रविवार, 15 जून 2025

नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक

 नाश्ता, नैतिकता और लोकतंत्र: फिनलैंड से भारत तक



कुछ महीने पहले की बात है — दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में गिना जाने वाला फिनलैंड अचानक एक अजीब से विवाद में फंस गया। विवाद था — नाश्ते का! जी हां, महज़ एक प्रधानमंत्री के नाश्ते का खर्च। फिनलैंड की पैंतीस वर्षीय प्रधानमंत्री सना मारीन ने अपने सरकारी आवास में रहते हुए अपने परिवार के नाश्ते का बिल सरकारी खजाने से चुकाया। महीने का खर्च था — तीन सौ यूरो। न कोई बड़ी रकम, न कोई रहस्यमय घोटाला। फिर भी वहां की जनता ने बवाल मचा दिया — “हमारे टैक्स का पैसा क्यों?”

मीडिया ने सवाल उठाया। पुलिस ने सरकारी खर्च की वैधता की जांच शुरू की। जनता ने सड़क से सोशल मीडिया तक आवाज उठाई — “पैसे वापस करो, इस्तीफा दो, और घर जाओ!” और यही हुआ। जनता ने कड़ी नजर रखी और आखिरकार चुनाव में प्रधानमंत्री को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अब सोचिए — यही दृश्य भारत में होता तो?

तीन सौ यूरो तो क्या, यहाँ तो लाखों-करोड़ों का नाश्ता, लंच और डिनर सरकारी खजाने से चलता है। वीवीआईपी बंगले, आलीशान गाड़ियाँ, काफिले, निजी समारोह — सब जनता की जेब से। कोई पुलिस अफसर ऐसी जांच की हिम्मत कर सकता है? कोई मीडिया घराना बिना पक्षपात ऐसी रिपोर्टिंग कर सकता है? और सबसे बड़ी बात — क्या जनता सवाल पूछती है?

भारत में तो नेताओं के लिए ये सब ‘विशेषाधिकार’ माने जाते हैं। जिन्हें रोका-टोका नहीं जाता, बल्कि जाति-धर्म-समाज की दीवारों के पीछे छुपा दिया जाता है। अगर कोई सवाल उठाता है तो भीड़ कहती है — “तुम्हें देशद्रोही कौन बना रहा है?”

तो फर्क कहाँ है?

फर्क नाश्ते की प्लेट में नहीं है। फर्क है नागरिक चेतना में। फिनलैंड में टैक्स का एक-एक यूरो पवित्र है। वहाँ लोग मानते हैं — नेता जनता का सेवक है, मालिक नहीं। अगर वह गलत करता है तो उसे कुर्सी छोड़नी ही होगी। पुलिस और अदालतें सत्ता के डर से नहीं, कानून के बल पर चलती हैं। मीडिया बिकता नहीं, सवाल करता है।

भारत में भी यह संभव है। बस शर्त है — जनता को मालिक बनना होगा।

नेताओं की जाति, धर्म या पार्टी से ऊपर उठकर नागरिक को सिर्फ अपनी मेहनत की कमाई की कीमत समझनी होगी। सरकारी खजाना कोई राजा की जागीर नहीं है। यह खेत में पसीना बहाने वाले किसान, कारखाने में काम करने वाले मजदूर और नौकरीपेशा टैक्स देने वालों का खून-पसीना है।

जब तक हम यह नहीं समझेंगे, कोई सना मारीन नहीं, कोई नाश्ता बिल नहीं — घोटाले, वादे और जुमले ही हमारी किस्मत लिखते रहेंगे।

फिनलैंड खुशहाल है क्योंकि वहाँ सवाल पूछना जुर्म नहीं, अधिकार है। भारत खुशहाल तब होगा जब हर नागरिक सवाल पूछेगा, जवाब मांगेगा और जवाब न मिलने पर नेता को बदल देगा।

नाश्ते से लेकर नीति तक — यही लोकतंत्र की असली परीक्षा है।(साभार)

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