अब तक केद्र सरकार की मनमानी पर न्यायालय फटकार लगाते रही है लेकिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जिस तरह से प्रधान पाठक परीक्षा को रद्द किया है उसके बाद सरकार को सबर लेना होगा कि वह अपनी मनमानी बंद कर दे। लोगों ने अपने हितो के लिए विधायक चुने हैं। भले ही उन्हें दो जून का खाना न मिले लेकिन विधायकों को भूखा रहना न पड़े इसलिए उन्हें वेतन भी दिया जाता है। उन्हें वेतन इसलिए भी दिया जाता है कि वे नौकरशाहों पर नकेल कस कर रखे।
लेकिन क्या सचमुच ऐसा हो रहा है। चपरासी से लेकर आईएएस, आईपीएस सरे आम पैसा खा रहे हैं। और जनप्रतिनिधी इस पर नजर रखने कि बजाय खुद पैसा खाने में लग गये हैं।
प्रधान पाठक परीक्षा रद्द करने के न्ययालीन फैसले के बाद पहला सवाल यह उठने लगा कि आखिर सरकार में बैठे लोग ही नियम से काम न करे तो आम लोगों से नियम पर चलने की उम्मीद वह क्यों करती है। दूसरा सवाल यह है कि अब लोगों को हर छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा। ये दो सवाल ही अन्ना हजारे को जन्म देता है। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है। लूट-खसोट की सारी हदें पार की जा रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी जमकर हो रही है। बकौल प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी यह सरकार इतनी खराब है कि यदि डीएमके व अन्य गठबंधन दलों की मजबूरी नहीं होती तो अब तक इसे बर्खाश्त कर दिया जाता। भले ही अजीत जोगी पर काग्रेसी होने की वजह से यह कहने का आरोप लग रहा हो लेकिन प्रधान पाठक परीक्षा रद्द होने के बाद क्या दोषी अधिकारीयों को बचाया नहीं जा रहा है। क्या बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह सहित ऐसे तमाम विवादास्पद अधिकारीयों को प्रमुख पदों पर नहीं बिठाया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्या भ्रष्ट और विवादास्पद अधिकारीयों को संरक्षन नहीं दे रखा है। कल्लुरी जैसे आईपीएस अधिकारी जहां जाते हैं अपनी अपनी करतूत से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है। आम लोगों ही नहीं पार्टी कार्यकर्ताओं से बदतमीजी करने वालों को मंत्री बनाये रखने की मजबूरी नहीं निजी स्वार्थ कहा जाता है। प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह ने जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मजबूरी की बात कही थी तब भी मजबूरी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। ऐसा नहीं कि गठबंधन की मजबूरी की दुहाई सिर्फ मनमोहन सिंह ने दी है। ऐसी दुहाई भाजपा भी केंद्र की सत्ता में पहुंचने पर देते रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ में न तो गठबंधन की मजबूरी है और न ही अल्पमत की चिंता सरकार भ्रष्ट अधिकारीयों पर नकेल क्यों नहीं कस रहा है। सरकार खुद स्वीकार करती है की रोगदा बांध बगैर जानकारी के उद्योगपति को बेच दिया गया लेकिन न तो इस ब्रिकी को ही रद्द किया जाता है और न ही बेचने वाले मुख्य सचिव पी जाय उमेन पर ही कार्यवाई की जाती। क्या अपना पेट काटकर विधायकों को वेतन और मंत्रियों को सुविधा इसलिए दी जाती है कि वे नौकरशाहों के साथ मिलकर देश को बेचने का कम करे । भाजपा याद रखे की जनता ने उन्हें काग्रेसियों की करतूतों की वजह से चुना है और उनकी करतूतें बंद नहीं हुई तो जनता उन्हें भी बाहर करेगी जैसे केंद्र में वह कर चुकी है। सिर्फ शाखाओं में संस्कार की बात कहने से या दो रुपया किलो चावल देने से पाप नहीं धुल जाता। कर्मो का फल यहीं मिलता है और ईश्वर जब कर्मो का फल देता है तो उसका असर भयावह होता है। यदि सचमुच सरकार के मुखिया ईमानदार हैं तो उन्हें भी प्रधान पाठक परीक्षा सहित अन्य घपलों के लिए नौकरशाह को दंडित करना होगा वरना जिस तरह से भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर ऊंगली उठाई थी वैसे ही हजारों उंगलिया डाक्टर रमन सिंह पर उठेगी और फिर छत्तीसगढ़ में भी अन्ना हजारे की तर्ज पर लोग नई आजादी की लड़ाई लड़ेंगे।
लेकिन क्या सचमुच ऐसा हो रहा है। चपरासी से लेकर आईएएस, आईपीएस सरे आम पैसा खा रहे हैं। और जनप्रतिनिधी इस पर नजर रखने कि बजाय खुद पैसा खाने में लग गये हैं।
प्रधान पाठक परीक्षा रद्द करने के न्ययालीन फैसले के बाद पहला सवाल यह उठने लगा कि आखिर सरकार में बैठे लोग ही नियम से काम न करे तो आम लोगों से नियम पर चलने की उम्मीद वह क्यों करती है। दूसरा सवाल यह है कि अब लोगों को हर छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा। ये दो सवाल ही अन्ना हजारे को जन्म देता है। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है। लूट-खसोट की सारी हदें पार की जा रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी जमकर हो रही है। बकौल प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी यह सरकार इतनी खराब है कि यदि डीएमके व अन्य गठबंधन दलों की मजबूरी नहीं होती तो अब तक इसे बर्खाश्त कर दिया जाता। भले ही अजीत जोगी पर काग्रेसी होने की वजह से यह कहने का आरोप लग रहा हो लेकिन प्रधान पाठक परीक्षा रद्द होने के बाद क्या दोषी अधिकारीयों को बचाया नहीं जा रहा है। क्या बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह सहित ऐसे तमाम विवादास्पद अधिकारीयों को प्रमुख पदों पर नहीं बिठाया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्या भ्रष्ट और विवादास्पद अधिकारीयों को संरक्षन नहीं दे रखा है। कल्लुरी जैसे आईपीएस अधिकारी जहां जाते हैं अपनी अपनी करतूत से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है। आम लोगों ही नहीं पार्टी कार्यकर्ताओं से बदतमीजी करने वालों को मंत्री बनाये रखने की मजबूरी नहीं निजी स्वार्थ कहा जाता है। प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह ने जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मजबूरी की बात कही थी तब भी मजबूरी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। ऐसा नहीं कि गठबंधन की मजबूरी की दुहाई सिर्फ मनमोहन सिंह ने दी है। ऐसी दुहाई भाजपा भी केंद्र की सत्ता में पहुंचने पर देते रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ में न तो गठबंधन की मजबूरी है और न ही अल्पमत की चिंता सरकार भ्रष्ट अधिकारीयों पर नकेल क्यों नहीं कस रहा है। सरकार खुद स्वीकार करती है की रोगदा बांध बगैर जानकारी के उद्योगपति को बेच दिया गया लेकिन न तो इस ब्रिकी को ही रद्द किया जाता है और न ही बेचने वाले मुख्य सचिव पी जाय उमेन पर ही कार्यवाई की जाती। क्या अपना पेट काटकर विधायकों को वेतन और मंत्रियों को सुविधा इसलिए दी जाती है कि वे नौकरशाहों के साथ मिलकर देश को बेचने का कम करे । भाजपा याद रखे की जनता ने उन्हें काग्रेसियों की करतूतों की वजह से चुना है और उनकी करतूतें बंद नहीं हुई तो जनता उन्हें भी बाहर करेगी जैसे केंद्र में वह कर चुकी है। सिर्फ शाखाओं में संस्कार की बात कहने से या दो रुपया किलो चावल देने से पाप नहीं धुल जाता। कर्मो का फल यहीं मिलता है और ईश्वर जब कर्मो का फल देता है तो उसका असर भयावह होता है। यदि सचमुच सरकार के मुखिया ईमानदार हैं तो उन्हें भी प्रधान पाठक परीक्षा सहित अन्य घपलों के लिए नौकरशाह को दंडित करना होगा वरना जिस तरह से भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर ऊंगली उठाई थी वैसे ही हजारों उंगलिया डाक्टर रमन सिंह पर उठेगी और फिर छत्तीसगढ़ में भी अन्ना हजारे की तर्ज पर लोग नई आजादी की लड़ाई लड़ेंगे।
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