इस सवाल का जवाब मोदी को देना चाहिए…
सवाल यह नहीं है कि मोदी सरकार के आने के बाद हिंदू ख़तरे में है? और न ही सवाल मोदी सत्ता के रहते बारह लाख लोगों का इस देश की नागरिकता छोड़ देने का है? सवाल तो मोदी के उन लाड़लों का है जिन्हें देश के कर्णधार बनाये गये है लेकिन इन कर्णधारों का भविष्य इस देश में नहीं विदेश में जा बसे हैं।
आप सुनकर और जानकार हैरान हो जाएँगे कि भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के शीर्ष निर्णय जिन हाथों से लिए जाते हैं, आज उन्हीं हाथों के उत्तराधिकारी इस देश से मुँह मोड़ चुके हैं। और उसके बाद यदि वे पद पर हैं तो इस देशभक्ति पर क्या संदेह नहीं करना चाहिए ?
NSA अजीत डोभाल — देश की सुरक्षा का चेहरा।
उनके बेटे विवेक डोभाल — अब ब्रिटिश नागरिक।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर — भारत की वैश्विक नीति के शिल्पकार।
उनके बेटे ध्रुव जयशंकर — अब अमेरिकी नागरिक।
यह सिर्फ दो लोगों का मामला नहीं है। यह दर्शाता है कि जिनके पास इस देश के भविष्य की कमान है, उनके अपने भविष्य इस देश से बाहर बँधे हैं।
यह विचारणीय नहीं, बल्कि खतरनाक है।
जब नीति-निर्माताओं की अगली पीढ़ी इस देश में नहीं, तो क्या उनकी नीतियाँ इस देश के भविष्य के प्रति समर्पित होंगी?
जब उनके बच्चे यहाँ के स्कूल, अस्पताल, सड़कों, प्रदूषण, बेरोज़गारी, सैनिकों की शहादत — किसी भी सच्चाई से नहीं जुड़ते, तो क्या वे नीतियाँ आम भारतीय के जीवन की सच्ची परछाईं होंगी?
क्या भारत अब ‘सेवा का स्थान’ मात्र रह गया है, और ‘जीवन का सपना’ कहीं और?
क्या यह देश नेतृत्व की प्रयोगशाला बनकर रह गया है, जहाँ नेता अपने बच्चों के लिए पश्चिमी जीवन की नींव डालते हैं?
यह सवाल अब सत्ता से नहीं — जनता से है।
क्या हम ऐसे नेतृत्व को आँख मूंदकर स्वीकारते रहेंगे, जिनका भावी वंश इस देश में साँस लेने तक को तैयार नहीं?
तब सबसे बड़ा सवाल है कि इन लोगों के द्वारा सिर्फ नागरिकता नहीं छोड़ी गई है, ये भरोसा छोड़ा गया है।
तब देश के प्रधान सेवक को जवाब देना चाहिए कि वे कैसा देश गढ़ रहे है जिनमे उनके ही विश्वास पात्रों को इस देश पर विश्वास नहीं?
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