मंगलवार, 13 जुलाई 2010

बिहारी बाबूओं की तिकड़ी का कमाल

छत्तीसगढ़ राय बनने के बाद सभी क्षेत्रों में दूसरे प्रदेश के लोग तेजी से आए हैं। इससे पत्रकारिता का क्षेत्र भी अछूता नहीं रह गया है। सब अपने-अपने हिसाब से पत्रकारिता कर रहे हैं। नवभारत, जनसत्ता और हरिभूमि में प्रमुख पदों पर बैठे तीनों बिहारी बाबूओं की तिकड़ी इन दिनों सुर्खियों में है।
अखबारों के बीच चल रहे प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भी इन तीनों की दोस्ती कमाल की है और कहा जाता है कि इससे अखबारों का क्या भला हो रहा है यह तो अखबार मालिक जाने लेकिन इन तीनों का जबरदस्त भला हो रहा है। भला होने के इस खेल में पुलिस के मुखिया का भी बड़ा रोल है चूंकि वे भी सरनेम नहीं लिखते और बिहारी ही कहलाना पसंद करते हैं। साहित्य प्रेमी इस अधिकारी की मदद पाकर बगैर सरनेम वाले नवभारत और जनसत्ता वाले बहुत खुश है लेकिन हरिभूमि वाले थोड़े घाटे में हैं और दिल्ली चले गए।
अखबारों की बढ़ी रूचि
छत्तीसगढ़ में इन दिनों कई अखबारों के आगमन की चर्चा मीडिया जगत में है। पत्रकार खुश हैं कि चलों एक बार फिर सबकी तनख्वाह बढ़ेगी। राजस्थान पत्रिका ने तो सर्वे भी शुरु कर दिया है। पीपुल्स और राज एक्सप्रेस भी आने की जुगाड़ में लगे हैं। इसके अलावा कुछ और अखबारों के आने की बीच चर्चा इस बात की भी है कि भ्रष्ट जनसंपर्क के अधिकारी यहां अखबारों को आने का निमंत्रण देते यह भी कहते हैं कि सरकार भ्रष्ट है। विज्ञापन भरपूर है।
शेख ईस्माइल समवेत शिखर की ओर
युगधर्म से पत्रकारिता की शुरुआत करते हुए सांध्य दैनिक अग्रदूत के संपादक बन बैठे शेख ईस्माईल की तकदीर बुलंद है या नहीं यहतो तब पता चलेगा जब वे समवेत शिखर के संपादक बन जाएंगे।
पुसदकर फिर नौकरी पर
युगधर्म से ही पत्रकारिता शुरु करने वाले अनिल पुसदकर को वैसे तो नौकरी रास नहीं आती। वे स्वयं यह कहते नहीं थकते कि वे तभी तक नौकरी करते हैं जब तक मालिक जैसा रहते है। इन दिनों वे नेशनल लुक पहुंच गए हैं और पुलिस परिक्रमा लिख रहे हैं। भास्कर और लुक में फर्क तो रहेगा ही।
इस्पात टाईम्स की छटपटाहट
रायगढ़ से राजधानी तक धोखा खा चुके ईस्पात टाईम्स एक बार फिर रायपुर से कुछ करने की जुगत जमा रहा है। हालांकि मशीन रायपुर से उखड़ गई है इसलिए ब्यूरो से ही काम चलाने की मंशा है। इसलिए आदमी तलाशा जा रहा है।
संतोष साहू को दोहरा लाभ
प्रेस फोटोग्राफर संतोष साहू को दैनिक भास्कर से आफर मिला और वे हरिभूमि छोड़ दिया। तनख्वाह भी डबल और बैनर भी डबल।
और अंत में....
राजस्थान पत्रिका के आने की हलचल ने पत्रकारों में भगदड़ तो मचाई ही है। हरिभूमि से भास्कर पहुंचे दो लोगों के आवेदन भी लग गए है। इधर इससे निपटने कुछ अखबारों ने कुर्सी बाल्टी बेचने की तैयारी शुरु कर दी है।

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