राजधानी ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में सबका पारा चढ़ा हुआ है। सूर्य के रौद्र रूप से लोग जहां परेशान है और क्रांकिट के जंगल में तब्दिल होते योजनाओं को कोस रहे है तो राहुल गांधी के दौरे के बाद कांग्रेसियों का पारा चढ़ा हुआ है। मैक्लाड तो स्टेज पर ही चढ़ गई और इस्तीफा तक दे डाला तो जोगी,पटेल,महंत और चौबे का पारा भी खुब चढ़ गया है और राहुल गांधी के खिलाफ भले ही कुछ न बोल पा रहे हो लेकिन मन ही मन कोस जरूर रहे होंगे कि आखिर उन्हें बुलाने की योजना क्यों बनाई।
पारा तो भाजपा ही नहीं पूरे सरकार का चढ़ा हुआ है। राहुल की वजह से कम सौदान सिंह और नक्सलियों की वजह से ज्यादा हो सकता है। लगातार नक्सली हमले और भ्रष्टाचार के आरोप ने उनका पारा चढ़ा दिया है। भ्रष्टाचार के नाम पर तो वह तिलमिलाने लगी है ऐसे में राहुल के आने पर सुशासन का विज्ञापन से अपनी बौखलाहट सामने ला बैठे।
सौदान सिंह अलग अनुशासन का डंडा पकड़े हुए है। संघ के रीति नीति के विपरित चल रही सरकार पर संघ की खामोशी की वजह सौदान सिंह ही है। आखिर संघ कैसे कहे कि उनके लोग इतने भ्रष्ट कैसे हो गये । बचपने से साखा लगाने की शिक्षा में आखिर क्या कमी रह गई है। पारा तो संघ का भी चढ़ा हुआ है लेकिन मोदी और येदिरप्पा को संभालने में लगे कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे प्रदेश पर ध्यान लगाये।
आदिवासियों का पारा भी चढ़ा है। वे राजधानी में हुए अपनी मार-कुटाई को नहीं भूल पा रहे है और उन्हें कांग्रेस पर भी बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है। हरिजन तो पहले ही अपना पारा चढ़ाये हुए है। उनके चढ़े पारे की नजर से ही सरकार के मुखिया गिरोधपुरी नहीं जा सके थे।
नक्सलियों का पारा तो गर्मी के साथ लगातार चढ़ रहा है। अपहरण और हत्या की वारदातों को लगातार अंजाम दे रहे है। उन्हें मालूम है कि सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती 10 हजार करोड़ का सलाना धंधा है उसकी रक्षा करने के लिए लगातार पारा चढ़ा रहे है।
इन सबके बीच पारा चढऩे की चिंता में मंत्रियों का पारा चढ़ा हुआ है। डेढ़ साल बाद चुनाव होने है और उसकी तैयारी और खर्चे को सोचकर उनका पारा चढऩा स्वाभाविक है।
पारा यदि नहीं चढ़ रहा है तो वह आम छत्तीसगढिय़ा ही है जिनका पारा नहीं चढ़ पा रहा है। खुद की जमीन से हकाले जाने के बाद नौकरी में भी जगह नहीं देने के षडय़ंत्र के बाद भी उनका पारा नहीं चढ़ रहा है।
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