बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मिला मौका, मारा चौका

 छत्तीसगढ़ के अखबारों में इन दिनों जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। एक दूसरे से आगे नि·लने की होड़ के बीच दैनिक भास्कर और पत्रिका में जंग छिड़ चुका है। कौन आगे है यह आम जनता समझ भी रही है लेकिन एक दूसरे के खिलाफ कोई मौका नहीं छोडऩे की हठ ने पाठकों को नई खुशी दी है। दैनिक भास्कर का नाम 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आते ही पत्रिका की बांहे खिल गई उसने भी मसालेदार खबर तैयार की और दैनिक भास्कर ग्रुप और रमेश अग्रवाल के इस तरह से कपड़े उतारे मानों वे दूध के धूले हो। पत्रिका किस तरह से दूध का धूला है यह तो वही जाने लेकिन भास्कर फिलहाल चुप है। तूफान के पूर्व की शांति।
विज्ञापन और आत्मा
पिछले दिनों कलकत्ता से आए कुछ लोगों ने प्रेस क्लब में संगोष्ठि रखी कि मीडिया ने विज्ञापन के लिए अपनी आत्मा बेच दी है। आयोजकों को उम्मीद थी कि इस बहस का असर होगा लेकिन यहां के संपादक कम खाटी नहीं है वे यह साबित करने में लगे रहे कि विज्ञापन का दबाव होता जरूर है पर इतना नहीं कि आत्मा बिक जाए।
रंगा-बिल्ला की करतूत
कहते हैं शहर का सर्वाधिक प्रसारित इस अखबर में जब से बिहारी बाबूओं ने डेरा जमाया है तब से ठेके में चले जाने की चर्चा आम हो गई है अब तो इस अखबार के रिपोर्टर तक हैरान है कि सरकार तो छोडि़ए पैसे वाले कांग्रेसियों के खिलाफ भी खबर नहीं छापी जा रही है सीधे सौदा किए जा रहे हैं।
असहायों से भी कमाई
कभी आयुर्वेद का प्रचार करते करते अखबार लाईन में आए इस मैनेजमेंट वाले का कोई जवाब नहीं है। सारा संसार अखबार में आते ही बड़े बड़ों से सेटिंग की और जब लगा कि मालिक निकालने वाले है तो अपनी दुनिया बसा ली। यहां भी वे अपनी हर·त से बाज नहीं आ रहे हैं कहते हैं अखबार का प्रभाव दिखा·र वह असहायों से कमाई की आकांक्षा पाले हुए है और इसके लिए अपनी पत्नी को हथियार बना रहे हैं।
पुसदकर का स्वदेश प्रेम
प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदvर ने स्वदेश ज्वाईन कर लिया है। संपादक बन गए है और समय भी देने की कोशिश में है पर कितना दिन। आखिर वहां भी तो एत से एत बरकर है।
और अंत में...
लोग जबरदस्ती जोसेफ जी का उदाहरण देते है अब पाण्डे जी भी आ गए हैं संदर्भ ग्रंथ लेकर।

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