शनिवार, 27 मार्च 2010

जो दिखता है वही बिकता है

अखबार की दुनिया भी अपनी तरह की दुनिया है। स्वयं को दिखाने की कोशिश में तामझाम के साथ-साथ अब ईनामी ड्रा भी निकाले जाते हैं ताकि पाठकों को खबर की बजाए ईनाम के लालच में अपना अखबार बेच सके।
राजधानी में तो इन दिनों गजब का नजारा है। नवभारत जैसे प्रतिष्ठित अखबार रीड एंड वीन के जरिये पाठक तक पहुंच रहा है। कभी छत्तीसगढ़ की धड़कन माने जाने वाला यह अखबार भी अब अपने प्रतिद्वंदियों से भयभीत है तो इसकी वजह अखबार का बाजारीकरण है।
दैनिक भास्कर तो तंबोला के जादू से अखबार बेचने आमदा है जबकि दैनिक भास्कर की टीम तोड़कर नए कलेवर में निकलने वाले अखबार नेशनल लुक को भी खबरों से यादा रद्दी इकट्ठा करने में भरोसा है वह तो पुराना एक माह का पेपर लाने पर 90 रुपए तक दे रहा है।
बाजारीकरण के इस दौड़ में हर चीज को बिकाऊ मानने वाले इन अखबारों को मालूम है कि सिर्फ अखबार बेचकर पैसा नहीं कमाया जा सकता। जितना अखबार बिकेगा उतना विज्ञापन मिलेगा और यही असली कमाई है।
इसलिए अखबार बेचने के लिए राजधानी के अखबारों में ऐसी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। वैसे भी अखबार अब पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुका है और एक अच्छे दुकानदार की तरह अखबारों में भी ऐसी खबरें कम ही छपती है जिससे सरकार रूपी मजबूत ग्राहक नाराज हो जाए।
सरकार में बैठे लोगों के लूटखसोट या फिर गलत कामों पर भी अखबार खामोश रहे या बड़े इंडस्ट्रीज में होने वाली घटना पर नाम नहीं छापना अब आम बात हो गई है और जब अखबारों में खबरें न हो तो ग्राहकों को पटाने सेल तो लगाने ही पड़ेंगे और जब पूरा जमाना ही दिखता है तो बिकता है वाली हो तो फिर अखबार के धंधेबाज इससे दूर कैसे रह सकते है।
इसलिए राजधानी के अखबार भी ग्राहकों को छोटे-छोटे ईनाम देकर सरकार से बड़ी राशि लूटने में लगे हैं। ऐसे ईनामी ड्रा लॉटरी के श्रेणी में नहीं आते क्योंकि ये नगद नहीं होते और न ही सीधे तौर पर टिकिट बेची जा रही है कहना मुश्किल है। अब ईनाम के लालच में कोई 10-20 अखबार खरीदे भी तो यह उसकी ही गलती है।
और अंत में....
नगर निगम चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को छोड अन्य प्रत्याशियों की पीड़ा रही कि भले ही वे चुनाव जीतने में सक्षम है लेकिन मीडिया उन्हें कवर नहीं किया अब भला ऐसे प्रत्याशियों को कोई कैसे समझाये कि सिर्फ दमदार होने से काम नहीं चलेगा। मालदार भी होना पड़ेगा।

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