छत्ततीसगढ़ में उद्योगपतियों की दादागिरी पर सरकार की खामोशी का क्या अर्थ है यह तो वही जाने लेकिन आम लोगों में जिस तरह से चर्चा है उसका लब्बोलुआब तो यहीं है कि जब आप गलत होंगे तो आप किसी को गलत करने से नहीं रोक सकते है न ही अच्छे कार्य के लिए दबाव भी बना सकते है।
यहीं वजह है कि पैसों के दम पर उद्योगपति मनमानी कर रहे है और सरकार में बैठे अफसर-मंत्री उनके सामने दूम हिलाते नजर आ रहे है। छत्तीसगढ़ में उद्योगों के लिए रमन सरकार ने जिस तरह से जमीने व दूसरी सुविधाएं दी इसके एवज में उद्योगों ने इस प्रदेश को क्या दिया। इस पर यहां बाद में चर्चा करेंगे लेकिन राजधानी के दर्जन भर तालाबों की सफार्ई व सौंदर्यीकरण से उद्योगों ने जिस तरह से मुंह मोड़ा है वह गाल में तमाचा मारने से कम नहीं है ।
राजधानी के तालाबों के सौंदर्यीकरण के इस योजना को उद्योगपतियों ने पलीता लगा दिया और आज तालाब के पास रहने वाले लोग परेशान है। उनकी निस्तारी की सुविधा भी सरकार नहीं कर पा रही है तालाबों की गंदगी बजबजाने लगी है और सरकार व नगर निगम यह सोचकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है कि यह सब उद्योगपति करेंगे।
उद्योगपति के यह रूख के पीछे की कहानी क्या है यह तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि उसने सरकार से मिली सुविधा का नगद भुगतान कर दिया है इसलिए वे सरकार मेंं बैठे लोगों को आंख दिखाते है और अवैधानिक व आपराधिक कृत्य में लिप्त है।
छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन राज के आने के बाद उद्योगपतियों की दादागिरी व आपराधिक कृत्य किसी से छिपा नहीें है। अवैध निर्माण,अवैध उत्खनन,पेड़ों की कटाई,जमीन पर कब्जा और दादागिरी चरम पर है लेकिन सरकार को यह सब नहीं दिख रहा है। सरकार को यह सब क्यों नजर नहीं आ रहा है यह तो बाद की बात है। इतनी मनमानी के बाद सरकार जिस तरह से उद्योगों के लिए अपने बनाये कानून को नजरअंदाज या अवहेलना कर रही है यह साबित करता है कि पैसों की ताकत सरकार से बड़ी हो गई है। उद्योगों को जमीन देने जनसुनवाई के नौटंकी से लेकर बिजली बिल की वसूली और टेक्सों में माफी तक दी जाती है लेकिन इतनी सुविधा पाने के बाद भी राजधानी के तालाबों की सफाई जैसे काम में वह पीछे हट जाती है और सरकार के लोग गिड़गिड़ाते रहे तो ऐसी सरकार के होने या न होने का फायदा क्या है।
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