रविवार, 27 मई 2012

उद्योगों की दादागिरी...


छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर रमन सरकार ने उद्योग के लिए रास्ते खोले हैं। उद्योगपति अब अपनी जेब में सरकार को रखने लगे है। खुलेआम कब्जे और पेड़ो की कटाई के साथ भयंकर प्रदूषण फैला रहे उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करने की सरकार में हिम्मत भी खत्म हो गई है। श्रम कानून का खुलेआम उल्लंघन से लेकर ऐसे कितने मामले हैं जो सरकार का मुंह चिढ़ा रहे हैं लेकिन सरकार तो मानों उनके गोद में बैठी है। रायगढ़ में कल जिंदल समूह के एक उद्योग में जिस तरह से भारी दबाव में कलेक्टर को जांच के लिए भेजना पड़ा और वहां जो कुछ जांच टीम ने किया वह सरकार की असलियत की कलई खोलने के लिए काफी है। जिंदल समूह के रायगढ़ स्थित इस उद्योग को लेकर जब शिकायते बढ़ गई तो भारी दबाव में जिला प्रशासन ने वहां छापे की कार्रवाई तो की लेकिन छापे का नेतृत्व करने वाले जिला प्रशासन के अधिकारी सहायक कलेक्टर गोयल और एसडीएम चौरसिया वहां जाकर जिंदल के एक बड़े अधिकारी के एसी चेम्बर पर बैठ गए। यहीं नहीं न तो शिकायत कर्ताओं को ही साथ रखा और न ही पत्रकारों को ही वहां घुमने दिया गया। जिंदल समूह पर जमीन कब्जे से लेकर प्रदूषण फैलाने तक के अलावा भी ढेरो शिकायते हैं। जिंदल समूह के इस पतरापाली स्थित फैक्ट्री में भारी अनियमितता की भी शिकायत है लेकिन उद्योग समूह ने सब मैनेज कर लिया। अब रिपोर्ट क्या होगा आसानी से समझा जा सकता है।
रायपुर में भी उद्योगपतियों की दादागिरी किसी से छिपी नहीं है। रमन सिंह जगह-जगह उद्योगों की तालाब साफ करने व सौंदर्यीकरण के लिए कहते घूम रहे हैं लेकिन उद्योगपति उनकी बात ही नहीं सुन रहे है। राजधानी के दर्जनभर तालाबों की सफाई करने की बात उद्योगपतियों ने की थी लेकिन कलेक्टर के दबाव के बाद भी कुछ नहीं किया गया और इसके चलते तालाबों की हालत खराब हो गई है।
उद्योगपतियों की दादागिरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करोड़ों रूपए के बिजली का बिल बाकी रहने के बाद भी इनसे वसूली नहीं हो पा रही हैं। अवैध निर्माण से लेकर अवैध कब्जों की शिकायतों पर कार्रवाई की बजाय चंदा लेने में भरोसा ज्यादा है।
           

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