सोमवार, 14 मई 2012

ये कैसा समझौता...


डॉ.रमन सिंह ने कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई में नक्सलियों से समझौते की जो कहानी सुनाई थी वह अब भी तार-तार हो गई है। झूठ सबके सामने है? और नक्सलियों की मार-काट जारी है। सरकार समझौैते के नाम पर माला जप रही है और आम आदमी सोचने मजबूर है कि समझौते क्या हुआ है। क्या सचमुच मेनन की रिहाई में के एवज में रूपयों का लेन देन हुआ है और मिशन 2013 के फतह का खेल हुआ है?
समझौता वार्ता के दौरान नक्सली हिंसा को यह कहकर टालने की कोशिश हुई कि सूचना नहीं पहुंंच पाने की वजह सेे सब हो रहा है लेकिन अब क्या हुआ? सरकार ने क्या समझौता कर लिया है कि कलेक्टर बस को छोड़ दो चाहे जिसे जैसा मारना चाहो छूट है। हम नहीं पकड़ेंगे? और पकड़ेंगे भी तो उन्हें छोड़ देंगे?
वास्तव में डॉ.रमन सिंह नक्सली मामले में पूरी तरह फेल हो चुके है। उनकी सत्ता में बैठने के बाद नक्सलियों ने न केवल अपने क्षेत्र का विस्तार किया है  बल्कि हिंसक वारदातों में भी बढ़ोतरी की है। सलवा जुडूम के बीमारी ने गांव के गांव उजाड़ दिये और डॉ.रमन सिंह व पूरी भाजपा अपनी कमजोरी छिपाने केन्द्र से गुहार लगाकर शब्दो को लच्छेदार चासनी में लपेट रही है।
कलेक्टर के अपहरण का ड्रामा अब खत्म हो चूका है। डॉ. रमन सिंह के सरकार का नया ड्रामा चल रहा है आबकारी एक्ट में बंद गुडिय़ारी के युवक को नक्सली समझौैैते के तहत छोडऩे ड्रामा भी खत्म हो गया है लेकिन नक्सली कोई ड्रामा नहीं कर रहे है वे लगातार मारकाट मचा रहे है। सरकार की नीति से पुलिस का मनोबल कम हुआ है।
ऐसी स्थिति में केन्द्र की खामोशी भी आश्चर्यजनक है। सिर्फ करोड़ो रुपये देकर ऐसा सरकार के  भरोसे जवानो और आम लोगों को छोड़ दिया है जो नक्सलियों को छोडऩे एवज में समझौते  कर रहे है। जान माल की हिफाजत करने में पूरी तरह से असक्षम सरकार के बारे में भी केन्द्र ही नहीं अब तो आम लोगों को भी सोचना होगा कि आखिर सरकार क्यों चूक रही है। इतने लोगो की मौत बाद भी सरकार केवल भाषणों में नक्सलियों से लडऩे का दावा कर रही है। आखिर नक्सली क्यों छोड़े जाने चाहिए? क्या जवानों की कुर्बानी व्यर्थ है या सरकार के कहने पर सलवा जुडूम चलाने वाले बेवकूफ थे। क्या सरकार पर भरोसा करना गलत है? यह सवाल अब चर्चाओं में है और इसका जवाब डॉ.रमन सिंह को देना ही होगा।
                   

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