मंगलवार, 8 जनवरी 2013

टंगिया के बेट...


तहिया के एक ठन किस्सा हे। लकड़ी काटे बर जब टंगिया बनाए गीस त जंगल के रूख-राही मन ह डर के मारे बईठका करीन। जम्मो झन के एकेच गोठ रीहिस अब का होही। हमर जिनगी के का होही। जंगल ह कइसे बाचही। अऊ जंगल नई रही त ये दुनिया के का होही। जेखर बोले के पारी आय तउने ह टंगिया उपर अपन गुस्सा उतारय। अऊ टंगिया बनईया ल घलो पानी पी पी केे गारी देवय। टंगिया बनाय ल रोके के उदीम घलो सुना डरीन।
तब एक ठन डोकरा पेड़ ह जम्मों झन ल चुप कराके कहिन। जतका फिकर तुंहला हे वतका महु ल हे। मैं जानथव टंगिया ह जंगल के जंगल ल उजाड़ दिही। हमर मन के जिन्दगी ह खतरा म पड़ गे हे। मैं ह त अपन जिनगी जी डारेव फेर मोर एक बात ल गांठ बांध के रख लव के एं टंगिया ह हमर तब तक कुछु नई बिगाड़ सकय जब तक के हमरे बीच के कोनो ह ओखर बेट नई बनही। टंगिया के जेन दिन बेट बनंहु उही दिन तुंहर मुसिबत हो ही।  छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढिय़ा के बारा साल म जेन हाल होय हे ओखर असली वजह इही हे। परबुधिया मन ह टंगिया के बेट बन के अपने ल काटत हे अऊ मिठलबरा मन ह मजा करत हे। सरकार ह दिल्ली म जा के कतको इनाम पा लय लेकिन इहां चलत लूट खसोट ह सब ल दिखत हे। करीना कपुर ल नचाय खातिर करोड़ों रूपया फंू कत  हे लेकिन अस्पताल नई बनावत हे। उद्योग मन ल जमीन दे खातिर ख्ेाती ल बरबाद करत हे लेकिन शिक्षा के व्यवसाय बर उंखर तीर पइसा नई हे।
लोटा लेके अवइया मन ह रातो रात बंगला तान दिन सौ-दू-सौ एकड़ के किसान बन गीन, फेक्टरी खोल दिन अऊ मोटर गाड़ी म घूमत हे। शहर ल चकाचक करत हे अऊ गांव के गली ह आज ले पयडगरी ले नई उबर पाय हे।  ये सब काबर होवत हे। शहर म अपराध बाढ़ गे। कोन हे एखर जिम्मेदार। राज बनीस त सोचे रीहिन के अब तो छत्तीसगढिय़ा मन के भाग लहुटही, गांव-गांव म स्कूल अऊ अस्पताल खुलही। इहां के पढ़े लिखे लइका मन ल नौकरी मिलही। लेकिन बारा साल म बारा हाल होगे।
इहां के जंगल, खदान पानी तरीया नदिया गोठान सब ल बेचे के उदीम होय लागिस। एखर विरोध करईया मन उपर लाठी बरसत हे अऊ ए काम म टंगिया के बेट बने छत्तीसगढिय़ा मन ह सहयोग करत हे।  मिठलबरा मन के चक्कर म अतका मोहा गे हे के न त उनला कोईला पोताय चेहरा दिखत हे न बरबाद होवत खेती के जमीन दिखत हे। पद अऊ पईसा के लालच म आंखी तोप ले हे। न त उनला अपन पुरखा के बानी के सुरता हे अऊ न त उनला छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा ले मतलब हे।  एक बात जम्मो झन कान खोल के अपन धियान म बईठा लेवय के माटी के काया माटी म मिल जथे लेकिन सुरता ओखरे करे जाथे जेन ह अपन माटी बर कुछु करथे। करनी के भरनी ल इही जनम म दिखथे। अऊ कईझन के दिखत घलो हे।

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