अब इनकी भी सुन लो…
भारत और पाकिस्तान के बीच अप्रत्याशित सीजफायर ने कई लोगों को चौंका दिया है. सरकार के इस फैसले पर मशहूर जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने भी सवाल उठाए हैं.
चेलानी ने कहा भारत जीत की दहलीज पर था, लेकिन अंत में मन मसोस कर रह गया. युद्धविराम पर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि भारत इतिहास से सीखने में विफल रहा है. सिर्फ पिछली रणनीतिक गलतियों को दोहरा रहा है. सैन्य गतिविधि भारत के पक्ष में थी. पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा भारत की अपेक्षा से कहीं अधिक कमजोर साबित हुई. वे भारत में बहुत सारे ड्रोन और मिसाइल भेज रहे थे, लेकिन प्रभावी रूप से नहीं. दूसरी ओर भारत ने सीमित संख्या में मिसाइल और ड्रोन भेजे और अपने लक्ष्यों को भेदने में सक्षम रहा.'
ब्रम्हा चेलानी ने सैन्य रूप से स्पष्ट बढ़त रखने के बावजूद भारत के तनाव कम करने के निर्णय के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, 'यह जीत के मुंह से हार छीनने की भारत की पुरानी राजनीतिक स्थिति को रेखांकित करता है.' उन्होंने आश्चर्य होते हुए कहा कि भारत ने तनाव कम करने का फैसला क्यों किया.
चेलानी ने मौजूदा स्थिति की तुलना पिछले उदाहरणों से की, जहां उनके विचार में, भारत ने स्थायी रणनीतिक लाभ हासिल किए बिना सैन्य या कूटनीतिक लाभ को आत्मसमर्पण कर दिया. 2021 में हमने रणनीतिक कैलाश हाइट्स को खाली कर दिया, बातचीत में अपनी एकमात्र सौदेबाजी चिप को खो दिया और फिर हम लद्दाख क्षेत्रों में चीनी-डिजाइन किए गए बफर जोन और अब ऑपरेशन सिंदूर पर सहमत हुए.'
चेलानी ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर में 26 हत्याओं का बदला लेने का एक शक्तिशाली प्रतीक था और फिर भी आज जिस तरह से हमने पाकिस्तान द्वारा दिल्ली पर मिसाइल दागे जाने के बाद इस ऑपरेशन को समाप्त किया, उससे कई सवालों के जवाब नहीं मिले.' चेलानी ने कहा, 'इतिहास आज भारत के निर्णय को अच्छी तरह से नहीं देखेगा.'
उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के समापन को रणनीतिक और प्रतीकात्मक चूक बताया, जो जवाब से अधिक सवाल उठाती है.
करगिल युद्ध के नायक तत्कालीन सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक सीजफायर के ऐलान के बाद कहा - '22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भयावह पाकिस्तानी आतंकी हमले के बाद भारत ने सैन्य और असैन्य कार्रवाइयालेकि, लेकिन इनसे कोई राजनीतिक या रणनीतिक लाभ मिला भी या नहीं- यह सवाल हमने भविष्य के इतिहास पर छोड़ दिया है।'
यह सच भी जान लें
परमाणु अप्रसार संधि 1970 में लागू की गई थी भारत ने इसे भेदभाव पूर्ण करार दिया और संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे ।
जिसकी वजह से आज भारत के पास अपनी आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियार है । कितना दबाव था जब 1971 में युद्ध दो मोर्चा पर भारत की सेना लड़ रही थी ।
आज भी 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के आतंकवादी समर्थक ठिकानों पर सेना ने हमले करके । पाकिस्तान और आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब दिया है सेना के शौर्य पर कोई सवाल नहीं है।
लेकिन युद्ध विराम करना था तो पाकिस्तान पर जोरदार प्रहार के बाद करते।
भारतीय सेना मजबूत स्थिति में थी तो राजनीतिक नेतृत्व क्यों युद्ध विराम के लिए जल्दबाजी में राजी हो गया, जबकि हमले की शुरुआत पाकिस्तान ने की थी । यही हमारा सबसे मजबूत पक्ष था । हमारे लोग मारे गए थे ।
इसके विपरीत शिमला समझौते की शर्तों को तोड़ने में पाकिस्तान कामयाब रहा क्योंकि तीसरे की मध्यस्ता के बिना द्विपक्षीय समझौते से कश्मीर समस्या को हल करना था ये शर्ते भारत ने लगाई थी और पाकिस्तान इस शर्त को तोड़कर इसमें तीसरे अमरीका की घुसपैठ करवाना चाहता था ताकि भारत पर दबाव बनाया जाए।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस चालाकी को समझा और दोनों पाकिस्तान और अमेरिका को कड़ा जवाब दिया था । आज प्रधानमंत्री मोदी ने इस समझौते में अमेरिका को जवाब देने के बजाय तीसरे पक्ष को न जाने किस दबाव में स्वीकार किया है । शायद भविष्य में गोदी मीडिया इसका खुलासा कर पाए ।
लेकिन इस सब से हटकर देश के मीडिया संस्थान की खबर देखिए तो 22 अप्रैल के बाद फर्जी खबरों की बाढ़ सी चली है । फिर से वही सत्तासीन नेताओं के बचाव के लिए झूठे प्रोपेगैंडा की स्क्रिप्ट लिख दी गई है । उसे फैलाने का काम मंडली पूरे जोर से लग चुकी है ।
यह सवाल पूछने के बजाय कि युद्धविराम भी कुछ शर्तों पे किया जाता की
_पहलगाम हमले के
हमलावरों की भारत को सौंप दिया जाए
सीमावर्ती इलाकों में भारत के खिलाफ कोई आतंकवादी घटना न हो इसके लिए सुरक्षात्मक उपाय तकनीक के इस्तेमाल की शर्त लगाई जा सकती थी
पाकिस्तान अंतराष्ट्रीय मदद
का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता है उस विषय पर अंतराष्ट्रीय समर्थन हासिल कर पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद में रोक लगाई जा सकती थी ।
पाकिस्तान की सेना ही आतंकवाद की समर्थक है इस विषय को वैश्विक मंच पर रखकर पाकिस्तान समर्थित आतंक पर लगाम लगाई जा सकती थी
इन शर्तों पर युद्ध विराम होता तो भी भारत का मजबूत पक्ष वैश्विक स्तर पर उभर कर आता
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यही बहुत चिंता की बात है ।
अमेरिका ने अपने व्यापारिक हित को महत्व दिया , पाकिस्तान शिमला समझौते की शर्त जिसमें की द्विपक्षीय वार्ता की शर्त भारत की थी उसको तोड़ कर अमेरिकी दबाव से युद्ध विराम अपने पक्ष में करता दिखता है ।
लेकिन हमें क्या हासिल हुआ, गोदी मीडिया का झूठ, फर्जी खबरें बस यही परिणीति है क्या 140 करोड़ देशवासियों की, भारत बहुत सी आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक चुनौतियों से जूझ रहा है ।
लेकिन पाकिस्तान की तरह भिखमंगिरी भारत ने नहीं की है। भारत अपने दम पर आजाद हुआ और तमाम मुश्किलों के बावजूद आज एक मजबूत राष्ट्र बन कर खड़ा है तमाम अवरोधों, स्वार्थी राजनीति, के बावजूद 140 करोड़ भारत
वासी स्वार्थी राजनीति और आतंकवाद से आज, कल और भविष्य मे भी टकराने को तैयार है ।
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