छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले ही यहां के अखबारों ने कौड़ी के मोल सरकारी जमीनों को हथियाने का खेल शुरू कर दिया। वैसे जानकारों का कहना है कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपने कार्यकाल में न केवल अखबार मालिकों को लाखों रुपये का विज्ञापन देकर खुश किया बल्कि प्रदेश के सभी बड़े शहरों की सबसे महंगी भूखंडों को भी कौडियों के मोल में इन अखबार वालों को दिया। यह अर्जुन सिंह जी की एक हाथ ले और एक हाथ दे कि नीति थी और इसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया फिर छत्तीसगढ़ राज्य बना तो यही खेल शुरू हुआ और रजबंधा तालाब जो मैदान रह गया वहां जमीनें दी गई। ऐसा नहीं है कि जमीनें केवल अखबार वालों को ही दी गई भाजपा शासनकाल में तो यहां भाजपा कार्यालय के नाम पर जमीन दी गई और जमीन का एक बड़ा हिस्सा बिल्डरों को दूकानें बनाकर बेचने के लिए दी गई।
रजबंधा में जो जमीनें दी गई उनके उपयोग को लेकर सवाल उठते रहे हैं कि आखिर अखबार चलाने के लिए दी गई जमीनों का कोई दूसरा उपयोग कैसे कर सकता है। दूनिया को नियम कानून सीखाने वाले अखबार मलिक अपने हिस्से की इन जमीनों का उपयोग क्या नियम कानून के तहत कर रहे हैं। यह एक ऐसा सवाल है जो अखबार के गिरते स्तर को प्रदर्शित करता है।
आम आदमी भले ही कुछ न करें लेकिन उसे मालूम है कि कौन-कौन अखबार वाले इन जमीनों का व्यवसायिक उपयोग कर रहे हैं और राजधानी में बैठे अधिकारी तो सिर्फ नौकरी कर रहे हैं. उन्होंने शायद अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है इसलिए वे भी इनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाते। कहा जाता है कि जब प्रशासन नपुसंक हो जाए को अराजकता की स्थिति बनती है और अखबारों के मामले में प्रशासन का यह रवैया आम आदमी को चुभने लगा है।
और अंत में
कभी श्रमजीवियों को बेशरमजीवी कहने वाले एक पत्रकार ने मलिक बनते ही न केवल श्रमजीवियों की जमीनें हड़पी बल्कि अब वह यहाँ व्यवसायिक काम्प्लेक्स भी बना रहा है ऐसे में उनकी पत्रकारिता पर ऊंगली उठना स्वभाविक है।
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