सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

झूमा-झटकी

बदलापुर...
कहते हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुंदक पाल कर चलने वाले नेता हैं और वे उन लोगों को कभी नहीं छोड़ते जो उनसे टेढ़ापन दिखाने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि डॉ. रमन सिंह इन दिनों परेशान है। दरअसल नरेन्द्र मोदी ने बहुत पहले ही डॉ. रमन सिंह को राÓय की राजनीति छोड़ केन्द्र में आने का न्यौता दिया था लेकिन मुख्यमंत्री के रुतबे की वजह से उन्होंने तब मोदी जी को न कर दिया था और फिर छत्तीसगढ़ में पराजय के बाद जब डॉक्टर साहब ने राÓय की ही राजनीति करने की घोषणा की तो मोदी जी को यह नागवार गुजरा और उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर दिल्ली बुलवा लिया। हार के सदमें से अभी वे उबर ही नहीं पाये थे कि इस नये उलटफेर ने उन्हें सकते में ला दिया और वे चुपचाप स्वीकार कर दिल्ली अधिवेशन में शामिल हो गए।
गुरता का हिसाब चुकता
कभी अजीत जोगी के शासन काल में ताकतवर पुलिस अफसर रहे मुकेश गुप्ता ने जब रायपुर एसएसपी रहते हुए भाजपाईयों के हाथ पैर तुड़वाये तब सत्ता बदलते ही उनके लूपलाईन में जाने का कयास लगाया जा रहा था लेकिन भाजपा सरकार में भी मुकेश गुप्ता ताकतवर बने रहे। हालांकि मार खाये भाजपाईयों की चाहत रही थी कि गुप्ता जी के खिलाफ कार्रवाई हो लेकिन रमन राज में जब अफसरशाही हावी हो तो गुप्ताजी जैसे अफसरों का कोई कैसे कुछ बिगाड़ सकता था लेकिन 15 साल का राज समाप्त हुआ तो पहली गाज मुकेश गुप्ता पर ही गिरी। इस कार्रवाई से जहां कांग्रेसी खुश है वहीं भाजपा का एक बड़ा वर्ग भी जश्न मना रहा है।

अमितेष का दर्द...
कभी प्रदेश और देश की राजनीति के प्रभावशील माने जाने वाले शुक्ल परिवार के इकलौते राजनीतिक वारिस अमितेष शुक्ल को इन दिनों अपने अस्तित्व के संकट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है तो इसकी वजह वे स्वयं है। पिछला चुनाव हार जाने के बाद तो जैसे सब कुछ समाप्त माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस ने राजनैतिक विरासत के नाम पर टिकिट दी और कांग्रेस की लहर के चलते वे जीत भी गए। लेकिन मंत्री  बनने की ई'छा पूरी नहीं हो सकी।
अमितेष के साथ ऐसा अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भी हो चुका है जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने चाचा-पापा का खेल अमितेष के साथ खूब खेला था लेकिन इस बार तो सब कुछ विपरीत ही दिखाई दे रहा है और यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में अमितेष की राजनीति को भी ग्रहण लगना तय है।
पैसे का प्रभाव
कोरबा से विधायक चुनकर आने वाले जयसिंह अग्रवाल का मंत्री बन जाना सबके लिए आश्चर्य का विषय था लेकिन जो लोग बिलासपुर की राजनीति को नजदीक से देख रहे थे उनके लिए यह हैरानी से Óयादा महंत की ताकत का आकलन का मौका था। दरअसल सोशल मीडिया के जमाने में कुछ भी चीज छुपाना आसान नहीं रह गया है फिर प्रदेश की राजनीति में कौन किसके साथ और किस दम पर है यह बात तो और भी आसानी से जाना जा सकता है। छत्तीसगढ़ी अभियान में जयसिंह के मंत्री बनने को लेकर तो सवाल किये जाते ही रहे, मंत्री बनने की वजह को लेकर भी दिलचस्प कारण गिनाये गये। जयसिंह के लिए दिक्कत यह है कि वे अपने पैसे के प्रभाव को नकार भी नहीं सकते।
प्रमोद का पीड़ा...
यह तो खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा दो रुपये का वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना लोकसभा चुनाव लडऩे को इ'छुक प्रमोद दुबे को लेकर इन दिनों इस तरह की चर्चा नहीं होती।
अपनी वाक पटुता और न काहू से दोस्ती न काहू से बैर की तर्ज पर छात्र राजनीति से राजधानी के महापौर पद तक पहुंचने वाले प्रमोद दुबे के सामने लोकसभा की टिकिट को लेकर जिस तरह की चर्चा है वह प्रमोद दुबे के लिए भी चिंता का सबब बनता जा रहा है।
दरअसल कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ चुनाव लडऩे से मना करने की वजह से इस चर्चा को बल मिल रहा है कि उनकी टिकिट की राह में सेटिंग कहीं रोढ़ा न बन जाए। अब प्रमोद दुबे सफाई देने मजबूर है फिर चर्चा यह भी है कि एक बार मना करने वाले की मुसिबत कभी कम नहीं हुई है और राजनीति के जानकार सोमनाथ साहू का उदाहरण रखने से भी गुरेज नहीं करते।

न राम मिली न माया
क्षे
त्रीय पार्टी बनाकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में किंग मेकर बनने की चाह रखने वाले अजीत प्रमोद जोगी की स्थिति इन दिनों न राम मिली न माया की तरह हो गई है। जकांछ सुप्रीमों को यह भरोसा था कि कांग्रेस और भाजपा को किसी भी हाल में बहुमत नहीं मिलेगी और वे 5-7 जीतकर किंग मेकर की भूमिका में होंगे लेकिन कांग्रेस की लहर ने उनका सारा गणित बिगाड़ दिया यहां तक कि उनकी बहु ऋचा जोगी भी चुनाव हार गई। ऐसे में भले ही वे राष्ट्रीय पार्टी बनाकर खुश हो रहे हो लेकिन पार्टी के भीतर जिस तरह से बवाल मचा है और पार्टी से जुड़े लोग कांग्रेस का दामन थाम रहे है वह उनके लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है। हालत यह है कि उनके साथ जुड़े पूर्व विधायक ही नहीं कुछ वर्तमान विधायक भी पार्टी दफ्तर जाना छोड़ दिये हैं।


दामाद बाबू दुलरु
इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में दामाद बाबू फिर से विवाद में आ गये हैं। इस बार विवाद की वजह अंतागढ़ टेप कांड है और इस टेप कांड के मुताबिक कांग्रेस प्रत्याशी से लेन देन का मामला है।
ऐसा नहीं है कि दामाद बाबू पहली बार विवाद में आये हैंं। इनका विवादों से पुराना नाता है यही वजह है कि शहर के प्रसिद्ध डाक्टर जेबी गुप्ता के इस पुत्र का मेडिकल की पढ़ाई के दौरान के कारनामें चर्चा में रहे और उनका पहला विवाह भी चर्चा और विवादों से बच नहीं पाया। इसके बाद उनका तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का दामाद बनना भी विवाद में रहा और कहा जाता है कि इस दामाद के लिए बमुश्किल से डॉक्टर साहब बड़ी मुश्किल से राजी हुए थे।
इसके बाद उन्हें जब डीकेएस का प्रभार सौंप कर लंबा-चौड़ा बजट बनाया गया तब डीकेएस में भर्ती और खर्च का भी विवाद होता रहा और फिर मामला अंतागढ़ टेपकांड का आया। लेकिन दामाद बाबू तो दामाद बाबू है और इसके लिए डाक्टर साहब क्या कुछ करेंगे यह भी चर्चा में है।
मनोज की उम्मीद...
छत्तीसगढ़ की राजनीति में कभी अजीत जोगी के नाक की बाल माने जाने वाले मनोज मंडावी को अब भी भरोसा है कि जोगी खेमा छोडऩे का फायदा उन्हें मिलेगा और मंत्रिमंडल में जो एक जगह बची है उस पर उसके नाम की मुहर लगेगी।
अजीत जोगी के लिए सीट छोडऩे की घोषणा करने की वजह से कभी मंत्री रहे मनोज मंडावी के बारे में कहा जाता था कि वे जोगी के ईशारे पर ही बागी होकर चुनाव लड़े थे। ऐसे में उनका जोगी खेमा छोडऩा अ'छे-अ'छे राजनैतिक विश्लेषकों को चौका देने वाला था। जोगी बनाम भूपेश की लड़ाई में भूपेश का साथ देने के कारण उन्हें टिकिट भी मिली और वे जीत भी गए लेकिन मंत्री नहीं बनाये गए तो इसके कई कारण गिनाये जा रहे हैं। अपने क्षेत्र में दबंग माने जाने वाले मनोज को लगता है कि देर-सबेर उन्हें मंत्री बनाया ही जायेगा।
शिकार करने को आये...
ये तो फिल्मी गाना शिकार करने को आये शिकार हो गये की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना पूर्व मंत्री विधान मिश्रा की यह हालत नहीं होती। कभी विद्याचरण शुक्ल के खास माने जाने वाले विधान मिश्रा को जब टिकिट नहीं मिली तो वे अजीत जोगी को गरियाते घुमते थे लेकिन जब जोगी ने पार्टी बनाई तो वे उनके साथ शामिल हो गए और भूपेश बघेल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कहा जाता है कि विधान मिश्रा के कंधे पर बंदूक रखने का काम भाजपा के एक दिग्गज नेता भी कर रहे थे और कांग्रेस की सत्ता कभी नहीं आयेगी यह सोचकर भूपेश बघेल के खिलाफ विधान ने जमकर विषवमन किया और अब जब कांग्रेस की सत्ता आ गई तो वे कांग्रेस में शामिल होने छटपटा रहे है।


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