सोमवार, 11 जनवरी 2021

धर्म-राष्ट्रवाद और रंगभेद



आस्ट्रेलिया में क्रिकेट खेल रहे भारतीय खिलाडिय़ों को जिस रह से रंगभेदी टिप्पणी से दो चार होना पड़ा और उसके बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया आई है यह सब सभ्य होने का दावा करने वाले समाज के लिए चिंता का विषय है। यूरोप अमेरिका सहित कई देशों में नस्ल को लेकर आज भी विवाद उतने ही गहरे है जितने एशियाई देशों में धर्म और जाति को लेकर विवाद है।

दरअसल कट्टरपंथियों की अपनी जमात है जिन्हें मानवता से ज्यादा खुद की चिंता होती है। और अपने को श्रेष्ठ कहलाने के फेर में ये लोग झूठ-अफवाह का सहारा लेकर नफरत के न केवल बीज बोते है बल्कि कुर्तकों के खाद पानी से उन्हें संचित करते रहते हैं।

पढ़े लिखे और सबसे सभ्य कहलाने का दावा करने वाले देशों में जिस रह से रंगभेद और धर्म को लेकर आये दिन तमाशा खड़ा कर प्रताडि़त करने का उपक्रम किया जाता है वह हैरान कर देने वाला है।

भारतीय खिलाडिय़ों के साथ यह व्यवहार पहली बार नहीं हुआ है पहले भी इस तरह की टिप्पणी से भारतीय खिलाड़ी अमानित होते रहे हैं और यह सबका अंत होते नहीं दिख रहा है।

यही हाल धार्मिक और जातिय श्रेष्ठता का हाल है। झूठ और अफवाह की चासनी में जिस तरह से नफरत परोसे जाते हैं वह मानवता को शर्मसार तो करता ही है, यह सोचने को भी मजबूर करता है कि सभ्यता की परिभाषा क्या होनी चाहिए।

भारत में राजनैतिक स्वार्थ के लिए आजादी के बाद से ही राष्ट्रवाद धर्म और जाति को श्रेष्ठ साबित करने के प्रयास में नफरत के जो बीज बोए गये उससे देश को न केवल आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा बल्कि एकता अखंडता को भी नष्ट करने की कोशिश हुई।

हाल ही में हुए दो आंदोलनों का जिक्र करना जरूरी है कि किस तरह से वर्तमान सत्ता और उससे जुड़े लोगों ने आंदोलन से जुड़े लोगों की राष्ट्रभक्ति पर सवाल उठाये। याद किजीए जब नागरिक बिल को लेकर शहर-दर-शहर शाहीन बाग बनने लगे तो इस आंदोलन में शामिल होने वालों को गद्दार, देशद्रोही और न जाने किस-किस तरह से गालियां दी गई। कोरोना के कारण आंदोलन समाप्त हो गया। लेकिन कट्टरपंथियों ने जिस तरह से शाहीन बाग के आंदोलनकारियों को गालियां दी वह हमारी राक्षसी प्रवृत्ति को ही उजागर करता है।

यही हाल किसान आंदोलन को लेकर हुआ। कट्टरपंथियों की जमात ने आंदोलनरत किसानों को गद्दार साबित करने जिस तरह से झूठ-प्रपंच का सहारा लिया वह शर्मसार कर देने वाला था। अपनी बात को सही साबित करने मुसलमानों के चेहरे बनाये गये, आईटीसेल ने किसान आंदोलन के दौरान नमाज पढ़ते मुसलमानों का वीडियो बनाकर यह बताने की कोशिश की कि कैसे मुसलमान किसान आंदोलन में शामिल है जबकि इस देश में मुसलमान भी बड़ी संख्या में किसान है।

हम यहां सत्ता के अहंकार को लेकर कुछ नहीं कहेंगे लेकिन सच यही है कट्टरपंथियों की जमात ने न केवल अपना नुकसान किया है बल्कि समाज और देश को भी शर्मसार करते रहे हैं।

दरअसल यह एक तरह का अपराध है जो मानवता का ही नहीं देश का दुश्मन है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें