नगर निगम और नगर पालिका के चुनाव में जिस तरह से कुर्सी पाने शराब की गंगा बहाई गई वह कुर्मा डय पूर्ण तो रहा हो उससे भी ज्यादा दुर्भाग्य और दुखद बात प्रशासन की भूमिका रही। शर्मिंन्दगी की सारी हदें तो तब पार हो गई जब प्रशासन यह दावा करता है कि कहीं शराब नही बंटी। प्रशासन की इस बयानी की पोल तो बीरगांव चुनाव में बंटी शराब पीकर अलखराम वर्मा नामक 32 साल का युवक मर गया। प्रशासन ने शराब दुकानें बंद करवा दी थी लेकिन यह युवक युक्त की शराब पीकर मर गया। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो वह तीन दिन से शराब पी रहा था। उसे शराब नेता लोग दे रहे थें ताकि अपने लिए वोट खरीद सके।
इसके बाद भी प्रशासन की बेशर्मी नहीं गई है उसका दावा आज भी है कि चुनाव में शराब नहीं बांटी गई। सिर्फ शिकायत पर ही कार्यवाही करने की बात है तो हमें कुछ नही करना है लेकिन शायद ही ऐसा कोई चुनाव नहीं है जिसमें इस तरह क हथकंडे नहीं अपनाये जाते है और प्रशासन उन्ही पर कार्यवाही करती है जिसपर हल्ला होता है या फिर शिकायत। यहंा आकर उनके मुखबिर भी फेल हो जाते है और शराब से मौत का सिलसिला चलते रहता है।
वे लोग भी खुलकर विरोध नहीं करते जो शराब नही पीते क्योंकि उन्हे दुसरों की जान की कोई परवाह नही है। जिस दौर से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है और लोग गलत की तरफ से आंखें बंद कर समाज सेवा के माध्यम से अपनी लकीर बहाने में लगे है वे शायद यह भूल गए है कि इस अंधेरगर्दी की आंच कभी न कभी उन तक भी पहुंचेगी तब उनके लिए भी गलत का विरोध करने वाले खड़े नहीं होगें।
पिछले सालों में दुर्घटना से मौत के आंकड़ो पर नजर डाले तो इन सबके पीछे कहीं न कहीं शराब ही कारण नजर आयेगें। लेकिन सरकार को तो सिर्फ और सिर्फ राजस्व की चिंता है ताकि अपने ऐशो-आराम की सुविधा में किसी तरह की कटौती न हो पाये।
शराब से घर टुट जाते है गांव और मोहल्ले की शांति भंग हो रही है और अपराध भी बह रहे है। क्या इतनी सी बात सरकार को नहीं मालूम है या वह लोगों को नशे में डूबोकर कुर्सी पर बना रहना चाहती है।
अधिसंख्य वर्ग या गरीब वर्ग को मुफत की बंटरबोर कर नशे में रखने की सियासत ने इस शांत छत्तीसगढ़ को अशांत कर दिया है। गांव हो या शहर अवैध शराब की गंगा बहाई जा रही है और शराब माफियाओं के इशारे पर शासन प्रशासन नाच रहा है क्या ऐसे ही छत्तीसगढ़ की कल्पना की गई थी।
अब भी वक्त है छत्तीसगढ़ के हितचिंतकों के लिए कि वे सचेत हो जाए वरना आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ को बिहार या यूपी बनने से रोकना मुश्किल हो जायेगा। आप लोगों का दिन ढलते ही लौट पाने की चिंता में मां-बाप का खुन सूख जायेगा।
शराब बेचने की सरकारी मजबूरी सिर्फ बहाना है। ऐसे में मौत के सिलसिले रोकने आम लोगों को इसके खिलाफ जमकर खड़ा होना होगा। वरना सरकारी अंधेरगर्दी पर पछताने के अलावा कुछ न बचेगा।
इसके बाद भी प्रशासन की बेशर्मी नहीं गई है उसका दावा आज भी है कि चुनाव में शराब नहीं बांटी गई। सिर्फ शिकायत पर ही कार्यवाही करने की बात है तो हमें कुछ नही करना है लेकिन शायद ही ऐसा कोई चुनाव नहीं है जिसमें इस तरह क हथकंडे नहीं अपनाये जाते है और प्रशासन उन्ही पर कार्यवाही करती है जिसपर हल्ला होता है या फिर शिकायत। यहंा आकर उनके मुखबिर भी फेल हो जाते है और शराब से मौत का सिलसिला चलते रहता है।
वे लोग भी खुलकर विरोध नहीं करते जो शराब नही पीते क्योंकि उन्हे दुसरों की जान की कोई परवाह नही है। जिस दौर से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है और लोग गलत की तरफ से आंखें बंद कर समाज सेवा के माध्यम से अपनी लकीर बहाने में लगे है वे शायद यह भूल गए है कि इस अंधेरगर्दी की आंच कभी न कभी उन तक भी पहुंचेगी तब उनके लिए भी गलत का विरोध करने वाले खड़े नहीं होगें।
पिछले सालों में दुर्घटना से मौत के आंकड़ो पर नजर डाले तो इन सबके पीछे कहीं न कहीं शराब ही कारण नजर आयेगें। लेकिन सरकार को तो सिर्फ और सिर्फ राजस्व की चिंता है ताकि अपने ऐशो-आराम की सुविधा में किसी तरह की कटौती न हो पाये।
शराब से घर टुट जाते है गांव और मोहल्ले की शांति भंग हो रही है और अपराध भी बह रहे है। क्या इतनी सी बात सरकार को नहीं मालूम है या वह लोगों को नशे में डूबोकर कुर्सी पर बना रहना चाहती है।
अधिसंख्य वर्ग या गरीब वर्ग को मुफत की बंटरबोर कर नशे में रखने की सियासत ने इस शांत छत्तीसगढ़ को अशांत कर दिया है। गांव हो या शहर अवैध शराब की गंगा बहाई जा रही है और शराब माफियाओं के इशारे पर शासन प्रशासन नाच रहा है क्या ऐसे ही छत्तीसगढ़ की कल्पना की गई थी।
अब भी वक्त है छत्तीसगढ़ के हितचिंतकों के लिए कि वे सचेत हो जाए वरना आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ को बिहार या यूपी बनने से रोकना मुश्किल हो जायेगा। आप लोगों का दिन ढलते ही लौट पाने की चिंता में मां-बाप का खुन सूख जायेगा।
शराब बेचने की सरकारी मजबूरी सिर्फ बहाना है। ऐसे में मौत के सिलसिले रोकने आम लोगों को इसके खिलाफ जमकर खड़ा होना होगा। वरना सरकारी अंधेरगर्दी पर पछताने के अलावा कुछ न बचेगा।
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