न्याय पर भरोसा दिलाती-नीरू…
आज के इस दौर में जब न्याय व्यवस्था को लेकर कितने ही सवाल उठ रहे हो, पैसों और रसूख़ के दम पर न्याय को अपने पाले में कर लेने को लेकर उठते सवाल हो या राष्ट्रहित में न्याय का फ़ैसलो तक पहुँचने से पहले दम तोड़ देना। ऐसे में मलयालम में बनी फ़िल्म नीरू में कोर्ट रूम के ड्रामे के बीच जज का फ़ैसला कम से कम न्याय पर भरोसा दिलाती तो है…
यह कहानी है कि एक ऐसी अंधी लड़की की जिसके साथ बलात्कार होता है, अपराधी इतने शातिरपने से अपराध करता है कि कोई सबूत नहीं छोड़ता. लेकिन अपराधी को पता नहीं होता कि वह अंधी लड़की एक बेहतरीन स्कल्पचर आर्टिस्ट है.
अपराध के क्षणों में कोई भी व्यक्ति अपनी सुध-बुध खो सकता है, लेकिन कहते हैं कि जब प्रकृति आपसे कुछ छीन लेती है तो उसके बदले दूसरे अंग अधिक सक्रिय हो जाते हैं, स्पर्श और सुनने की अद्भुत क्षमता के कारण वह उस पीड़ित समय में अपराधी की शक्ल का जायजा ले लेती है.
अपराधी का जब कोई पता नहीं चलता तब यह अंधी लड़की उस अपराधी की हूबहू मूर्ति बनाती है, जिससे वह पुलिस के गिरफ्त में आ जाता है. लेकिन इसके बाद भी अपराधी के रसूखदार होने के कारण बहुत से छल प्रपंच फिल्म में देखने को मिलते हैं.
कई सारे घटनाक्रम होने के बाद अदालत में कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता तब पीड़िता के पक्ष में लड़ने वाले वकील कोर्ट में यह दलील रखते हैं वह अंधी लड़की की कला पर भरोसा रखकर एक नज़ीर पेश की जाएं. जज इसकी अनुमति देते हैं और अंत में यह केस एक उदाहरण बन जाता है.
यह फिल्म न्याय में किया गया एक अद्भुत प्रयोग है और ऐसे ही प्रयोगों के कारण न्याय पर भरोसा बढ़ जाता है. यह फिल्म न्याय के लिए एक प्रयोग के तौर पर याद रखी जा सकती है. कानून के सारे दाव पेंच जब न्याय दिलाने में असमर्थ हो जाते हैं तब कला यह साबित करती है कि कला सिर्फ़ रोमांटिसिज्म नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन का आधार है और अपराधी तक पहुंचाने का जरिया बन सकती है. (साभार)
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