बिहार के चुनाव परिणाम यदि लालू और कांग्रेस के गाल पर तमाचा है तो भाजपा के लिए भी स्पष्ट चेतावनी है कि लोग हर हाल में शांति से जीवन जीना चाहते हैं। दो जून की रोटी और सुकून की नींद ही हमारी नई आजादी की लड़ाई का उद्देश्य है। बिहार में नीतिश कुमार की जीत हमारी इसी नई आजादी की जीत है। जहां कानून व्यवस्था मजबूत हो, विकास के द्वार खुल रहे और आप लोगों को बेहतर जीवन मिले।
बिहार के चुनाव परिणाम आने वाली राजनीति की दिशा तय करेगी। अब जाति और धर्म को राजनीतिक रूप देने की किसी भी कोशिश को जनता समझने लगी है। क्योंकि ये झगड़े सिर्फ सत्ता पाने का माध्यम है और लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है कि सरकार किसकी रहे वह तो बस अच्छी सरकार चाहती है। बिहार में न तो लालू का जाति वाला जादू चला और न ही कांग्रेस के राहुल का परिवारिक जादू ही काम आया। भाजपा के धर्म आधारित राजनीतिक को भी नीतिश कुमार ने पहले ही हाशिये में डाल रखा था। नरेन्द्र मोदी के कट्टर हिन्दुत्व के चेहरे को जिस बेबाकी से नीतिश कुमार ने नोचा था तभी से ही उनकी जीत का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
वे दिन अब लदने लगे हैं जब पारिवारिक पृष्ठभूमि मायने रखती थी। अब वे युवा पढ़-लिखकर नई सोच के साथ जीना पसंद करते हैं। हर जाति और हर धर्म के युवा एक छत के नीचे न केवल काम कर रहे हैं बल्कि अपनी जिन्दगी का सुख-दुख और यहां तक की पारिवारिक रिश्ते भी कायम कर रहे हैं। ऐसे में जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने वालों की दुर्गत स्वाभाविक है।
नीतिश कुमार के पहले बिहारी शब्द से आम लोगों को चिढ़ होने लगी थी। बिहार में माफियाओं का राज था। दिन ढलते ही दहशत के साये में जीते लोगों ने जब हिम्मत करके नीतिश को गद्दी पर बिठाया तो उन्होंने जिम्मेदारी बखूबी निभाई। कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को तो मजबूत किया ही गया। विकास के नये आयाम स्थापित किया। आम लोगों में व्याप्त भय को दूर करने का विश्वास ही उन्हे पुन: सत्तासीन किया है।
लालू की हरकत नौटंकी बन गई और राहुल का क्रेज भी यहां खत्म हो गया तो इसके पीछे नीतिश की वह सोच है जिसमें भाजपा के नरेन्द्र मोदी जैसे चेहरे को भी वे बर्दाश्त नहीं करते। भाजपा भले ही इस जीत में अपना श्रेय ढूंढ़ रही हो लेकिन सच्चाई वह भी जानती है कि यदि नीतिश की राह पर वे नहीं चले होते तो वह भी आज लालू-पासवान और कांग्रेस के साथ खड़ी होती।
नई आजादी की लड़ाई ऐसे ही सरकार के लिए हैं जहां भय, भूख और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। विकास की सारी सुविधाएं शहरों में ही देने की बजाय गांवों में भी पहुंचे। बिसलरी पीने वाले नेता-अधिकारी गांव वालों को तो कम से कम सहज रूप से पीने का पानी पहुंचाये। उद्योगों को पानी और बिजली की वकालत करने वाले खेतों को पानी पहुंचाने का काम करें। स्वास्थ्य सुविधा गांव-गांव तक पहुंचे और माफियाओं के खिलाफ कड़ा कानून बने।
गृह निर्माण मंडल का राविप्रा जैसी संस्थानों में एक व्यक्ति एक मकान के सिध्दांत को लागू करें। इसमें न केवल अपना मकान का सपना पूरा होगा बल्कि सस्ते दर में मकान उपलब्ध हो जायेंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार के लिए भी बिहार चुनाव के परिणाम चुनौती है। वहां माफिया भाये तो यहां डेरा डालने लगे है। बिहार में नीतिश ने अपहरण फिरौती करने वालों को जेल में डाल दिया तो यहां वारदात बढ़ रही है। कृषि जमीन और सरकार जमीनों को विकास के नाम पर बंदरबांट करना बंद करना होगा और दमदार मंत्री, भ्रष्ट मंत्री और ऐसे ही अधिकारियों पर नकेल कसनी होगी।
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