शनिवार, 19 मार्च 2016

आतंकी की भाषा बनते विरोध के स्वर

क्या सरकार के बजट और मौसम की गर्मी का कोई सीधा सम्बन्ध है? यह सवाल कई लोगो के जेहन में पिछले कुछ सालों से उठ रहा हो तो कोई आस्चर्य नहीं है।  बजट आया और पहले ही दिन विरोध का स्वर उठने लगा , सरकार ने सूत-बूट के इतर इसे गरीब किसानो का बजट बताया।  फिर भी ईपीएफ के निकासी पर ब्याज को लेकर उसे बैकफुट पर जाना पड़ा।
अप्रैल से सरकार के बजट का असर शुरू हो जायेगा, गर्मी के मिजाज की तरह।  पिछले कुछ सालो से आम आदमी भी यह मन बैठा है कि बजट के बाद मंहगाई बढ़ेगी ही. कर्मचारियों के दबाव में ईपीएफ निकासी में ब्याज वापस ले ली गई, परन्तु अब जमा राशि में कटौती की घोसना कर दी गई. इतना ही नहीं छोटे और माध्यम श्रेणी के उन तमाम लोगो के ब्याज दर में कटौती कर दी गई जो किसी तरह रो-गाकर थोड़े पैसे जमा कर पाते थे.
सरकार के  छोटे और मध्यम श्रेणी आय वर्ग की जेब से पैसे निकलने की यह योजना से वे लोग भी हैरान होंगे जो जेएनयू  जाकर सरकार के अच्छे कार्यो को देखने की सलाह देते अच्छे कार्यो को लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सीधी लकीर देखने की वकालत कर रहे थे. सरकार के कसीदे गड़ने के लिए जेएनयू तक पहुचने वाले फिल्म अभिनेता अनुपम खेर को कम से कम वित्त मंत्री के दफ्तर जाकर पूछना    चाहिए कि आखिर  छोटी बचत पर  ब्याज दर में कटौती की जरुरत   क्या  है?
भुखमरी और  बेरोजगारी  के साथ भारत  आज़ादी के सवाल  सवाल  करनेवालो को  पूछना    चाहिए कि हर साल जिस तरह से गरमी तपती ही जा रही है वैसे ही हर बजट के बाद  महंगाई क्यों  है ?    ईपीएफ के निकासी पर ब्याज के फैसले  वापस   लेने वाली सरकार बचत में ब्याज दर कम कर क्या मध्यम वर्ग से  बदला नही ले रही है.
 फिल्म अभिनेता अनुपम खेर उन चंद भाग्यशाली लोगो में होंगे जिनके घरो में आज़ादी के स्वर नही गूंजते वरना कोख से भी बेटियों में  आज़ादी के स्वर सुनाई  है. औरतो और बच्चो की प्रताड़ना से लेकर स्कूल नही जाकर काम करने की मज़बूरी में आज़ादी  सुनाई देते है।  घर में  नही सुन पाने  फिल्म अभिनेता अनुपम खेर को देश में आज़ादी  के स्वर इसलिए बुरा लगता है क्योंकि उन्होंने एक विशेष नंबर का चश्मा पहन रखा है. वे अप्रेल में  साल दर  साल तपती गर्मी भी कंहा महसूस करते होंगे?वे समृद्धि के टापू से बाहर ही नही  जाना चाहते?
कितने किसान और  मध्यम श्रेणी आय वर्ग के परिवार के लिए दो जून का खाना जुटाना दिनों-दिन कठिन होता जा रहा है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक विकास की लकीर इण्डिया और  भारत हो गया है यह सब सत्ता के एयरकंडीशन में बैठकर नही देखा    जा सकता. सरकार ने छोटी बचत में ब्याज दर घटाने के लिए इन बचतों को बाजार दरो के समतुल्य के जो  तर्क दिए है और इसे एकमात्र उपाय बताया है वह बचपना है।
विगत वर्षो में महंगाई बड़ी है।   महँगाइयो को विश्व बाजार में आई मंडी से जोड़ा गया।  कल तक महंगाई बाप- रे- बाप! कहने वाले विशेषज्ञ अब सरकार के एयरकंडीशन  कमरे में छूप कर बैठ गए है। सत्ता की ठंडकता के घुंघरू  उनकी वाणी में उलझ गए है,अच्छे दिन की आस जुमलेबाजी हो चली है और  अप्रेल आते आते जब सूरज और तपेगा  तब बजट का असर इस्पात की भट्टी की तरह महसूस होगा और सरकार सौतेली माँ नज़र आएगी। और इसके बाद उठने वाले विरोध के स्वर को आतंकी की भाषा करार दिया जायेगा।


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