सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

अंग्रेजी अखबार का जी एम् रंगरेलियां मानते पकडाया , पुलिस के हाथ - पावं फुले बगैर कार्रवाई के छोड़ा


छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है 

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