राज्य बनने के बाद नि:संदेह शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा बढ़ी है लेकिन रमन सरकार की अव्यवस्थित नीति के चलते आम आदमी स्लाटर हाउस में जाने के लिए मजबूर है। सरकार की चिकित्सा सुविधा अव्यवस्था का शिकार है और इसे दूर करने में रमन सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है।
राजधानी में कहने को तो मेकाहारा के साथ जिला अस्पताल व निगम द्वारा संचालित कई अस्पताल है लेकिन यहां अव्यवस्था का यह आलम है कि लोग निजी अस्पतालों की ओर रुख करने मजबूर है। लाखो करोड़ों के उकरण लगाये गए है लेकिन डॉक्टरों की रूचि सिर्फ समय काटने की है या फिर आने वाले मरीजों को कैसे निजी चिकित्सालय में भेजे इसी में रहता है। स्टाफ की कमी तो अपनी जगह है लेकिन निजी चिकित्सालयों से मिलने वाली मोटी कमीशन के चलते यहंा इतनी लापारवाही की जाती है कि मरता क्या न करता के तर्ज पर लोग स्लाटर हाउस की ओर रुख करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ रायपुर में ही हो रहा है पूरे प्रदेश भर के जिला चिकित्सालयों व मेकाहारा व मेकाज मे भी यही हाल है। ऐसा नहीं है कि सरकार में बैठे लोगों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन निजी डाक्टरों से ईलाज कराने वाले अधिकारी व नेताओं को आम लोगों की फिक्र ही नहीं है। निजी अस्पपतालों में मची लूट से आम आदमी त्रस्त है लेकिन व्यवस्था सुधारने में सरकार का ध्यान ही नहीं है।
राजधानी में निजी चिकित्सालयों में मची लूट-खसोट का यह आलम है कि रोज कितने ही परिवार जीते जी मर जाने की स्थिति मे आ रहे है। कर्ज लेकर इलाज कराने के बाद भी डाक्टरों का रवैया जरा भी संवेदनशील नहीं है। रायपुर में डाक्टरी पेशा को जिस तरह से व्यवसायिक रुप देकर लूट की होड़ मची है वह अंयंत्र देखने को नहीं मिलेगा। दवाई,जांच में भी कमीशन खोरी चरम पर है। कई एमआर तो इन डाक्टरों की करतूत का चौक-चौराहों पर जिस तरह से चर्चा करते है वह डाक्टरी पेशा के लिए कलंक से कम नहीं है। दवाई कंपनियों से दवाई लिखने के एवज में न केवल मनमाना कमीशन खोरी की जा रही है बल्कि सेम्पल की दवाई तक बेचने से गुरेज नहीं करते है।
सरकार के मुखिया डाक्टर होने के बाद भी जिस तरह से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था से मुह मोड़ रहे है वह भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ऐसे में आम आदमी स्लाटर हाउस की ओर रुख करने मजबूर है।
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