अब जाकर सही मायने में अपना रायपुर राजधानी बना है वरना रायपुर को जानता कौन है। नक्सली आतंक की घटना बस्तर में होता थी और लोग बेवजह रायपुर का नाम लेते है। नेशनल वालों को मालूम नहीं है कि रायपुर से बस्तर इतनी दूर है और वहां चल रहे नक्सली मार-काट का यहां कोई लेना देना नहीं है लेकिन वे तो पेले पड़े है।
रायपुर अब जाकर राजधानी का शक्ल अख्तियार कर रहा है। अब दूसरी राजधानी के तरह यहां भी गोलियां चलने लगी है। बलात्कार,लूट,डकैती,चोरी बढ़ गई है और अब हमे भी नेशनल खबर में आने से कोई नहीं रोक सकता।
नेशनल खबर में रायपुर को लाने के लिए राजधानी वासियों को सरकार और पुुलिस विभाग को धन्यवाद करना चाहिए लेकिन लोग बेवकूफ है बेवजह सरकार को कोस रहे है। कानून व्यवस्था को बदतर कहना सरकार को गाली देना है जबकि इसमें पुलिस का क्या दोष है। उनका सारा वक्त तो नेताओं और अधिकारियों की खुशामद में गुजर जाता है इस सबके बीच समय बचा तो यातायात सुधारने में लग जाता है। यातायात सुधारे जयेंगे तो वसूली भी जरूरी है आखिर सरकार इतनी तनख्वाह नहीं देती कि घर-परिवार चलाया जा सके।
आजकल बेवजह कोसने का चलन बढ़ गया है। हर आदमी अपना फ्रस्टेशन सरकार पर निकालता है और पुलिस तो मानों गाली खाने के लिए ही बना है। अपना फ्रस्टेशन निकालने में लोग भूल जाते है कि पुलिस के पास कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि नक्सलियों की हथियार तस्करी की खबर उसे लग जाये। और फिर भंडाफोड़ तो पुलिस ने ही किया चाहे वो हैदराबाद के ही क्यों न हो। लेकिन लोग यहां भी मीन मेख निकालने में लगे रहते है।
राजधानी वालों को समझना चाहिए कि यहां पुलिस का काम केवल जूआं सट्टा पकडऩा बस नहीं है या आपराधियों को पकडऩे बस का काम नहीं है। राजधानी में जरूरी काम तो वीआईपी ड्यूटी का सफल संचालन है। और राजधानी की पुलिस का परफारमेन्स का जवाब नहीं है। दूसरी जगह मंत्री चप्पल खा रहे है हमारे यहां पुलिस के रहते किसी की मजाल नहीं है। रहा सवाल गोली,हत्या,लूट, डकैती का तो सबका एक साथ भंडाफोड़ कर देंगे कोई पकड़ में तो आये। राजधानी के साथ यह बुराई आती ही है परेशान होने की जरूरत नहीं है। जब राजधानी मांगते समय नहीं सोचा तब अब क्यों जबरिया पुलिस को गाली दे रहे है।
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