छत्तीसगढ़ में इन दिनों विकास की ईबादत फाईलों में लिखी जा रही है। लगातार हर क्षेत्र में पुरस्कार पाते विभागों की असली कहानी मैदान में आते ही दम तोड़ जाती है। दशक भर पहले के हालात आज भी वैसे है यह कोई नहीं कह सकता लेकिन जिस मापदंडो को विकास का आधार बनाया गया है वह फाईलों तक सिमट कर रह गया है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही दर्जनों झुग्गी बस्तियों में आज भी लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए न केवल जद्दो जहद करनी पड़ रही है। बल्कि पीने का पानी तक ठीक से उपलब्ध नहीं है। बजबजाती नालियों के उपर निस्तार कर रहे लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल तो और भी बुरा है पानी, शिक्षा व चिकित्सा सुविधा के अभाव में कितनी ही जिंदगी काल के गाल में समा रही है। सबसे दुखद स्थिति तो नक्सली प्र्रभावित क्षेत्रों का है जहां कुपोषण का कहर आज भी जारी है। कानून व्यवस्था की बिगड़ती हालत ने शहरी जीवन को ही नहीं ग्रामीण जीवन को भी अपनी चपेट में ले रखा है। लूट-डकैती चोरी, बलात्कार और यहां तक की हत्या के वारदातों पर भी ईजाफा हुआ है।
राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां माफिया राज हावी हुआ है उसके चलते विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है खासकर खनिज संपदा, को जिस तरह से लूटा जा रहा है और जंगलों की बैधड़क कटाई हो रही है वह आने वाले दिनों में गंभीर खते का संकेत है।
आज 21वीं सदी में भी हम गांवो में चिकित्सा सुविधा नहीं दे पा रहे है जिससे असमय काल के गाल में पहुंचने वालों की संख्या बढ़ी है। मोतियाबिंद के ईलाज के नाम पर जिस तरह की लापरवाही हुई और उसके बाद डॉक्टरों को बचाने का जो खेल हुआ वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। शिक्षा की आड़ में निजी स्कूलों को बढ़ावा देकर जिस तरह से आम लोगों की जेब काटी जा रही है। वह भी दुर्भाग्य पूर्ण है। सरकार स्कूलों को जानबुझकर कमजोर करने की वजह से यह स्थिति बनी है और हम विकास की ईबादत लिख रहे हैं?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें