मंगलवार, 5 जून 2012

विकास और बेदखली...


मानव अधिकारियों को लेकर गठित एक समूह ने आजादी के बाद विकास के नाम पर बेदखली का जो आंकड़ा सामने लाया है वह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि सरकार के लिए चेतावनी भी हैं। इस आंकड़े में कहा गया है कि बेदखली का सबसे ज्यादा शिकार आदिवासी व दलित हुए हैं।
दुनियाभर में अपने घरों से विस्थापित होने को मजबूर लोगों के ये आंकड़े सरकार के रवैये की करतूत खोलने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां की सरकार ने विकास के नाम पर बेदखली किया है उसके आंकड़े तो अलग से नहीं है लेकिन हमारा दावा है कि बेदखली लोगों में मूल छत्तीसगढिय़ों की संख्या अधिक है और इनमें आदिवासी दलित के आंकड़े भी चौंकाने वाले होंगे।
हम यहां सरकार की नासमझी से चलाए गए सलवा जुडूम की वजह से पांच सौ से अधिक गांवो के उजड़ जाने की बात नहीं कर रहें है हम यहां केवल विकास के नाम पर, नई राजधानी, उद्योग, सड़क और बांध की वजह से विस्थापित लोगों पर ही चर्चा कर रहे हैं। जिस पर सरकार का रवैया गैर जिम्मेदराना रहा है। बेदखल लोगों के पुर्नवास का ही पता नहीं और न ही मुआवजे ही ठीक ढंग से दिए गए। नई राजधानी से लेकर रायगढ़ के केलोडेम और बस्तर से लेकर अंबिकापुर के उद्योगों की वजह से दादागिरी के साथ लोगों को बेदखल किया गया और अब भी बेदखली का सिलसिला जारी है। इनकी मदद को आये लोगों को जेल में डालने के आंकड़े भी कम नहीं है।
विकास के नाम पर जिस तरह की ईबादत छत्तीसगढ़ सरकार ने लिखी है इसके आंकड़े आने वाले दिनों में जब सबके सामने आयेगा तो हमारा दावा है कि खुद सरकार में बैठे लोग अपनी छाती पिटते नजर आयेंगे।
छत्तीसगढ़ में नजूल व फालतू जमीनों की कमी नहीं है इसके बाद भी जिस तरह से अपने सुखसुविधा के लिए बेदखली का कुचक्र रचा गया वह आने वाले दिनों में इस शांत प्रदेश पर भी असर डालेगा और तब पर्यावरण को लेकर चिंतित लोग वृक्ष लगाते या हल्ला करते नजर आयेंगे।

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