औलाद Jana से हुवे हैं , ऐसे चरित्रहीन (कैरेक्टर लेसको मंदिरों में घुमाना स्टेट गेस्ट बनाना कितना  उचित है...!