शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

बेशर्म राजनीति...


 

किसानों के मुद्दे को लेकर राजनीति इतनी बेशर्म हो गई है कि अब वे लोग भी किसानों के हित में सड़को पर उतरने लगे हैं जिनके चेहरे सत्ता के दौरान किसान विरोधी दिखते थे या जिन लोगों ने अपने व्यवसाय के आड़ में किसानों का शोषण किया है और समर्थन मूल्य से कम कीमत पर किसानों की फसल खरीदकर अपना व्यवसाय चमकाया है।

इन दिनों देशभर में दो ही मुद्दे छाये हुए है एक किसान दूसरा बंगाल। दोनों ही मुद्दों में झूठ-अफवाह और नफरत की राजनीति करने वालों ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी है। बंगाल के मुद्दे पर हम फिर कभी विस्तार देंगे। अभी तो किसान के मुद्दे पर हो रही बेशर्मी की ही बात करनी चाहिए। क्योंकि छत्तीसगढ़ में इन दिनों इसी मुद्दे को लेकर भाजपा सड़क पर है। लेकिन भाजपा के सड़क पर उतरने की असली वजह कुछ और ही है।

क्योंकि किसानों के हित में सड़क पर उतरने की लड़ाई तो उस दिन शुरु हो जाना था जब सत्तासीन लन सिंह के बोनस पर मोदी सत्ता ने ग्रहण लगा दिया था। लेकिन तब कोई सड़क पर नहीं आया।

सच तो यही है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार की प्रमुख वजह किसानों को तीन सौ रुपया बोनस देने के वादे पर अमल नहीं करना था। यह बात सत्ता में बैठे लोग ही नहीं पार्टी के आम कार्यकर्ता भी कहते हैं कि यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन सौ रुपये बोनस पर रोक नहीं लगाई होती तो भाजपा की छत्तीसगढ़ में इतनी बुरी गत नहीं बनती कि वह केवल 15 सीटों पर ही सिमट जाती।

लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बात-बात पर दिल्ली जाने की धमकी देने वाले लोग मोदी सत्ता के इस फैसले पर बोलने को तैयार नहीं थे।

ऐसे में सवाल यह नहीं है कि भाजपा को किसानों के हित में लड़ाई नहीं लडऩी चाहिए लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा उन्हीं मुद्दों पर किसानों हित की बात करेगी जिससे उनका राजनैतिक हित सधता है।

धरना देने वालों में ऐसे लोग भी है जो शुद्ध रुप से किसानी प्रोडक्ट का व्यवसाय करते हैं और ऐसे चेहरे भी है जो किसानों से घपलेबाजी करने के आरोपी हैं। तब यह आंदोलन क्या सिर्फ नौटंकी नहीं रह जायेगा?

बेशर्मी होती राजनीति को लेकर आम जनमानस में जो छवि बनते जा रही है इससे नेताओं का कोई सरोकार नहीं रह गया है और वे हर हाल में अपनी राजनीति चमकाना चाहते है ताकि उनके अपने खुद की रईसी बना रहे।

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