जिस तरह से छत्तीसगढ़ में रमन राज का काम काज चल रहा है उसके बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ राज क्या इसी दिन के लिए बनाया गया था। जहां तक हमारी जानकारी में छत्तीसगढ़ की मांग की वजह छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा प्रमुख रही है लेकिन राज बनने के बाद भी शोषण जारी है तो फिर आम छत्तीसगढिय़ा कर क्या रहे है। रोज खबरें आ रही है कि किस तरह से छत्तीसगढिय़ों को प्रताडि़त किया जा रहा है। ताजा विवाद नौकरी का है जहां पूरी सरकार साजिशपूर्वक छत्तीसगढिय़ों को नौकरी से वंचित करने में आमदा है। पीएससी से लेकर छोटे-बड़े सभी नौकरी में छत्तीसगढिय़ों को साजिशपूर्वक भगाया जा रहा है और दूसरे प्रांत के लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है। नियमों की अनदेखी कर सरकार में बैठे प्रमुख लोग और अफसर साजिश रचकर छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा कर रहे है और छत्तीसगढिय़ा जनप्रतिनिधि खामोश है।
सिर्फ नौकरी ही नहीं हर क्षेत्र में छत्तीसगढिय़ों की घोर उपेक्षा की जा रही है और छत्तीसगढियों का राज मांगने वाले नेता दो चार सौ के चक्कर में पड़े है। हालत यह है कि बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढिय़ों की जमीनें छीनी जा रही है। यहां तक की नई राजधानी के निर्माण के नाम पर भी केवल छत्तीसगढिय़ों की जमाने छिनी गई और बाहरी लोगों की जमीने बचाने साजिश रची गई।
छत्तीसगढ़ राज निर्माण की प्रमुख वजह को सरकार ने जिस तरह से साजिशपूर्वक दरकिनार किया वह शर्मनाक है। लेकिन इस बारे में अपने को छत्तीसगढिय़ा नेता कहलाने वाले भी खामोश है।
क्या यह नहीं सोचना चाहिए कि आखिर छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा कब तक की जाती रहेगी। क्या कांग्रेस-भाजपा से जुड़े छत्तीसगढिय़ां नेताओं का इस माटी के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है और आम छत्तीसगढिय़ा अपने शोषण के खिलाफ कब खड़े होंगे। ये ऐसे सवाल है जो छत्तीसगढ़ की दशा और दिशा को रेखांकित करते है। छत्तीसगढिय़ों के खिलाफ साजिशपूर्वक जिस तरह से नौकरी से लेकर घर द्वार, खेत खार छिनने की कोशिश हो रही है । और यह कब तक बर्दाश्त किया जा सकता है।
सारे नियमों को दरकिनार कर लूट-खसोट में लगी सरकार ने जिस पैमाने पर जल-जंगल और जमीन को नुकशान पहुंचाया है वह अंयंत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है और आम छत्तीसगढिय़ा के बजाय बाहरी को प्राथमिकता से छत्तीसगढ़ अपराधगढ़ बनता जा रहा है
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