बुधवार, 6 जनवरी 2021

दृढ़ निश्चय


 

रोज सुबह अब

सूर्योदय के पहले

नींद खुल जाती है

और कंपकपाती ठंड

में मुंह धोने

पानी को हाथ से

छूता हूं

तो याद आते हैं

अपने हक के लिये

दिल्ली बार्डर में

जुटे किसान

सर्द हवा और

बारिश में भीगते

गीले बिस्तर में

सोते किसान।

मैं जानता हूं कि

सरकार इतनी आसानी

से नहीं झूकने वाली

और मैं यह भी जानता हूं

कि अपने हक की

लड़ाई लडऩी पड़ती है

घर छोडऩा पड़ता है

इंतजार करते बच्चों

का मन मारना पड़ता है

गांव की सुंगध को

छोड़ शहर में

भटकना पड़ता है।

फिर यदि सत्ता

का अभिमान चरम पर हो

तो स्वाभिमान बचाने

की लड़ाई और भी

लम्बी होती है

आखिर गुरु गोविन्द

सिंह ने यूं ही नहीं

कहा था

कोई किसी को कुछ न देहै

जो ले है निजबल से लेहै।

पानी के छिंटे ने

जगा दिया और

मैं फिर चल पड़ता हूं

सुबह की सर्द हवा में

टहलने

आखिर दृढ़ निश्चक के

आगे ठंड भी हार

जाता है

सत्ता की क्या बिसात।

(किसान आंदोलन को समर्पित)

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