संसद का विशेष सत्र बुलाने से डर गई मोदी सरकार…
ढाई सौ सांसदों ने जब मोदी सरकार को संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग लिखित में की तो सरकार ने साफ़ मना कर दिया, क्यों? सरकार का यह फ़ैसला इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि परिस्थितियाँ सामान्य नहीं है, आतंकवादी अभी भी नहीं पकड़े गये है, सीजफ़ायर क्यों और कैसे हुआ, भारत की कूटनीति इतनी कमजोर क्यों, और सबसे बड़ा सवाल राफ़ेल को लेकर है। तब सत्र नहीं बुलाने को लेकर विश्लेषण ज़रूरी हो जाता है…
पहलगाम के बाद सीजफ़ायर को लेकर ट्रंप के मुद्दे पर सरकार बुरी तरह घिर गई है! अमेरिकन मध्यस्थता को लेकर ट्रंप के लगातार बयानों से सरकार बैक फुट पर है! और इसका जवाब सरकार के पास नहीं है !क्योंकि आधिकारिक रूप से सीज फायर की घोषणा होने के पहले टेंप ने यह घोषणा कर दी थी, अगर इसे स्वीकार किया जाता है तो राहुल गांधी का वह नॉरेटिव भारतीय जनता पार्टी और मोदी जी की सरकार के आभा मंडल को धूमिल कर देगा क्योंकि फिर पूरे देश में गूंजेगा
,फ़ोन आया, नरेंद्रर , हो गये सरेंडर
शायद सरकार इस बात से भी भयभीत है की संसद में बहुत सारे सवाल पूछे जाएंगे और यदि उनके जवाब टाले या गलत जवाब दिए गए और वह सिद्ध हो गए तो पूरे देश में सरकार की बड़ी थू थू होगी!
कुछ तथ्य तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया के द्वारा जाहिर कर दिए जाने की वजह से चर्चा में है लेकिन ऐसा माना जाता है कुछ तथ्य अभी भी ऐसे हैं जिन्हें सरकार बताना नहीं चाहती और ससद बुलाने के बाद उन पर चर्चा होना अनिवार्य हो जाएगा!
और वह सब सरकार का नॉरेटिव खराब करेगी दरअसल पहलगाम के बाद इस सीमित स्ट्राइक के बाद सरकार एक राष्ट्रवाद का मुद्दा पूरे देश में भुनाना चाहती थी,
पुलवामा के विपरीत इस बार सरकार कामयाब नहीं हो सकी! कुछ स्थितियां ऐसी बनी जो सरकार के विश्लेषण के बाहर थी! प्लान असफल हो गया!
इस योजना के तहत ही इस विवादास्पद स्ट्राइक के बाद मोदी जी प्रदेश प्रदेश स्वयं की पीठ थपथपाने लगे और राष्ट्रवाद का माहौल बनाने लगे लेकिन जिस तरह सारे देश ने घर-घर सिंदूर योजना पर रिएक्ट किया जिस तरह भारतीय जनता पार्टी की तिरंगा यात्राओं को समर्थन नहीं मिला और मोदी जी की सभाओं के बाद भी राष्ट्रवाद का यूफोरिया नहीं बना, तो सरकार को लगने लगा यह *मुद्दा बैकफायर* कर रहा है !
मोदी जी के एजेंडे में ना देश की विदेश नीति थी ना देश की कूटनीति थी ना देश की अर्थव्यवस्था थी और संसद बुलाने के बाद इन 12 सालों में यह पहली बार था जब उन्हें जवाब देना पड़ता इन सारी असफलताओं का जिन्हें अक्सर वह आपदा में अवसर की बात से खारिज करते हैं!
मोदी जी की एक शैली है आम आदमी से कनेक्ट करने की जिसमें वह पूरी तरह से कामयाब रहे लेकिन वर्तमान संदर्भ इस आभामंडल को भी अपने नॉरेटिव से प्रभावित करते हुए नजर आ रहे हैं!
जो एक भ्रामक इमेज अपने खरीदे हुए मीडिया से मोदी जी भारत की बनाना चाहते थे उसका कितना दुष्प्रभाव पड़ा है एक आभासी इंफ्रास्ट्रक्चर की बात पूरे विश्व में की गई एक आभासी अर्थव्यवस्था के नाम पर हिंदुस्तान के उत्कृष्टता की बात पूरे विश्व में की गई , जबकि स्थितियां देश में अनुकूल नहीं थी बेरोजगारी बढ़ रही थी महंगाई बढ़ रही थी रुपया गिर रहा था मुद्रास्फीति बढ़ रही थी लेकिन बात चौथी इकोनॉमी की जाती थी, विश्व गुरु की की जाती थी, तेजी से विकसित होते एक आधुनिक भारत की बात की जाती थी लेकिन जहां आज भी तकनीक के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करना पड़ता है! और इसी भ्रामक इमेज की वजह से भारत विश्व राजनीति का शिकार हो गया क्योंकि पूरी विश्व राजनीति इस समय व्यापार पर आधारित है? और संपन्न राष्ट्र किसी और को अपने बराबर देखना पसंद नहीं करते इसलिए आज भारत चीन की भी आंख की किरकिरी है अमेरिका की भी, और रूस ने भी उसे एक सम्मानजनक दूरी बना रखी है! और वहीं पाकिस्तान को अमेरिका भी आशीर्वाद दे रहा है और चीन भी दूध पिला रहा है!
ससद बुलाने के बाद यह *आभासी इमेज* दरक कर गिर जाती, उनका जो वास्तविक चित्र है इस आभासी इमेज के आगे बहुत छोटा पड़ जाता और शायद सत्ताधारी दल यह नहीं चाहता था इसलिए सवालों से बचने के लिए उसने संसद बुलाना उचित नहीं समझा!
सत्ताधारी दल बिहार चुनाव तक स्थितियों की अनुकूलता चाहता था वह नहीं चाहता था कि देश की मानसिकता किसी नए नॉरेटिव की ओर आगे बढ़ने लगे,
क्योंकि संसद में
*सामाजिक जनगणना* को लेकर भी सवाल किए जाते !
चुनाव के पहले सरकार इनसे बचाना चाहती थी! वह नया नॉरेटिव बनाने की कोशिश करेगी ससद बुलाने के पहले बच्चे हुए दिनों में नॉरेटिव को अपना अनुकूल बनाने के लिए!
और इस सबके अलावा सबसे बड़ा सवाल होगा राफ़ेल पर।राफेल इस पूरी स्ट्राइक में विवादास्पद रहा है लेकिन जिस तरह कांग्रेस सरकार का सौदा खारिज कर कर मोदी जी की सरकार ने ऊंचे दामों पर राफेल का सौदा किया था लेकिन उसके बावजूद तकनीकी स्थानांतरण की सहमति नहीं ली गई थी और उसके बाद जब अभी इतनी विपरीत परिस्थिति में भी एसॉल्ट कंपनी ने राफेल का सोर्स कोड देने से भारत को इनकार कर दिया और भारत के राफेल का गिरना न गिरना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि भारत में भी चर्चित रहा उसके बाद सरकार को यह भी लगता था यदि संसद बुलाई गई तो उसके ईमानदार चेहरे को भी वैसे तो वह बचा नहीं है लेकिन शीर्ष पर भी आरोपों की बौछार की जाएगी इन स्थितियों में तोउसका बचना बहुत मुश्किल हो जाता!
ऐसी परिस्थिति में सत्ता ने सत्र से भाग जाने के निर्णय को उचित समझा।(साभार)
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